पहली मुलाकात
प्रेम आकर्षण है, एक एहसास और समर्पण है l दुनिया में आप हजारों लाखों लोगों से मिलते हैं परंतु किसी एक के आ जाने से आप की दुनिया ही बदल जाती है l यह एहसास मुझे भी हिला गया था l मैं बचपन से ही बहुत बिंदास बेपरवाह स्वभाव की थी, मेरे मस्त मौला स्वभाव के कारण मेरा परिवार और मेरे दोस्त मुझे बच्चे की तरह स्नेह करते थे l बात उन दोनों की है जब मैं कॉलेज में पढ़ रही थी, रोज घर से कॉलेज पैदल जाती थी l कभी-कभी रिक्शा कर लेती थी,एक दिन देरी होने के कारण घर से जल्दी जल्दी कॉलेज भाग रही थी l जल्दबाजी में ध्यान ही नहीं दिया रास्ता पार करने लगी तभी अचानक तेज चलती हुई गाड़ी आकर मुझे टक्कर मार दी, मैं वहीं सड़क पर गिर गई ,चोट तो ज्यादा नहीं लगी… हां पैर हाथ छील गए l गिरने के कारण उठ नहीं पा रही थी, धीरे-धीरे भीड़ इकट्ठी हो गई ,सभी कार वाले को गालियां दे रहे थे तभी कार में से एक युवक निकला उसने हाथ जोड़कर सभी से माफी मांगी और दौड़ कर मुझे उठाने लगा l मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगी जितनी चोट नहीं लगी थी उससे कहीं अधिक मैं चिल्ला रही थी l कुछ लोग कार वाले को पीटना चाहते थे पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बोले गलती दोनों की है, कार में लड़की को बैठाकर डॉक्टर को दिखाओl लड़के ने आव देखा ना ताव फट से मुझे गोद में उठा लिया और कार में बैठा दिया l मैं कुछ समझ नहीं पाई बस देखती रह गई, वह बुजुर्ग अंकल जी भी हमारे साथ बैठ गए l पास की डिस्पेंसरी में ले गए, वहां मेरी मरहम पट्टी की गई ।डॉक्टर बोला सब ठीक है कुछ खरोंचे आ गई हैं l मैं डिस्पेंसरी में बैठे बैठे उस युवक को गालियां दे रही थी, तभी वह मेरे पास आकर खड़ा हो गया l मैं एक पल के लिए उसको बस देखती ही रह गई, उसने मुझसे बड़े प्यार से पूछा “तुम ठीक हो ?”मैंने सिर्फ हाँ मे सिर हिला दिया “चलो घर छोड़ देता हूं”। ” नहीं मुझे कॉलेज जाना है” बड़े रूखे स्वर से मैंने बोला । तभी बुजुर्ग अंकल आए और बोले “जिद मत करो बेटा, अभी तुम घर जाओ”। मैं चुपचाप उन दोनों के साथ अपने घर चली गई l इस पूरी घटना ने हृदय में कई तरह के विचारों के भवर पैदा कर दिए l पूरी रात मैं सो नही पाई सुबह फिर कॉलेज के लिए निकल पड़ी। मेरी नजरें पूरी कल की घटना को याद किए जा रही थी तभी अचानक मैं सहम गई l वह युवक सामने ही खड़ा था मेरे पाव रूक गए l वह जैसे-जैसे मेरे करीब आ रहा था वैसे वैसे धड़कनों की आवाज तेज हो रही थी, उसने पूछा “कैसी हो? मैं सिर्फ उसे देखती रही ।उसने फिर से बोला “हेलो” कैसी हो? मैं झेप गई, सिर हिला दिया l उसने कल की घटना की माफी मांगी, मैं भी इतराई, जैसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया हो l उसने कहा वह कल सारी रात सो नहीं पाया, मैं कैसे बताऊं कि सो तो मैं भी नहीं पाई l मैंने कहा कॉलेज के लिए लेट हो रही हूं और जल्दी-जल्दी वहां से निकल गई, पर यह सिलसिला शुरू हो चुका था l दूसरे दिन फिर वह वहीं खड़ा मेरी राह देख रहा था l
