चाय
चाय;तुझे गोरों ने लाया
हमारी धरती, पहाड़ों और तराइयों पर बसाया
बने हरे भरे चाय बगान
हज़ारों कामगार को मिले रोज़गार।
चाय, तेरे रूप अनेक
रच बस गई इस धरती पर
पूरब -पश्चिम
उत्तर -दक्षिण
अमीर -ग़रीब
बन गई सबकी चाहत
चाय तेरे भिन्न भिन्न रंग!
कभी गोरी
कभी काली
सर्दी में अदरक वाली,
कभी इलाइची की ख़ुशबू लिए,
गरमी में सौंफ और पुदीने की सुगंध लिए,
कभी मीठी कभी फीकी
मेहमान हो तो चाय
पकौड़े की शान चाय
भजन कीर्तन में चाय
हर गोष्ठी, चर्चा में चाय
सिर दर्द में चाय
उबासी लो तो चाय
अकेलापन की सहेली चाय
हर मर्ज़ की दवा हो तुम।
आओ दोस्तों
हो रही है
चाय की तलब
मिल कर ले चुस्की
अदब से हम सब।
अनीता सिन्हा
गुजरात