माँ
मां की महिमा कोई कैसे कहे ।
है अपरंपार जगत में माँ ।।
हर मुश्किल का हल है माँ ।
अनगिन पुण्यों का फल है माँ ।।
अपनी हर संतान की खातिर।
अमृत सा प्रभावी जल है माँ ।।
माँ के जैसा कोई और नहीं
मां के जैसी माँ ही है ना ।।
है आकाश से ऊंची माँ ।
सागर से भी है गहरी माँ ।।
अनगिन दुख सह कर भी ।
संतान को सब सुख देती माँ ।।
संगीत के सारे सुर भर देती ।
जब-जब लोरी सुनाती मां ।।
मीठी नींद सुलाती मां ।
सपने नये दिखाती माँ ।।
सपने सब पूरे करने को ।
सही उपाय बताती मां ।।
पथ के काँटे दूर हटा कर ।
राहों में फूल बिछाती माँ ।।
हर पल उत्साह बढ़ाती मां ।।
मंजिल पर पहुंचाती माँ ।।
देख सफलता बच्चों की ।
खुद गर्वित हो जाती माँ ।।
इसकी, उसकी सब की मां ।
तेरी हो या फिर मेरी माँ ।
जग में सबसे बढकर माँ ।
मां के जैसी तो है बस माँ ।।
अपनी पीड़ा भूल भूल कर
सुख आनंद लुटाती मां ।
पल पल आस जगाती माँ ।
विजयी विश्वास दिलाती माँ ।।
अपने बच्चों की रक्षा में ।
हर मुश्किल से लड़ जाती मां ।।
जो कठिन काम हो सबके लिए ।
उसको भी कर दिखलाती माँ ।।
गर्मी में लगे शीतल छाया ।
वर्षा की बूंदों में समाई मां ।।
सर्दी में गुनगुनी धूप है माँ।
जग में भगवान का रूप है माँ ।।
है बारंबार नमन तुझको ।
अनगिन तेरे उपकार हैं माँ ।।
उर्मिला देवी उर्मि ,
साहित्यकार , शिक्षाविद , समाजसेवी
रायपुर, छत्तीसगढ़