रावण नश्वर नहीं रहा
हाँ,नहीं है नश्वर
रावण
नहीं वह,मात्र
प्रतीक है
पुतलों में
जिन्हें हम जलाते हैं।
रावण!
यत्र-तत्र-सर्वत्र है
हममें और
तुममें भी
सब में
मौजूद है
पूरे ठाठ से
ठहाके लगाते हुए
अठ्ठास करते हुए
हैरान मत होना
सिर्फ मनुष्यों में है।
हाँ ,रावण
मनुष्यों में ही है
चुकी, पशु तो
पाश्विकता
आज भी रखा है
जब से उसे
ईश्वर ने रचा है
पर, मनुष्य तो
मनुष्यता
सदियों से
छोड़ चुका है।
तभी तो वह
मनुष्य में
रहा है कंस!
अहंकारी
हिरण्यकश्यप
और
व्यभिचारी
आज ,अगणित
भाई,पति, और
बाप भी!
फिर दहन
किस रावण का?
हा!हा!हा!
पुतलों के रावण का?
हे!मूर्ख
भ्रमित मानव
यह भी तो
कौतुक है
अमर्यादित
अहंकार का
प्रतीक ही है
तुम्हारी दानवता का
कुत्सित हठयोग है
दुषित करते हुए
पर्यावरण का!
आखिर रावण तो
एक था
तुम तो अनेक हो
पर रावण तुमसे
नेक था
सीता को छूआ तक नहीं
बहन सूर्पणखा की
बेइज्जती का
परमात्मस्वरूप राम से
लिया लोहा
तुम तो
रावण होने
योग्य भी नहीं
हाँ,क्योंकि
तुम्हारी
आँखों के समक्ष
कितनी बहनें
लुट रही हैं
और तुम
पार कर जाते हो
बेशर्मी
उठाते नहीं सुरक्षा में
हथियार!
तुम
सेल्फी लेते हो
फिर
किसका दहन हो?
उस रावण का
या
इस रावण का ???
डॉ अरुण सज्जन
सह-प्राध्यापक, डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
लोयोला स्कूल, जमशेदपुर