आत्मकथा
आत्मकथा लिखने का विचार जब भी आता अन्तर्मन में एक उथल- पुछल्ले सी मच जाती। बचपन बीता, जवानी बीती,चलते ही रहे, सदा चलते ही रहे, खट्टी-मीठी यादों को समेटे। समय जो मुट्ठी में बन्द रेत सा फिसल जाता है फिर कहाँ वापस आता है।जाने क्या क्या रंग दिखाता है …
ज़िन्दगी कभी सहेली कभी पहेली
ज़िन्दगी कभी रसीली कभी कँटीली
अनेक रूप रंगों से गुजरती जब तीसरे पड़ाव में पहुँचती है तो मूल से ब्याज अधिक प्यारा लगने लगता है।ज़िन्दगी की ऊहापोह से थककर अब आप शान्ति की ओर अग्रसर होते हैं।ऐसे में बच्चों के बच्चों की किल्कारियाँ कर्णप्रिय लगने लगती हैं और आप अपना जीवन उन्हीं की देखरेख में, उन्हीं के लालन पालन में लगा देते हो।लोरी और परियों की कहानी सुना सुनाकर आनन्द लूटते हो।नन्हें नन्हें खूबसूरत बच्चे , आपके पोता पोती जब बड़े हो जाते हैं।उनकी भी अपनी दुनिया बसने लगती है, अपने अध्ययन में,अपने संगी-साथियों में मस्त रहने लगते हैं।ऐसे में जब वे आकर प्यार से दादी-नानी कहकर पुकारते हैं और आपसे लिपट चिपट जाते हैं तो आप भी उस प्यार में सराबोर हो जाते हैं।आपका मन अन्दर तक भीग जाता है।ऐसे ही एक जीवन्त, सुन्दर घटना को, जिसका मेरी आप बीती में, मेरी अपनी आत्मकथा में बहुत महत्त्व है। आपके साथ साझा करना चाहूँगी।
कैलिफोर्निया ही क्या समस्त अमेरिका में क्रिसमस का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।जैसे भारत में दिवाली और ईद का त्योहार मनाया जाता है।क्रिसमस का त्योहार,क्रिसमस की धूम -धाम ,घर घर में अनेक प्रकार की सजावट ,सारा शहर ही जैसे एक दुल्हन बन जाता है।चमचमाती रोशनी , चारों तरफ़ बिजली के बल्बों से सजाये गये वृक्षों की शोभा अद्वितीय होती है।सुबह तो देखते ही बनती है हर घर में बहुत उल्लास रहता हैं ।हर घर में एक क्रिस्मस का पेड़ लगाया जाता है ।जिसको तरह तरह के आभूषणों से सजाया जाता है। भाँति भाँति के उपहार एक दूसरे को दिए जाते हैं ।अमेरिका में रहते हुए ऐसा लगता था कि जैसे दिवाली ही मनाई जा रही है ।
मेरी आंखें भर आईं जब मेरी पोती और पोते ने क्रिसमस के अवसर पर सुंदर सा उपहार , मुझे दिया ।मैंने बच्चों से कहा ,अरे बच्चों ये उपहार मेरे लिए क्यों ? बड़ों के द्वारा बच्चों को उपहार दिए जाते हैं न कि बच्चों के द्वारा बड़ों को।मेरी पोती खिलखिलाकर हंसने लगी ।बोली ,अरे दादी खोलकर तो देखो ।ख़ुशी ख़ुशी जब उपहार खोला तो मन प्रफुल्लित हो उठा ।बच्चों ने अपने पैसे इकट्ठे कर , एक बहुत सुंदर,मुलायम ,दूध जैसा धवल कंबल,जिसके ऊपर समस्त परिवार के अनेकों चित्र छपवाए थे और इतने प्यार के साथ मुझे भेंट दिया ।मैं उसे देखकर भौंचक्की रह गई।और बड़े प्यार से मैंने अपने बच्चों को गले लगाया।
मेरी आंखें भर आईं और मुझे याद हो आई, कहानीकार सम्राट प्रेमचंद जी की कहानी ‘ईदगाह’ जिसमें अमीना ने अपने नन्हे पोते हामिद को चार पैसे ईद के मेले में जाने के लिए दिए थे।हामिद ने मिठाई न खाकर, पैसों से एक चिमटा ख़रीदा था।उसको लगा मेरी दादी जब रोटी बनाती है।उसके हाथ जल जाते हैं।अब चिमटे से पकड़कर, दादी रोटी बनाएंगी तो उनके हाथ नहीं जलेंगे ।
मैं अब जब भी कभी ठंड में उस मखमली कम्बल को चारों ओर लपेटकर बैठती हूँ , तो बच्चों के सहज,सलोने ,मीठे प्यार से आंनदित हो जाती हूँ और बच्चों को अनेकों आशीर्वाद देती हूँ।देश हो या विदेश,बच्चों का निश्चल प्यार एक जैसा ही होता है।सोचते सोचते कम्बल की गर्मी में मेरी आँख लग जाती। ये अनमोल चित्र मेरे जीवन की सुखद धरोहर हैं।
प्रो. नीलू गुप्ता विद्यालंकार
कैलिफ़ोर्निया (अमेरिका)