किश्ती और तूफ़ान
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के ,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के |
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के ,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के |
जैसे जैसे एक और गणतंत्र दिवस निकट आता जा रहा है, मेरी स्मृति के पटल पर गीतकार प्रदीप द्वारा लिखित फिल्म जागृति का यह देश भक्ति से ओतप्रोत गीत फिर से गूँज रहा है । हेमंत कुमार द्वारा लयबद्ध और मोहम्मद रफ़ी की अविस्मरणीय आवाज़ में गाया गया यह सुंदर गीत १९५० के दशक के मध्य में अत्यंत ही लोकप्रिय हुआ था|
हम सब, जो भारत के गणतंत्र बनने के आसपास जन्मे, स्कूलों में थे | हर स्वाधीनता दिवस पर और हर गणतंत्र दिवस पर यह गीत, पेड़ों पर बंधे लाउड स्पीकरों से ज़ोर ज़ोर से बजता था| नीली और सफ़ेद कड़क यूनिफार्म पहने छोटे छोटे बच्चे परेड के मैदान में जमा होते| हाथों में भारत का तिरंगा झंडा और देशभक्ति के नारे लगाते नन्हे नन्हे भारतीय | क्या समां था! गीतकार ने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की नई पीढ़ी पर आशा और विश्वास को जीवंत कर दिया था | बच्चे थे, गीत का इतना गूढ़ अर्थ तो तब समझ नहीं आता था पर गाना बड़ा ही अच्छा लगता था |
आज वह सब बच्चे बड़े ही नहीं वृद्ध हो चले हैं | उनके बच्चों के बच्चे अब परेड मैदान में अपनी स्कूल यूनिफार्म इकठ्ठा होते हैं | मैं अपनी पीढ़ी की ओर से जब पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो एक आवलोकन करने की इच्छा होती है | क्या हमारी पीढ़ी हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की आशाओं और अपेक्षाओं पर खरी उतर पायी है ?
किश्ती वास्तव में भयंकर तूफ़ान से ही निकाली गई थी | अंग्रेज़ों के २०० साल के शासन में भारत एक सशक्त और सम्पन्न देश से एक भिखारी की स्थिति में आ गया था| हमारी आर्थिक व्यवस्थता चरमरा गई थी | भारत के सकल घरेलु उत्पाद की वृद्धि दर २२.७ % से गिर कर २.७ % आ गयी थी | जहाँ भारत का निर्यात विश्व का २५% था, वह सिकुड़ कर मात्र २.३ % रह गया | भारत का प्रख्यात कपास पानी के भाव इंग्लैंड की मिलों को भेजा जाता और वहां से कपड़ा बन कर दस गुने भाव में भारत में आयात होता | सोने की चिड़िया के सारे सुनहरे पंख नोच लिए गए थे | एक मज़बूत जहाज़ एक छोटी सी कमज़ोर सी किश्ती में बदल दिया गया था।
आर्थिक शोषण मात्र ही नहीं, धर्म की राजनीति को इतना बढ़ावा दिया गया कि भारत को स्वतंत्रता मिलने केपहले मज़हब के नाम पर टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया| नवजात स्वतंत्र भारत लहू लुहान हो गया।परिवार बिखर गये।बच्चे माँ बाप से बिछड़ गये। भाई भाई से जुदा हो गया। इन्सान इन्सान के खून का प्यासा हो गया। हिंदुओं और मुसलमानों के पलायन की अफरा तफरी में लाशों से लदी ट्रेनें दिल्ली और लाहौर के स्टेशनों पर पहुंची।दस लाख लोग बिना बात क़ुर्बान हो गये और एक करोड़ पचास लाख घर से बेघर हो गये। रक्तरंजित दो देशों का जन्म हुआ | पाकिस्तान ने इस्लाम को अपनाया और भारत एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बना |
महात्मा (गाँधी) की निर्मम हत्या कर दी गयी| सत्य और अहिंसा का पुजारी घृणा और धार्मिक कट्टरवाद का शिकार हो गया | देश शोक और बेबसी के सागर में डूब गया |
