एक लड़की थी…

एक लड़की थी…

शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी
एक लड़की थी मुझे गोद में सुलाया करती थी

बिन बाबा के कैसे बीती थीं उसकी माँ की रातें
कुछ बेचैनियाँ थीं सिर्फ़ मुझे बताया करती थी

डर मेरी उल्फ़त से था, कोई और पसंद था उसे
इसी बात पर ज़्यादा खुद को रुलाया करती थी

वैसे तो कोई नाम नहीं था उस रिश्ते का कभी
लेकिन बेग़मों वाले हक़ खूब जताया करती थी

सिर्फ़ मेरी ही है वो जब मैं ज़िद्द पकड़ लेता था
रूठने पर मुझे कभी माँ जैसे मनाया करती थी

उसके बिना रहना कैसे है जब भी मैंने बातें कीं
झगड़े हो जाते ऐसी तरकीबें सुझाया करती थी

जो कहने से दोनों डरते थे, किताबों में लिखे थे
ऐसे जज़्बातों पर वो निशान लगाया करती थी

कैसे तुमको अपना बना लूँ जब भी पूछता उसे
खेल-खेल में घास की अंगूठी बनाया करती थी

उधर से गुजरते वक़्त घर उसका मिल गया था
अपने घर कभी जो चाय पर बुलाया करती थी

मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे भी गया हूँ उसके साथ
मुझे कबूला नहीं, बस ख़ुदा दिखाया करती थी

कभी वो भी चली जायेगी मुझे मालूम था मगर
सच्ची कसमें खुदा के सामने खाया करती थी

उसी शहर में रहता हूँ उन जगहों पर मैं जाता हूँ
वो मिलने आएगी,जहाँ मिलने आया करती थी

तान्या सिंह
गोरखपुर, उत्तर-प्रदेश

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