मैंने भूमिका बांधते हुए उससे पूछा “मेरा पीछा कर रहे हो” वह हंसकर बोला “नहीं “बस तुमसे जान पहचान बनाना चाहता हूँ” । तुम्हारा नाम क्या है? मैं आगे बढ़ गई मन तो किया कि रुक कर नाम बताऊं, बातें करूं पर डर भी लग रहा था l अगले दिन कॉलेज जाते समय मेरी नजरें उसे ढूंढ रही थी, पूरे रास्ते में इधर-उधर देखती रही और वह नहीं दिखा मैं मायूस हो गई l कॉलेज में दिनभर मेरा मन नहीं लगा जैसे कुछ छूट गया हो या अधूरा अधूरा सा हो l सिर झुका कर कॉलेज से घर के लिए चल पड़ी l तभी एक आवाज ने चौका दिया “अब तो नाम बता दो” पूरे शरीर में एक झनझनाहट सी हो गई , मैंने सिर उठाकर देखा सामने वह खड़ा था l मैं मुस्कुरा पड़ी, वह भी मुस्कुरा पड़ा l “अंजलि”… ” मैं आशुतोष” उसने अपना पूरा परिचय दे दिया l मेडिकल का आखिरी साल है उसके बाद वह यहां से पुणे चला जाएगा l हम रोज मिलने लगे, दिल दिमाग पर हावी होने लगा हम दोनों के अलावा जैसे और कोई इस दुनिया में था ही नहीं या दिखाई नहीं दे रहा था l प्रेम वो गहरा समंदर है जो इस में डूबता है, वह डूबता ही चला जाता है, उसकी अच्छी बुरी सभी बातें मधुर संगीत की तरह लगने लगी l हम कभी पार्क में, कभी कॉलेज के बाहर रोजाना मिलने लगे l एक दूसरे के लिए कसमे वादे खाने लगेl परंतु यह कब तक, वह समय भी आ गया जब वह मेडिकल पूरा करके पूना जाने लगा l मुझ पर तो मानों कोई वज्रपात हुआ हो, मैं रो-रो कर मरी जा रही थी l आशुतोष मुझे समझाता रहा बस दो साल की बात है पर मैं मानने को तैयार नहीं हुई l हम दोनों के परिवार वालों को इन बातों का पता चला, दोनों परिवार वाले इस रिश्ते के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे l वह ब्राह्मण लड़का,मैं एक मारवाड़ी लड़की l मेरे माता पिता ने साफ अक्षरों में मना कर दिया और मुझ पर सख़्ती बढ़ा दी l आशुतोष के घर वाले भी तैयार नहीं हुए और वह पूना चला गया l मेरी जिंदगी तो मानो जैसे ठहर सी गई, सब खाली खाली, चारों तरफ सुना -सुना, सब बंजर सा दिखने लगा l
मैं गुमसुम सी रहने लगी, ना ज्यादा हंसती थी ना बोलती थी, देखते-देखते कॉलेज पूरा हो गया l पिताजी ने कड़े शब्दों से कहा अब आगे नहीं पढ़ाएंगे, इसकी शादी कर दूंगा l आशुतोष से मिलना, बात करना सब धीरे-धीरे छूट चुका था l एक दिन मेरे लिए एक रिश्ता आया, पिताजी ने घर में मेहमानों के स्वागत का प्रबंध करना शुरू कर दिया l घर को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था l पिताजी का आदेश था, जो रिश्ता आया है उसे कोई भी नहीं काटेगा l मैं तो बस कठपुतली थी l मुझे सजा धजा कर बैठा दिया गया, सारे मेहमान आ चुके थे l मैंने सिर उठाकर किसी को नहीं देखा l उस रिश्ते में मेरी कोई इच्छा नहीं थी l तभी एक आवाज ने मुझे चौका दिया “क्या? मुझसे शादी करने को तैयार हो” यह सुनते ही मेरे पूरे शरीर में वही पहले जैसी झनझनाहट शुरू हो गई, मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई l सिर उठाकर देखा तो आशुतोष खड़ा था, मैं हक्की बक्की रह गई, तभी पापा ने कहा “यह रिश्ता तुम्हें पसंद है अंजलि” ? मेरे आंखों से आंसू धारा बह निकली, सब लोग मुस्कुरा रहे थे ।मैं दौड़कर पापा के गले लग गई l आज मैं जान गई सच्चे प्रेम में बहुत ताकत होती है, प्रेम का आत्मा से गहरा संबंध होता है तभी मुझे मेरा आशुतोष मिल गया l इस घटना से मेरे मन में पापा के लिए प्यार और सम्मान और भी बढ़ गया l आज मैं बहुत खुश हूं पर यह सारी खुशियां मुझे मेरे पापा ने दी है l
सारिका सिंह,
अध्यक्ष,
लायंस क्लब ऑफ जमशेदपुर फेमिना