पीतल

पीतल

“सच कहता हूँ मुझे ज़रा भी याद न रहा”
शाम के धुंधलके में एकाएक कौंधे निशा के सवालिया अंदाज पर पीयूष ने थोड़ी हैरानी के साथ अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा।

“पूरे चार साल बाद आए हो इसके बाद भी”
निशा ने बनावटी गुस्से से आँखे तरेंरी।

“बस यही तो ग़लती हो गयी,मुझे ज़रा भी ध्यान न रहा”

“हाँ सही है !भला मेरा ध्यान क्यों आएगा”
उसने दाहिने हाथ पर टिकाये हुए अपनी ठुड्ढी को अब बाएँ हाथ पर टिकाया और बग़ैर पलकें झपकाये उसे देखने लगी।

“ऐसी बात नहीं है!बस ध्यान से उतर गया।ख़ैर! अगली बार आऊंगा तो…..”

“तो क्या?”

“तुम्हारे लिए एक खूबसूरत तोहफ़ा लाऊंगा”

“हाहाहा खूबसूरत तोहफा! ज़रा मैं भी तो सुनूं कि इस बार की भूल का क्या प्रायश्चित करोगे?”
वो मुस्कुराई।

“दो महीने बाद मेरी शादी है।अगली बार आऊँगा तो तुम्हारी भाभी को भी लाऊंगा…”
कहते हुए वो मुस्कुराया और फिर आगे बोला-” मिलोगी न उससे!”

“दो महीने बाद शादी!!तुम्हारी भाभी!! उफ़्फ़्”
कान जैसे सुन्न हो गये थे।ज़ेहन में कुछ खदबदा उठा।

“देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ”
उसने उसके चेहरे पर मुहब्बत भरी नज़रें डालते हुए कहा।

“अरे वाह! ये तो अंगूठी है”
निशा हैरानी से अंगूठी देखते हुए बेसाख़्ता बोल पड़ी।

“हां,है तो अंगूठी ही! तुम्हें पसंद आयी?”
उसने उसकी उंगली में अंगूठी पहनाते हुए पूछा तो वह शर्माते हुए बस यही बोल सकी-“बेहद खूबसूरत है वैसे ज्यादा महंगी तो नहीं हैं”

“नहीं,इसबार तो पीतल की है मगर जॉब लगते ही!!”

वो आगे कुछ बोलता उससे पहले ही उसने उसके कंधे पर सर टिका दिया था।

अचानक वह नींद से जगी थी।चार साल पहले की ये घटना जैसे सदियों पुरानी होकर पीयूष के लिए धुंधली पड़ गयी थी जबकि उसके लिए जैसे कल की बात हो।

“क्या इतने इंतजार का यही सिला मिलना था….?पीयूष की होने वाली पत्नी उसकी भाभी… कानों ने ये लफ़्ज सुना कैसे…?क्या सबकुछ सिर्फ़ उसकी तरफ से ही था पीयूष की तरफ से कुछ भी नहीं?इतने सालों तक उसने जिस मंज़िल की राह देखी क्या वो मंज़िल उसके लिए सिर्फ़ भूलभुलैया थी?जहाँ का हर रास्ता उसे किसी अंधेरी सुरंग की ओर ले जाने को बेताब था।

उफ़्….!
अब इन सवालों को हमेशा-हमेशा के लिए दफ़नाने का वक़्त था। आंखें भर आयी थीं।हमेशा पीयूष से मिलकर दिल में उठने वाली हर तरंग जैसे आज ठहरकर टीस के भंवर में तब्दील होकर उसे अपनी गिरफ्त में जकड़े ले रही थी।

“क्या हुआ निशा? तुम एकदम से ख़ामोश क्यों हो गयीं”
उसने उसकी ख़ामोशी पर कुरेदा।

निशा ने एक लम्बी सांस खींची और उसे आहिस्ता- आहिस्ता अपने फेफड़ों में जज़्ब करते हुए नाख़ून कुरेदने लगी।अचानक उसकी नज़र उसी अंगूठी पर गयी जो चार साल पहले पीयूष ने उसे गिफ्ट की थी।कितना सहेजकर रखा था उसे,बस ज़रा-सी रंगत बदल गयी थी।
अबतक वह उसमें उसका अहसास जीती रही मगर अब नहीं!!!उसने आहिस्ता से अंगूठी बाहर की ओर सरकाई ज़रा टाइट हो चुकी थी लिहाजा हल्के ज़ोर की ज़रूरत पड़ी।

“क्या कहूं? तुम्हारी शादी होने वाली है जानकर बेहद खुशी हुई।तुम्हारी नयी ज़िंदगी के लिए मेरी शुभकामनाएँ”

“शुक्रिया.. शुक्रिया ,कमसकम तुमने कुछ कहा तो!”

निशा ने पलटकर कोई जवाब न दिया बस उसे अजनबियों की तरह देखती रही फिर अचानक जैसे उसे होश आया तो उसकी हथेली पर अंगूठी रख दी।

“ये क्या है?” उसने हैरानी से देखा।

“कभी तुमने दी थी”

“अरे हां,मुझे तो याद भी न था ।”

“तुम्हारे लिए सामान्य सी बात थी ”

पियूष उसकी भीगी हुई सर्द आवाज़ को समझने की कोशिश कर रहा था कि अचानक वह उठ खड़ी हुई।

“क्या हुआ निशा?इतनी जल्दी!”

“जल्दी कहाँ पीयूष?बहुत देर हो चुकी है।तुमने शायद देखा नहीं, निशा बेहद स्याह हो चुकी है।”
उसने बेबशी से मुस्कुराने की असफल कोशिश करते हुए अंधेरे की ओर इशारा किया।

” तुम अचानक ये कैसी बहकी-बहकी बातें क्यों करने लगीं….और ये अंगूठी?क्या करूं इसका?”

निशा ने एक भरपूर नज़र उसपर डाली जैसे उसे अब आख़िरी बार देख रही हो-
“तुम्हारी अमानत थी,लौटा रही हूँ,बस मुझे यही अफ़सोस है कि इसकी रंगत को सही सलामत न रख सकी मगर सच कहूं तो ये पता ही न था कि पीतल है रंग बदलेगा। काश!इसे सहेज पाती। ख़ैर! अब चलती हूं बस तुमसे यही इल्तिज़ा है ” इतना कहते- कहते उसका गला भर आया तो दुपट्टे को चेहरे पर खींच लिया।

“किस बात की इल्तिज़ा?”
वह उसे उजबक की तरह हैरानी से देखे जा रहा था।

” हो सके तो अपनी होने वाली पत्नी को कभी मेरी भाभी मत कहना”

पीयूष के कानों में निशा के आख़िरी लफ़्ज़ अब भी गूंज रहे हैं जबकि निशा अंधेरे में कहीं गुम हो चुकी थी।

नज़्मसुभाष
साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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