मैं आप की बेटी हूँ

मैं आपकी बेटी हूँ

मैं उन सब बेटियों की तरफ से लिख रही हूँ जिन्हें अपनी बात रखने का कभी मौका नहीं मिला। कभी संकोचवश, कभी आदतन। घर की दहलीज के भीतर रहने वाली बेटियाँ, कदमताल पर आगे चलने वाली बेटियाँ — कुछ व्यथाएँ अनकही रह गई। लेकिन बाबा, अब्बू, बाबू जी, पापा की लाड़ली बेटियों को कहीं न कहीं उन मजबूत हाथों ने थाम रखा था। आज उनकी कहानी, उनके अनलिखे पत्रों के माध्यम से।

प्रिय बाबा,
उस दिन शादी के लाल जोड़े में छिपी बैठी थी। माँ बार-बार बलैया ले रही थी कि बिल्कुल गुड़िया लग रही हूँ। अठारह साल की उम्र में दादा जी के दबाव में आकर मेरी शादी हो रही थी। बाबा, आप डॉक्टर हैं ना? फिर मुझे आप क्‍यों नहीं समझ पा रहे हो। मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ, आपकी तरह डॉक्टर बनना चाहती हूँ। मैं आपसे लड़ना चाहती थी। लेकिन आप चुप थे। विदाई के समय आपके मजबूत हाथ मेरे सिर पर थे। जब तीन महीने के बाद मेरे ससुराल आए तो आपके हाथ में मेरे मेडिकल कॉलेज के एडमिशन की चिट्ठी थी। आज चालीस साल के बाद कह रही हूँ “थैंक्यू बाबा“। यह सारा सम्मान आपका है।

अब्बू सलाम,
अब्बू, शायद मैं आपको समझ नहीं पाई थी तब। आपने कितना मना किया था कि समीर को छोड दूँ। उससे तलाक ले लूँ। फिर दुबई चली गई। सपने संजोए एक छोटे घर में कैद | कितने दिनों तक कोई ताल्‍लुक नहीं रख पाई आपसे। समीर की उस नरक वाली जिंदगी से निकालकर मुझे अपना घर बनाने का आपने हौसला दिया। मेरे उस घर की हर छोटी चीज को आप कितने गौर से देख रहे थे। इतना भी आसान नहीं था मेरा वो सफर। मेरे सपनों को पूरा करने का रास्ता दिखाया आपने। खुदा आपको सलामत रखे।

आदरणीय बाबू जी,
उषा, निशा और आशा कितने लाड़ प्यार से हमारा नाम रखा था आपने | तीन लड़कियों के परिवार को आप बखूबी चलाते थे। दुनियाँ की भीड़ में सबसे अलग थे आप। आप को देखकर जीना सीखा हमने। गणित और विज्ञान में जब भी हम अव्वल आते, पूरे मोहल्ले में लड्डू बॉँट आते। पड़ोसियों के तानों की भी सुध बुध नहीं ली। और जब निशा और मैं कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के लिए चुन ली गईं तो बैंक से चुपचाप दो लाख रूपए का लोन ले आए। आपकी दुआओं का ही तो असर है कि कल प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पुरस्कार से हम दोनों बहनें सम्मानित हो रही हैं। बाबू जी, हम आपके अभिमान हैं तो आप हमारे पहले गुरू हो। हर मुश्किल को चुटकियों में हल कर दिया आपने।

प्यारे पापा,

आपको गए कितने साल हो गए। हर दिन एक कसक उठती है कि काश आप मेरी इस सफलता को देख पाते। हर खुशियों में आपकी अनुपस्थिति को महसूस किया है। आप ही तो थे जिन्होंने कहा था कि सपने जी लेने चाहिए। आप बिमार थे। आप पर बहुत दबाव भी था कि लड़कियों की शादी कर दो, उन को ‘सेटल’ कर दो। लेकिन आप चाहते थे कि आप के बच्चे आपसे ज्यादा आगे बढ़े। आपने सब की बात अनसुनी कर दी। आगे पढ़ने बढ़ने की प्रेरणा देते रहे। मुझे कभी लगा ही नहीं था कि आपने बेटे-बेटी का कोई फर्क रखा हो। हमेशा कहा कि घर को रोशन करती हैं बेटियाँ। सफलता के मुकाम पर सोचती हूँ शायद आपने ही मेरे अच्छे नसीब की दुआ की होगी। आपकी उपस्थिति न सही, आपका आशीर्वाद मेरे पास है।


डा0 अमिता प्रसाद

दिल्ली

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