आया बसंत

आया बसंत

खेतों में सरसों के फूल, बागों में गेंदे के फूल- प्रकृति की यह अनुपम छटा बसंत के आगमन का संकेत है। ऋतुओं का राजा बसंत तन-मन को गुदगुदा देने वाला संदेश लेकर आता है। बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा की जाती है। ज्ञान, बुद्धि और संस्कार की देवी सरस्वती को आह्वान करते हुए उनकी आराधना की जाती है। बहुत घरों में बच्चे की पहली लिखाई स्लेट पर बसंत पंचमी को की जाती है। हमारे स्कूल में सरस्वती पूजा नहीं होती थी क्योंकि वह एक ईसाई स्कूल था। हम भी मन मारकर आस-पड़ोस के स्कूलों की सजावट और दोने का प्रसाद देखते थे। बिहार, बंगाल, ओडिशा राज्यों में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की प्रतिमा पंडालों में स्कूलों और कॉलेजों में रखी जाती है। खूब धूमधाम से उन्हें फूलों से सजाया जाता है| विद्या की देवी श्वेत परिधान में और उनकी पूजा पीले फूलों से – प्रकृति ने रंगों को भी बड़ी बखूबी से चुना है। पीला रंग है उत्साह का, जीवटता का और बलिदान का भी | बिहार में शादी के दिन वधू पीला ही पहनती है। पीला हल्दी का रंग भी है, उसे शुभ मानते हैं। शादी के पहले वर-वधू को हल्दी लगाने की परम्परा सामान्यतः पूरे भारत में है।

बचपन में हुई कमी को हमने कॉलेज में पूरा कर लिया। कॉलेज में भी सरस्वती पूजा नही होती थी क्योंकि वह भी ईसाई धर्म का कॉलेज था लेकिन वहाँ की नन्स उदार हृदय थीं। हम अपने कमरों में फोटो रखकर अगरबत्ती जला लेते थे। फिर आज पूरे दिन घूमने की आजादी थी। वीमेंस कॉलेज से पटना कॉलेज का सफर पीली साड़ियों के हर अंदाज में होता था। ये बता दूँ यहाँ कि पटना कॉलेज आल बॉयज कॉलेज था और हमारा कॉलेज आल गर्ल्स। अठारह-बीस साल में यह सफर काफी गुदगुदाने वाला था। बसंत ऋतुराज की माया हम पर हावी हो जाती थी। पूरे श्रृंगार में हम सब रिक्शे पर लद जाते थे। वह सफर, वो नोंक-झोंक, वो मिलना-मिलाना बहुत ही यादगार होता था। हमारे पहुँचने पर कॉलेज के लड़के हमारा भव्य स्वागत करते थे। थोड़ी चुहल, चुटकुले भी चलते रहते थे। देवी की मूर्ति के आगे नतमस्तक उस ज्ञान की देवी से कितनी गुहार लगाते थे। अब तो यह सब दूसरी दुनियाँ के स्वप्न की तरह लगता है।

बसंत के इस त्यौहार में ना आडम्बर है, ना ही कोई शोर-शराबा। माँ सरस्वती की पूजा में कोई बहुत रस्म-रिवाज नहीं थे। अगली शाम को मूर्ति भी विर्सजित हो जाती थी। माँ उतनी ही सादगी से चली जाती थीं। सरस्वती के हाथ में किताब, एक माला और वीणा होते हैं।

अर्थ है कि मनुष्य के बौद्धिक विकास में ज्ञान, योग और कला तीनों का महत्व है। मनुष्य के बाएं दिमाग का संबंध किताब, दाहिने का वीणा और माला का आध्यात्मिक विकास से है। बसंत पंचमी कहीं-कहीं ‘मदन पंचमी’ या “श्री पंचमी” के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि जब भगवान शिव अपनी समाधि में लीन हो गए तो देवों, ऋषियों को चिंता हुई कि उन्हें कैसे जगाया जाए। फिर कामदेव ने उन्हें फूलों और शहद के बाणों से उठाया। शिव की तपस्या तो भंग हुई लेकिन बेचारे कामदेव शिव की तीसरी आंख से जलकर भस्म हो गए। बसंत पंचमी उस प्रणय निवेदन जो पार्वती ने शिव के लिए लिया था- उससे भी जुड़ा हुआ है। हमारी कथाएँ, किवदंतियाँ, कहानियाँ धार्मिक प्रकरण हमेशा कुछ मूल्यों को दर्शाती हैं। बसंत पंचमी में प्रणय है, विरह है, संगीत है और है मधुरता।

इंस्टाग्राम, फेसबुक और नए पुराने संस्कारों से जूझती हमारी नई पीढ़ी अब थोड़ी उदासीन है अपनी परम्पराओं को निभाने में। लेकिन हमारी पीढ़ी ने अभी हार नहीं मानी है। बसंत के इस त्यौहार को पुरजोर से मनाते हैं। पीले फूल, पीले परिधान में सजधज कर हम नई पीढ़ी को सजग करते ही रहते हैं।

डॉ. अमिता प्रसाद
दिल्ली

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