सबसे बड़ी पराजय
सरिता से हमारा परिचय फेसबुक पर ही हुआ था।वह हमारें उन तमाम मित्रों में से एक थी,जो फेसबुक की सूची में थे और पोस्टों पर लाइक या कॉमेंट कर देते थे।व्यक्तिगत एक दूसरे को नहीं जानते थे।लड़कियों के मामले में मैं अपनी ओर से संकोचशील ही रहता था;यानी येन केन प्रकारेण,जल्दी जल्दी उनके समीप जाने का प्रयास नहीं करता था। रोजाना मैं पोस्टें डालता रहता था और कभी कम कभी ज्यादा लाइक,कॉमेंट आते रहते थे।सरिता की ओर ध्यानाकर्षण तब हुआ जब एक नवरात्र में मैंने एक देवी गीत पोस्ट किया और उस पर सरिता ने काव्यात्मक टिप्पणी करते हुए एक सटीक तुकांत युक्त पंक्ति उल्लिखित कर दी।मुझे न केवल प्रसन्नता हुई बल्कि उसके बारे में जानने की उत्सुकता भी हुई।पहले प्रोफाइल देखी।लखनऊ निवास,सुन्दरी युवती और अच्छी कवयित्री प्रतीत हुई।मैंने मैसेंजर पर धन्यवाद सहित,एक लघु संदेश डाल दिया तथा थोड़ा विस्तृत परिचय जानने की आकांक्षा की।उसने बताया कि वह नगर की नहीं,निकटवर्ती एक ग्राम में निवास करती हैं,जहाँ उसके माता पिता भाई भौजाई रहते हैं।पिता मध्यम श्रेणी के कृषक हैं।दो बड़ी बहनें शादीशुदा हैं जो अपनी अपनी ससुराल में रहती हैं।वह कुमारी है।शिक्षा एम.ए. बी. एड.है।लिखने पढ़ने का शौक है,विशेषकर कविता का।
मेरे और सरिता के विचार मिलते थे।वह मुझे एक अच्छी कवयित्री और उससे अच्छी इंसान लगी।अक्सर मैसेंजर पर चैट और कभी कभार फोन पर बातचीत होने लगी।मैंने उससे कुछ शिष्टाचार और कुछ अनुराग वश एक बार कहा कि कभी हमारे घर लखनऊ आओं;हमें इससे खुशी होगी।उसने कहा ‘पारम्परिक परिवार है और परिवेश भी ग्रामीण,थोड़ा कठिन है,फिर भी मैं प्रयास करूँगी’।
कुछ दिन बाद सरिता का फोन आया कि ‘मैं और मेरी माँ आज पिता जी की दवाइयाॅ लेने शहर आ रहे हैं;हम समय निकालकर आपके घर भी आयेंगे।माँ की ओर से मुझ पर विशेष पाबंदियाँ नहीं हैं।मैं अपनी माँ से प्रायः हर बात साझा कर लेती हूॅ’।मैंने खुशी खुशी हामी भर दी।मैं प्रतीक्षा कर ही रहा था कि शाम होने से कुछ पहले घर के सामने एक टैक्सी रुकी। उससे वे माँ बेटी दोनों उतरीं और मैंने उनका घर पर सस्नेह स्वागत किया।सरिता सर्वांग सुन्दरी,पूर्ण शरदेन्दु को लज्जित करने वाले दुग्ध धवल मुख वाली युवती थी।कटि पर्यंत कृष्ण केश।तीखे नाक नक्श।मानों विधाता ने सौन्दर्य के सभी उपमान एक जगह इकट्ठे कर दिये हों।दृष्टि ठहर गई ,पर बुद्धि ने मन को डांटा ‘तुम्हें टकटकी लगाने का अधिकार नहीं है’।माँ जी एक सरला सौम्या गृहिणी थीं।मैं घर पर अकेला ही रहता था।कोई परिचारक या परिचारिका नहीं थी।औपचारिक वार्ता के बाद मैं उठा और किचेन में आ गया।चाय बनाने का उपक्रम करने लगा।यद्यपि मैंने यह कहा नहीं था कि मैं चाय बनाने जा रहा हूँ ,किंतु कुशाग्र बुद्धि सरिता शायद समझ गई थी।अतः मैंने देखा कि वह पीछे आकर खड़ी हो गई है।वह स्वयं चाय बनाने का हठ करने लगी।हो हुज्जत होने लगी।मैंने लाख कहा कि ‘तुम्हारे लिये नया चूल्हा चक्की है,तुम बैठो,मैं बना लेता हूँ ;’किंतु उसने जिद करके मेरे हाथ से पैन छीन लिया और खुद चाय बनाने लगी।यह मेरी पहली पराजय थी।पराजित मैं आकर उसकी माँ के पास बैठ गया।थोड़ी ही देर में सरिता ट्रे में रखकर तीन कप चाय ले आई।हम तीनों ने चाय पी और घरेलू बातचीत करते रहें।उन दोनों के पास रुकने के लिये अधिक समय नहीं था।अतः जाने को तैयार हो गईं।मैंने सोचा मध्यम वर्गीय परिवार है।टैक्सी से आई हैं और मेरे घर पहली बार,तो अंदर जाकर एक लिफाफे में यथोचित धनराशि रखकर लिफाफा सरिता को देना चाहा।वह ना नुकर करने लगी।एक बार की विजेता थी ही,सो फिर जीत दर्ज कराना चाहती थी;किंतु इस बार मैं अड़ गया और बलात् लिफाफा उसे पकड़ा दिया।अबकी बार मैं जीता।बदला पूरा हो गया।वे विदा हो गईं।मधुर स्मृतियां छोड़ गईं।लगा जैसे बहुत दिन साथ रहने वाला कोई अति प्रिय चला गया हो।
