कैसे मनाएँ
कैसे मनाएँ आज़ादी का जश्न..?
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म…?
विश्व पुरुष जब अश्रु बहाता हो,
कैसे भारत माँ का श्रिंगार करें हम ..
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म।
मानवता पर जब घना संकट मंडराता हो,
जीवन ,मृत्यु से दया की भीख माँगता हो,
मृत्यु का तांडव अविराम चलता हो..,
हर गली-मोहल्ले में मृत्यु का साया छाया हो,
कैसे आज़ादी का जश्न मनाएँ हम ..?
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म..?
चूल्हे की आग जब ठण्डी पड़ी हो ,
घर-घर में क्षुधा की अनबुझ अग्नि भड़की हो,
बच्चों की खोखली आँखों से मायूसी टपकती हो ,
बेबसी यहाँ- वहाँ बिखरी हो,
कैसे गाये जय-गाथा कुम्हलाया बचपन ..?
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म…?
नवजात शिशु जो माँ का कोमल स्पर्श पा न सका था,
माँ ने जिसको बाहों में ले चूमा भी न था,
कोरोना की भेंट जिसका जीवन चढ़ गया,
कैसे भुलाएँ उस नन्हें जीवन का अंत…?
क्या शुभ आशीष अब माँगें हम,
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म…?
दम घुटता हो जब उस नौजवान का,
एक साँस के लिए तड़पता हो मछली की तरह,
आँखों में जल रही हो उसके अधूरे सपनों की चिता,
माता माँगती हो दिन-रात ईश्वर से दुआ ।
बदहवास माँ का बेबस रूदन…,
कैसे मनाएँ आज़ादी का जश्न …?
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म…?
हार रहा हो बेटा जीवन की जंग पल-पल,
बचाने का हर प्रयास हो रहा हो निष्फल,
ध्वस्त हो रहा हो आँखों के आगे बुढ़ापे का संबल,
असहाय मात-पिता करते हों करुण क्रंदन..,
कैसे मनाएँ आज़ादी का जश्न…?
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म..?
समूचा विश्व बना हो युद्ध का मैदान,
कदम-कदम पर छिप कर बैठा हो शत्रु अजान
कर रहा हो प्रहार पल-पल अविराम।
शवों से भर गया हो विश्व का हरित प्रांगण,
कैसे सजाएँ सतरंगी तोरण…?
कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म…?
अवकाश कहाँ अभी जश्न का ,
चल रहा युद्ध भीषण जीवन और मृत्यु का।
दूर नहीं दिन मौत की शिकस्त का,
है यक़ीं हमको ज़िंदगी की जीत का।
मिलजुल कर जीवन को विजयी बनाना है,
ज़िंदगी की बुझती लौ को तूफ़ाँ से बचाना है।
अंधकार में आशा का दीप जलाना है,
कोरोना को हर क़ीमत पर हराना है ।
बिन बंदूक़ बिन वर्दी लड़ रहा है कोरोना का वीर
निस्वार्थता की मिसाल बन डटा है वह धीर गंभीर।
समस्त विश्व है आज अनुग्रहीत ,
अर्पण उसको आभार सुमन आभार गीत ।
दिन-रात सफ़ाई में जुटा वो कोरोना का वीर ,
नमन उसको करता हर देशवासी होकर विनीत ।
सारे शहर की गंदगी वो साफ़ करता है ,
अस्पताल में भी अपने सारे फ़र्ज़ निभाता है।
मृतकों को सम्मान सहित विदा करता है ,
हमारे-आपके लिए हर पल खुद को जोखिम में झोंकता है।
डेलीवरीमैन है कोरोना का वीर ,
जो अपने जीवन से खेल जाता है,
मेरे घर के दरवाज़े पर लेकिन..
जीने के सब ज़रूरी सामान छोड़ जाता है।
ऐम्ब्युलन्स का चालक है कोरोना का वीर !
जीवन बचाने के लिए समय से नित झगड़ता रहता है,
न दिन देखता है न रात ,ऊँची-नीची राहों पर दौड़ता रहता है ,
मरीज़ों को झटपट अस्पताल पहुँचाता रहता है।
पीपीई में लिपटी नर्स है कोरोना की वीर !
पीपीई में क़ैद घंटों तपती रहती है,
भूख-प्यास चुपचाप सहन करती है ।
हर मरीज़ के सिर पर हाथ रख हौसला बढ़ाती रहती है,
ठीक से न खाने पर उनको गुस्सा भी दिखाती है।
रोतों को हंसाती है ,
कभी गीत ,कभी कविता तो कभी चुटकुला भी सुनाती है ।
मौत की दहलीज़ पर बैठी वो परी
मन बहलाती रहती है ।
पुलिसकर्मी है कोरोना का वीर ,
जो विपदा में व्यवस्था बना लेता है ।
लोगों से सुरक्षा नियमों का पालन करवाता है ,
सड़कों पर , चौराहे पर ,बाज़ार में ,अस्पताल में ,
मुस्तैदी से फ़र्ज़ निभाता है।
हर गली मोहल्ले में
अनुशासन का ताना-बाना बुनता रहता है ।
डॉक्टर है कोरोना का वीर !
महीनो से जो घर न जा पाया है ,
महामारी के इस अंधड़ में वो सबका सरमाया है ।
मरीज़ों के उमड़ते सैलाब में चट्टान बन अड़ा है,
अंधकार में सूरज सा चमक रहा है।
हताश -निराश मरीज़ों को बूँद-बूँद आशा पिलाता है ,
न जाने कितने मरीज़ों को मौत के मुँह में जाते देखता रहा है ,
किंतु जब किसी मरीज़ को मौत के आग़ोश से खींच लाता है
तब, इस चट्टान की आँखों में भी
आंसू का एक कण चमक जाता है ।
कोरोना से जंग जिस दिन हम जीत जाएँगे,
तिरंगा ऊँचा लहरायेंगे!
कोरोना के इन वीर योद्धाओं को
पहले शीश नवाएँगे।
जो छोड़ कर चले गए उनकी याद में
आँखों को नम कर जाएँगे,
जो मृत्यु के मुँह से निकल आए
उनको गले लगाएँगे।
एक देश नहीं ,एक प्रांत नहीं
सम्पूर्ण विश्व में जश्न मनाएँगे ।
कोरोना को जिस दिन हम हराएँगे
उस दिन आज़ादी का जश्न धूमधाम से मनाएँगे।
रचना मल्लिक
भुवनेश्वर, ओडिशा