आखिर माँ है क्या ?

आखिर माँ है क्या ?

भगवान!!!
तुमने क्या खूब कमाल दिखया
खुद सब जगह नहीं हो सकते
इसलिये “”माँ ” बनाया।

आखिर माँ है क्या???

क्या वो? जिसने जीव का
दुनिया से परिचय कराया,
इक मांस के लोथड़े को
“जिंदगी” का जामा पहनाया

या फिर वो जिसने
हर कदम पर
अपनी औलाद का
हौसला बढाया,
बच्चों के सपनों को
आकाश देकर
ज़मीन पे अपनी
ममता का आँचल फैलाया।

या यूँ कहें कि वो
जिसने जीने का
सलीका सिखाया
हर दर्द,असफलता,
परेशानी,उलझन का
कैसे हो सामना??
ये बताया।

ना ।।।नहीं।। “माँ “!!
तुम इक रिश्ता भर नहीं हो
तुम इक अहसास भी नहीं हो।
तुम केवल
एक व्यक्ति,प्रेम ,प्रतिष्ठा
मान भी नहीं हो।

तुम तो वो हो जहाँ से
ये
सारे शब्द आते हैं।
तुम तो केवल ” माँ ” हो;
जहाँ सारे शब्द
गौण हो जाते हैं।

पद्मा झा
साहित्यकार

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