माँ.. ममत्व और मातृत्व
परमपिता ने हर रूह में बसाया मातृत्व भाव…
अहो, पर जगत में आज बंधु ममता का देखो कैसा है अभाव..
कि मानव मानव के ही खून का बन बैठा है प्यासा
देखो देखो तो जाकर के
पाओगे हर मां का कलेजा दिन रात है फटता,
आत्मा से निकलती चित्कार, आह चेहरा सर्द जर्द रूआंसा…!
कि आज उसके दूध का कोई मोल न रहा…..
चहूंओर “न्याय सत्यता” , “अन्याय और असत्यता रूपी”
अत्याचार है सह रहा…!
कि सुनो इस तरह तड़प तड़प कर हर मानव क्या कह रहा..?
क्या हर दिल में भाईचारा अब भी है रह रहा?
फिर भी मां का दिल यूं ही न मानेगा, ये सब…रहेगी हमेशा चाह..
आज भी पल पल प्रतिक्षण वो करती याद
अपने बच्चों का नटखटपन इतराना इठलाना और नखरे
और हर बात पर उसका,… उनको देना दाद और वाह वाह..!
कि ऐसे ही एक दिन लौटेगी मानवता अपनी राह…
भले ही चेहरा सर्द जर्द रूआंसा..
पर देती यही,.. हर मां खुद को दिलासा…
पर उसे अनवरत रहेगी ये जिज्ञासा…!
कि मानव इतिहास में सदा है और रहेगी जिस पवित्र प्रेम की पिपासा….!
क्या बिन मां और मातृत्व बिन, कभी पूरी हो सकेगी.. मानव की ये अभिलाषा…?
धरती पर आने की, युग युगांतर प्राण पाने की…
अंतस में समाने की, प्रेम अनुभूतियों त्याग समर्पण और एहसास के खजाने की…!
मातृत्व भाव को, दृष्टि में समभाव को.. अलौकिक प्रभाव को, आत्मा में सजाने की…
और ऐसा ही ज्योत, इस आस में कि ब्रह्मांड के कण कण को
मां समान ही, पोषित परिपूर्ण करे, हर रोज जलाने की..
हां है आज दरकार, आत्मा को झकझोरतीं
ऐसी ही अलख जगाने की…!
लेकर के संकल्प आज करें आश्वस्त
धरा की हर मां को, और वसुंधरा को…!
कि स्वयं में लाकर के बदलाव हम…
इस जहांन में, वर्तमान में,.. शांति दूत बन…
भविष्य में भी,… शांति का मार्ग प्रशस्त करेंगे..!
चलो आज ऐसा ही हर मां को हम आश्वस्त करेंगे..!
चलो आज ऐसा ही.. हर मां को हम आश्वस्त करेंगे…!
बालिका सेनगुप्ता
साहित्यकार