ऑटिज्म
यह एक तरह का मानसिक रोग है। इस रोग के लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं। जन्म से लेकर 3 साल की आयु तक विकसित होने वाला ऐसा रोग है, जिससे बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है। ऐसे बच्चों का दिमागी विकास सामान्य बच्चे की तुलना में बहुत ही धीमी गति से होता है। ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे चीजों को समझ पाने में असमर्थ होते हैं,दूसरे लोगों के खुलकर अपनी बात कर नहीं पाते और इनको अपनी बात स्पष्ट रूप में समझने या समझ पाने में परेशानी होती है। इस बीमारी से पीड़ित कई बच्चों को बहुत ज्यादा डर लगता है। इससे पीडित लोग बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं। आइए जानें ऑटिज्म जागरूकता दिवस पर ऑटिज्म संबंधी कुछ और बातें।
क्या आपका बच्चा आपकी आवाज सुनकर या चेहरे के हाव-भाव देखकर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं देता हैं? दूसरे बच्चों की तुलना में कम बोलना,शब्दों को सही तरह से बोल न पाना या फिर आपकी बात का जवाब सही तरीके से नहीं दे पाना ऑटिज्म के लक्षण हो सकते हैं। चिकित्सा क्षेत्र के लिए चुनौती बना हुआ है बच्चों का ये रोग
ऑटिज्म होने के कारण
ऑटिज्म होने के स्पष्ट कारणों का पता अभी चल नहीं पाया है लेकिन ऑटिज्म होने की वजह सैंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने, मस्तिष्क की गतिविधियों का आसामान्य होने, गर्भवती महिला का खान- पान सही न होना, प्रैग्नेंसी में तनाव लेना,प्रेग्नेंसी में गलत दवाइयों का सेवन आदि माने जाते हैं।
ऑटिज्म का इलाज
बचपन में ही इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यह अवस्था 1-2 साल नहीं बल्कि अजीवन चलती है। इसके लिए मनोचिकित्सक से संपर्क करना बहुत जरूरी है ताकि उनकी अवस्था में सुधार किया जा सके।
ऑटिज्म की पहचान कैसे करें ?
ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत अंतर होते हैं। इसी के आधार पर इन बच्चों की पहचान की जा सकती है। इसके अलावा कुछ लक्षणों से भी इनकी पहचान की जा सकती है।
1. ऑटिज्म पीड़ित बच्चा दूसरें लोगों के साथ नजर मिलाने से कतराता है। इसके लिए उसे अलग सी हिचकिचाहट महसूस होती है।
2. ऐसे बच्चे अकेले रहना पसंद करते हैं।
3. बच्चा आपकी किसी भी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता, 9 माह का होने के बावजूद भी नहीं मुस्कुराता तो सतर्क रहने की जरूरत है।
4. शब्दों को बोलने में दिक्कत होना,आवाज सुनने के बाद भी प्रतिक्रिया न देना ऑटिज्म के लक्षण है।
5. किसी भी खेल को सही तरीके से खेल नहीं पाते। खिलौनों के साथ खेलने की बजाए ये उन्हें चाटने लगते हैं।
6. ऑटिस्टिक बच्चे में खास बातें होती हैं कि उनकी एक इन्द्री अति तीव्रता से काम करती है। जैसे-उनमें सुनने की शक्ति ज्यादा होना।
कैसे करें ऑटिस्टिक बच्चे की मदद
ऑटिस्टिक बच्चों को कुछ सिखाने के लिए जल्दबाजी न करें। उन्हें धीरे-धीरे बात समझाने की कोशिश करें। इसके बाद उन्हें बोलना सिखाएं। बड़े-बड़े शब्दों की जगह पर उनसे छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें।
बच्चा बोलने में असमर्थ है तो उनसे इशारों के जरिए बात करें। एक-एक शब्द बोलना सिखाएं।
इस तरह के बच्चों पर गुस्सा न दिखाएं। उन्हें तनाव मुक्त रखने की कोशिश करें। कभी-कभी बाहर घूमाने के लिए भी ले जाएं।
हर वक्त इन पर नजर रखना बहुत जरूरी है। किसी बात पर वे गुस्सा हो जाए तो उन्हें प्यार से शांत करें।
बच्चों को शारीरिक खेल के लिए प्रोत्साहित करें।
अगर परेशानी बहुत ज्यादा हो तो मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवाइयों का इस्तेमाल करें।
क्या ऑटिज्म बच्चा ठीक हो सकता है?
ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों और बच्चों का ठीक होना मुश्किल है क्योंकि यह एक प्रकार की विकास संबंधी बीमारी है। इसके लिए मनोचिकित्सक की परामर्श लेना बहुत जरूरी है। सही प्रशिक्षण से इनकी हालत में सुधार किया जा सकता है। रोजमर्रा के काम करने के में असमर्थ यह धीरे-धीरे अपने काम करने सीखना शुरू कर देते हैं। वहीं, प्रशिक्षण में मनोरोग विशेषज्ञ अभिवावकों के साथ बैठकर बच्चों की सारी कमियों की पहचान कराते हैं और उन्हें यह बताते हैं कि इन खामियों से कैसे निपटा जा सकता है। मां-बाप को भी इनकी पूरी मदद करनी पड़ती है।
डॉ निधि श्रीवास्तव
मनोवैज्ञानिक
प्रधानाध्यापिका,
विवेकानन्द इंटरनेशनल स्कूल
जमशेदपुर,झारखंड