त्योहारों में उल्लास

त्योहारों में उल्लास

ढूंढना हो अगर त्योहारों मे तो
उसका ध्येय ढ़ूंढ़िए उद्देश्य ढ़ूंढ़िए।
उपहारों के बंद डब्बों मे
लेने वाले की मुस्कान
देनेवाले का अरमान ढ़ू़ंढ़िए।

त्योहार धर्मों का नहीं
उमंग और उल्लास का होता है,
बड़ी कठिन डगर है इस जीवन की
ये छोटे छोटे त्यौहारों के पड़ाव ना होंगे
तो हम थक कर जीवन की जंग हार ना जाएंगे
क्या फर्क पड़ता है कि
सरस्वती के आंगन मे संता का पेड़ है।
माता सरस्वती का हृदय और आंगन दोनो विशाल है।
सब तो सरस्वती की हीं संतानें हैं।
त्योहारों मे धर्म नहीं उल्लास ढूंढिए।

कुमुद “अनुन्जया”
साहित्यकार
भ्रमरपुर भागलपुरी (बिहार)

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