फागुन
माघ बीता फागुन आया, लाया रंगों की बौछार, होली में…….
कजरारे नैनों की भाषा, कुंदन बदन की अभिलाषा,
है वह निपट गंवार अनाड़ी, जो न समझे होली में…….
कैरी टपकी, कोयल कूकी, टेसू दहका, भौंरा बहका,
कनकनी दूर हुई, पानी पर आया प्यार होली में…….
छ्र्रर्र्र पिचकारी बरसे, उड़े अबीर गुलाल के बादल,
विरह मिलन की घडी बन गई साजन आये होली में ……….
छोटा देवर बड़ा हठीला, लंहगा चोली सब करे गीला
मार खाए, गारी खाए, बड़ा सताए होली में……..
और अंत में दो पंक्तियाँ इस देश के नाम …………..
जात पात, उंच नीच, धर्म कर्म का भेद भुला कर,
इन्द्रधनुषी पक्के रंगों से सब रंग जाएँ होली में……..
माघ बीता फागुन आया, लाया रंगों की बौछार, होली में……..
सुधा गोयल ‘नवीन’