समय बीता।सरिता ने सूचित किया कि ‘मेरा विवाह पास के गाँव में तय हो गया है।ससुराल का परिवार मध्यमवर्गीय है।घर में खेती किसानी और दूध का काम होता है।वर जी मुझसे कम पढ़े लिखे हैं।दरअसल पापा के पास पैसा तो है नहीं।दो बहनों का विवाह पहले ही कर चुके हैं।आप शुभ कामना दे दिजियेगा।आपसे मित्रता की जानकारी केवल माँ को है।अतः आना उचित नहीं रहेगा’।यथा निर्धारित,विवाह हो गया।
दिन बीतने लगे।अब सरिता की ओर से कोई सूचना नहीं मिलने लगी।न फेसबुक पोस्ट, न मैसेंजर न फोन।मैं समझ गया कि ससुराल के अनुशासन और पाबंदियां हैं।मैं अपनी ओर से पहल नहीं कर सकता था।ऐसा उसने कह रखा था।
अचानक एक दिन फोन आया।फोन पर सरिता थी।एक सिहरन हुई।बताया कि ‘विवाह बेमेल है।पति देव अल्पशिक्षित और दोहनी करके दूध डेयरी में बेचने जाते हैं।मानसिक स्तर कतई असमान।सास ननद अशिक्षित।ननद ईर्ष्यालु और ससुर की दृष्टि कुत्सित लगती है।शेष जब मिलेंगे तो बात होगी।’मैं मन ही मन दुखी हुआ।
अब काफी समय बीत गया।कोई संवाद नहीं।चिंता हो रही थी।फेसबुक आदि सब बंद।मैने सोचा वह ठीक ही होगी।यदि कोई विशेष बात होती तो वह बताती।वैसे भी वह शालीन और शर्मिली है।बेमेल व्याह की बात भी देर में ही बताई थी।मुझे देर सबेर हकीकत बताएगी ही।
एक दिन फोन की घंटी बजी।फोन उठाया।दूसरे छोर पर सरिता थी।दिल थाम कर हेलो बोला।वह बोली “आदरणीय!देरी के लिये क्षमा प्रार्थिनी हूँ।अपनापन वही है।वही रहेगा।मैं पिछले डेढ़ साल से मायके मे हूँ।गोद में एक बच्ची आ चुकी है।ससुराल में पहले सास ननद के ताने मिलने लगे;फिर पति भी हाथ उठाने लगे।ससुर जी की कुदृष्टि अंगों के सौष्ठव पर एकदम स्पष्ट रेंगती प्रतीत होने लगी।तब रक्षा के लिये किससे कहती?अतः मायके चली आई।”अरे!फिर?तुमने बताया नहीं”।मैं बोला।”मायके में माता पिता का स्नेह वात्सल्य भरा ही पूर्ववत् है;किंतु उनकी विवशताएं हैं”।सरिता ने आगे कहा:”उनका एकलौता लड़का बहू साथ है।उन दोनों की ईर्ष्या भी मेरे प्रति चरम पर है।रोज विरोध।लड़ाई झगड़ा।एक दिन भाई ने भी मुझ पर हाथ उठाया।पिता जी इसका विरोध तो करते रहे पर रक्षा नहीं कर पाये।वृद्ध हैं।भाई भौजाई हमें घर में नहीं रहने दे रहे हैं।कई जगह नौकरी की अर्जी भेजी।पर कही नहीं लगी।हमारी कोई ऊँची पहुँच नहीं है।अब कहाँ जाऊँ?क्या करूँ?बच्ची के भविष्य की बड़ी चिन्ता है”सरिता का गला रुंध गया।मैंनें ढांढ़स बंधाते हुए कहा “सरिता घबड़ाओं नहीं।हमारा द्वार तुम्हारे लिये सदा खुला है”।फोन कट गया।
मैं (स्वगत)।कानून इन मामलों में कितना शिथिल है!युवती को स्वाभिमानपूर्वक तात्कालिक संरक्षण कैसे मिल सकता है?मैंनें ऑफर भले दे दिया है किंतु क्या इस तरह के परिचित के घर एक युवती को स्थायी रूप से रहने को सामाजिक स्वीकृत मिलेगी? नहीं।कभी नही;फिर सरिता तो कुलीन और स्वाभिमानी महिला है।घर से कदम बढ़ाया कि सामाजिक मर्यादा गई।तो क्या सर्वत्र प्रताड़ित होना ही उसकी नियति है?कैसा है यह संकीर्ण समाज!कैसा यह लचर कानून!
और मैं?कितना असहाय!व्यवहारिक रूप से तो कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ।यह मेरी सबसे बड़ी पराजय है।
रघोत्तम शुक्ल
लखनऊ, उत्तर प्रदेश