इन कठिन परिस्थितियों में स्वतंत्र भारत का नव निर्माण आसान नहीं था | परन्तु भारत ने परिस्थितियों का मुकाबला जमकर किया| देश के औद्योगिक विकास के लिए मज़बूत नींव डाली गयी जिस के ऊपर हमारे आज के विशाल कल कारखाने खड़े हैं| हरित क्रांति और श्वेत क्रांति ने हमें खद्यान्नों और दूध के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया | स्वतंत्रता के तुरंत बाद देश में अनाज और विदेशी मुद्रा की कमी इतनी थी कि हमें अमेरिका से लाल गेहूं पी एल ४८० (रुपये में भुगतान ) के अंतर्गत मॅगाना पड़ा | वह इतना ख़राब था कि उसे मवेशी भी न खायें | अब भारत काफी समय से दोनों को निर्यात करता है | उत्कृष्ट श्रेणी के शैक्षिक और व्यावसायिक संस्थानों का निर्माण हुआ | कई सारे आई आई टी, आई आई एम् और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस इसी श्रेणी में आते हैं | देश ने परमाणु शक्ति और अंतरिक्ष पर अनुसन्धान प्रारम्भ किया और दोनों में विशेष सफलता भी पायी | यह सब भारत ने अपने ही बलबूते और दम ख़म पर किया|
भारत में एक मज़बूत लोकतंत्र का स्थापित होना एक और विशेष तथा उल्लेखनीय उपलब्धि है| स्वतंत्रता मिलने के समय विश्व को कतई यह विश्वास नहीं था कि हम एक मज़बूत लोकतंत्र यहाँ बना सकेंगे | हमारा पडोसी देश आज तक यह नहीं कर सका |सेना के साये में यह संभव ही नहीं है | भारत में 1२५ करोड़ की भारी आबादी के बावज़ूद लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं लिए लगातार चुनाव हुए हैं | दूर दराज़ के दुर्गम इलाकों में, जहाँ पहुंचना बेहद कठिन है, वहां भी भारतीयों ने अपना वोट डाला है| यही नहीं, चुनाव के बाद नतीजों के अनुसार सत्ता बड़ी आसानी से एक राजनैतिक दाल से दूसरे दल को संवैधानिक रूप से सौंपी जाती है | एक देश, जिसमे १९४७ में सिर्फ १२ % लोग लिखना पढ़ना जानते थे , इतने बड़े पैमाने पर चुनाव करवाना ही एक बड़ी चुनौती था | आज देश के ७६ % लोग शिक्षित हैं | इन सब उपलब्धियों का श्रेय सब भारतीयों को जाता है; हमारे किसान, जवान, आम जनता और विशेषकर हमारे वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, योजनाकार और प्रशासक, जिनके मार्गदर्शन में यह सब हुआ |
भारत के भविष्य में क्या है? आज भारत विश्व के प्रगतिशील देशों में अग्रणी है, किन्तु हमें विकसित देश बनना है | बहुत कुछ हासिल हुआ पर चुनौतियाँ अभी भी बहुत हैं | हमें सजग रहना है | किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में यह आवश्यक है कि विरोधी दल भी सशक्त हो, राजनीतिक मतभेद को प्रकट करने में कोई रूकावट न हो | न्यायपलिकाएँ पूरी रूप से स्वतंत्र हों | संवैधानिक संस्थाएं जैसे कि इलेक्शन कमीशन किसी भी प्रकार के बंधन में न हो – वह पूरी तरह से स्वतंत्र हो भी और देखने वालों को ऐसा लगे भी | पत्रकार पूरी आज़ादी से सच को सामने रख सकें | भारत एक विविधता में एकता वाला देश है | उसकी इस बहुरंगी चेतना को सुरक्षित रखना अनिवार्य है | भारत का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि आज की युवा पीढ़ी और बच्चे कैसे इन थपेड़ों का सामना करते हैं |
फिल्म जागृति का यह गीत आज भी उतने ही मायने रखता है जितना तब रखता था | हमारी पीढ़ी ने राष्ट्र का गौरव और सम्मान करीब तीन चौथाई शतक तक ऊंचा रखने की पूरी कोशिश की है | वह कमज़ोर सी किश्ती फिर से एक शक्तिशाली जहाज़ बन चुकी है| पर अभी बहुत आगे जाना है | अभी तो बहुत सारी मंज़िलें फ़तह करनी हैं | हमारी आशाएं और विश्वास उसी प्रकार भारत के बच्चों और युवाओं पर है जैसा कि स्वतंत्रता सेनानियों को हमारे ऊपर था |
हमारे भारत के ७२वे गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में, मैं अपनी पीढ़ी की ओर से फिर यही कहूँगी –
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के |
जय हिन्द !!
नीरजा राजकुमार
आईएएस (सेवानिवृत्त)
पूर्व मुख्य सचिव, कर्नाटक