माँ एक किरदार अनेक

माँ एक किरदार अनेक

मित्र, संबन्धी विपदा में हमारे साथ होते हैं…..
लेकिन माँ विपदा में साथ नहीं सामने होती है, संकट मोचन सी होती है “माँ”…

बच्चों के अनकहे दर्द को सुन लेती है….
माँ के स्पर्श मात्र से दूर होने लगती है, शरीर के सारे रोग,दोष अपने बच्चों के लिए, सबसे बड़ी वैद्य होती है
” माँ”..

चाहे कितनी ही दूर हो हमसे,
जान लेती है हमारी अन्तर्मन की बातेँ, सारी…. अन्तर्यामी होती है “माँ”….

फंसे हो कितनी बड़ी मुसीबतों के मझधार में हमारी जीवन नैया …. निकाल लाती है, हमेशा हमारी कश्ती किनारे पर, कुशल मांझी होती है “माँ”

सुबह से शाम तक बच्चों की
हर फरमाइशें पूरी करती,
थकती नहीं, रुकती नहीं,
चेहरे पर मुस्कान लिए, दौड़ती रहती है घर भर में, निष्प्राण घर में
प्राण फूंकने वाली ऑक्सीजन है माँ….
कहाँ तक गिनाऊं ऐ माँ, तेरी महिमा,
दोस्त, मार्गदर्शक, प्रेरक, गुरु,
हितैषी, हर किरदार में निश्छल और निस्वार्थ है माँ..

अनीता वर्मा
साहित्यकार
भिलाई

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