एक प्याली चाय
प्रेम की परिभाषा है, एक प्याली चाय,
भोर की पहली किरण की संगिनी,
सर्द सुबह को मादक महक से गुदगुदाती,
आनंद के चरमसुख पर पहुंचाती है…
एक प्याली चाय…..
प्रेयसी के रूप सी, कभी गोरी, कभी काली,
तेज़-तीखी सजनी सी, काली मिर्च-अदरक वाली,
मनभाती, दिल-लुभाती, सपनों में आती,
दिन-भर जी तोड़ मेहनत करवाती…..
एक प्याली चाय…..
ज्यों तड़पे मन माशूका की झलक-मिलन को,
ठीक वैसे सुबह-सबेरे दशा हो मेरी,
एक प्याली चाय के चुम्बन को,
आनंद के चरम-सुख पर पहुंचाती है,
एक प्याली चाय……..
मोदी से जुड़, राजनीति की रानी बन बैठी,
जान मेरी हो गई गर्वीली, हठीली, नखरीली,
ग्रीन-ब्लैक-पुदीना-रोज़-कैमोमाइल-जैस्मीन,
तरह तरह के रूप से दुनिया को रिझाती है,
पर मैं भी कोई देवदास से कम नहीं,
हर रूप-रंग में मुझे वह भाती है…..
मेरी एक प्याली चाय….
आनंद के चरमसुख पर पहुंचाती है…
एक प्याली चाय…..
सुधा गोयल ‘नवीन’
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड