लौट आया मधुमास
देविका कहीं शून्य में घूरे जा रही थी लेकिन मस्तिष्क में लगातार उथल-पुथल चल रही थी। आज हर हालत में उसे एक निर्णय पर पहुंचना था। पिछले कई दिनों से वह अनवरत दिल और दिमाग के संघर्ष में बुरी तरह फंसी थी,उलझी थी….पर अब…अब और नहीं।कहीं दूर से आती माँ की आवाज़ धीरे-धीरे उसके कानों में गूंजने लगी-” बेटा देख,बहुत संभल कर रहना,तू आम लड़कियों जैसी नहीं है। तू अपने पैरों पर खड़ी हो सके, इस समाज में अपनी पहचान बना सके इसलिए सबके खिलाफ़ जाकर,सबसे नाता तोड़ कर मैंने तेरी परवरिश की , मेरी लाड़ो! तेरे हाथों की लकीरों में प्यार की कहीं कोई रेखा नहीं है ,तू इन सब से दूर रहना।”
देविका अभी भी कहीं दूर शून्य में खोई सी थी। उसे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे वो देवेश की ओर खींचती चली गई,अपनी सच्चाई से मुंह मोड़े, ये जानते हुए भी कि उस जैसी लड़कियों का समाज अलग होता है और उस समाज की लड़कियों को न प्यार करने का हक़ है न विवाह करने का…..फ़िर भी दिल के हाथों मजबूर उसके क़दम ख़ुद ब ख़ुद देवेश की ओर बढ़ते चले गए । देवेश का व्यक्तित्व था भी तो सम्मोहित करने वाला, कॉलेज में हर किसी का अजीज़ । जितना हंसोड़ उतना ही संजीदा और उतना ही ज़िम्मेदार। आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक देवेश पढ़ाई और खेल दोनों में अव्वल था ।
देवेश और देविका दोनों ख़ामोश ज़बान से एक दूसरे से न जाने कितने कसमें वादे कर चुके थे। एक बहुत ही भावुक क्षण में बहते हुए देवेश ने देविका को बाहों में भरते हुए जल्द ही वैवाहिक बंधन में बंध जाने की बात कही और यही वो क्षण था जब देविका देवेश के प्यार के सुनहरे स्वप्न से जाग उठी थी ।
वो समझ नहीं पा रही थी कि देवेश से अपनी सच्चाई बताए तो बताए कैसे ? वो कैसे कहें कि वो पूरी ….. ,वो देवेश के प्यार के काबिल नहीं है……वो उसे पत्नी और संतान का सुख कभी नहीं दे सकती। अचानक देविका के चेहरे पर एक अजीब सी कठोरता उभर आई। सामान पैक कर स्टेशन की तरफ़ उसके क़दम बढ़ने लगे,उसने ठान लिया था कि वो देवेश की ज़िंदगी से कहीं दूर चली जायेगी,वो उसकी ज़िन्दगी को दांव पर नहीं लगा सकती।
ट्रेन की खिड़की के पास अपना सिर टिकाए अपने शहर को वो अंतिम बार नज़र भर के देख लेना चाहती थी। बंद आंखों से देवेश के प्यार को महसूस कर लेना चाहती थी। “मैडम!यहां कोई बैठा है क्या?” आवाज़ सुनकर उसकी तन्हाई में अचानक खलल पड़ गया,आवाज़ की दिशा में नज़रें घुमाते ही देविका हड़बड़ाकर खड़ी हो गई-” ओ… मैं….मैं…कुछ ज़रूरी का…म ।” इसके आगे वो कुछ न कह पाई ।
देविका की आंखों में आंखें डालकर देवेश ने कठोरता से पूछा-” देविका!हमने एक दूसरे को दिल से चाहा था न , फ़िर ये फैसला तुमने अकेले कैसे ले लिया ? क्या तुम मुझे इतना ही समझ सकी? क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था?मुझे तुम्हारी किसी सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं समझी । देविका ने सिर झुकाए ही दबे स्वर में समझाना चाहा कि वो एक…..एक… कि…न्नर….लेकिन देवेश आज कुछ सुनने के मूड़ में नहीं था। वो देविका और उसका सामान लेकर ट्रेन से नीचे उतरता है और उसे गले लगाकर शरारत से धीरे से फुसफुसाकर कहता है-“चलो जल्दी से शादी कर लेते हैं ।”
देविका देवेश की आंखों में छलकते प्यार को देखकर खुशी से झूम उठी,उसके जीवन में मादक मधुमास जो छा गया था। उसके जीवन की कड़वी सच्चाई के पतझड़ के दिन बीत चुके थे,मधुमास की मादक खुशबू से उसका प्यारा संसार मुस्कुरा रहा था। वसंत की मदहोश कर देने वाली बयार से उसका मन हल्का होकर देवेश के प्यार में लहक उठा था। देवेश के सच्चे प्यार को ठुकराने की हिम्मत अब उसमें नहीं थी।
डॉ.रत्ना मानिक
टेल्को,जमशेदपुर
झारखंड