कोविड का कहर

कोविड का कहर

यह जो सुंदर सी प्रकृति हमारे चारों ओर बिखरी हुई है- पृथ्वी, चाँद, सौर मंडल, सितारे जो स्वयं एक सौर मंडल हैं, हमारा मिल्की वे (milky way) जिसमे न जाने कितने सौर मंडल हैं बल्कि पूरा ब्रह्माण्ड जिसमे अनगिनत मिल्की वे हैं- यह सारे के सारे उस निर्विकार, निर्गुण पूर्ण ब्रह्म का अभिव्यक्त स्वरूप है और उतने ही पवित्र और पूज्यनीय भी है | इसलिए हमारे वेदों में प्राकृतिक शक्तियों को देवताओं का स्थान देकर उन्हें पूज्यनीय बना दिया गया था |

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व: |
परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ || 11||

श्रीमदभगवद्गीता गीता के अध्याय ३ और श्लोक ११ के अनुसार मनुष्य को निस्वार्थ भाव से प्राकृतिक शक्तियों को उन्नत करना चाहिये और वह बदले में मनुष्य जाति को पुष्ट और उन्नत करती रहेंगी | आज की भाषा में अर्थ है कि यदि पर्यावरण और वातावरण की रक्षा नहीं की गई तो भीषण अनर्थ हो जायेगा और वही हुआ।आधुनिक मानव ने सोचा कि यह प्रकृति तो उसके ऐशोआराम के लिए ही बनाई गयी है | एक मदमस्त स्वामी की भांति उसने प्रकृति का शोषण बिना सोचे समझे शुरू कर दिया | यह तो प्रति प्रहार होना ही था | बस केवल समय और स्थान निर्धारित करने की बात थी| वह वुहान चीन में पिछले साल नवंबर में हो गया | बस दुःख की बात यह है कि कोई भी अनहोनी हो उसका प्रहार अधिकतर गरीबों को ही झेलना पड़ता है | पर्यावरण दूषित करते हैं विकसित देश, मूल्य चुकाते हैं प्रगतिशील देश | दूसरे देशों से कोविड वायरस आरम्भ में वायु से आवागमन करने वाले बोर्डिंग पास रखने वाले लोगों के द्वारा देश में फैला पर भुगता बिचारे राशन कार्ड रखने वाले श्रमिक वर्ग ने|

आरम्भ में पता ही नहीं चला कि यह एक फ्लू वायरस का ऐसा भयंकर संक्रामक रूप है कि देखते देखते करोड़ों लोग इसकी चपेट में आ जायेंगे और लाखों इस संसार से कूच कर जाएँगे| कोरोना वायरस वैज्ञानिकों को कई दशकों से ज्ञात था | कोविड उसका एक नया,अनजाना और भयंकर स्वरूप था | नवंबर में चीन संक्रमित था पर हम सब इत्मीनान से घूम रहे थे | व्यक्तिगत स्तर पर मैं दिसंबर के आखिरी सप्ताह में केरला और २४ फरवरी से ४ मार्च २०२० तक मिस्र की यात्रा कर के जैसे ही वापिस आई कि इस रोग का भयावह चेहरा सामने आने लगा | एयरपोर्ट से ही फॉर्म भरने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी | २२ मार्च से जो लॉक डाउन शुरू हुआ तो वह महीनों चला |

हमारे सशक्त प्रधानमंत्री ने हर भारतीय के जीवन को बहुमूल्य बताते हुए आवागमन पर पूरी रोक लगा दी | हज़ारों मज़दूरों की रोज़ी रोटी चली गई | परदेस में खाने को नहीं, भाड़े के घर खाली करा लिये गए | भारत का मज़दूर भूखा नंगा पैदल ही निकल पड़ा सैकड़ों मीलों का लम्बा सफर तय करके अपने गाँव पहुँचने के लिए | दूध वितरण के टैंकर्स, सीमेंट मिलाने के मिक्सर्स जो कुछ भी चार पहिये पर चलने वाला मिला, सारी जमा पूँजी लगा कर ले लिया | कुछ भाग्यशाली घर पहुँच गए, कुछ की लाश और कुछ कहीं ऐसे ही गायब हो गए कि उनका पता ही नहीं चला |

टीवी पर दिल दहला देने वाले नज़ारे देखे| भूखे प्यासे हज़ारों की तादाद में उमड़ते लोग, एक अकेली औरत के साथ एक छोटा बच्चा गोदी में, एक ऊँगली पकड़ कर चलता हुआ और एक छोटी पोटली पीठ पर | क्या वह घर पहुंची ? एक ९-१० साल का बच्चा अकेला रोते हुए | काम की तलाश में बिहार से दिल्ली आया था और अब अपने गांव वापिस जाना चाहता था |भारत के विभाजन के बाद पहली बार इस प्रकार के लाचार और दुखी लोगों का सामूहिक पलायन देखने को मिल रहा था। देश में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं का चरमराता हुआ बुनियादी ढाँचा बस गिरने गिरने को हो गया।

इन कठिन परिस्थितियों में एक सुनहरी किरण भी थी | कहते हैं कि मनुष्य का असली चरित्र संकट के समय ही सामने आता है | गुरुद्वारों ने सड़कों के पास लंगर लगा दिये | सैकड़ों स्वयंसेवी भारत के भूखे प्यासे, थके हारे गरीबों की मदद के लिए अपनी जान की चिंता करे बिना जुट गये | सिख धर्म की परंपरा, जिसके अंतर्गत भूखे को बिना जातपांत का भेद किये खाना खिलाना और लंगर के बनाने में मदद करना, को और सारे गुरुओं को शत शत नमन | कुछ परिवारों के सारे सदस्य कोविड का शिकार हो गए | कुछ महिलाओं ने उनके यहाँ तीन वक्त का खाना पहुँचाने की ज़िम्मेदारी ले ली | लगा कि मानवता फिर से जाग गई |

हमारे डॉक्टर, नर्सें, सफाई कर्मचारी, स्वास्थ सेवाओं से जुड़े सारे लोग, पुलिस, प्रशासनिक वर्ग सबने स्वयं की परवाह किये बिना अपने कर्त्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाया और अभी भी कर रहे हैं | कई तो शहीद हो गए | इस कहर से शायद कोई ही अछूता बचा हो |

पूरे विश्व में तक़रीबन ७ करोड़ लोग संक्रमित हुए | उन में से १५ लाख लोगों की मृत्यु हो गई | भारत की बात करें तो लगभग १ करोड़ लोग इस रोग के शिकार हुए और १ लाख ५० हज़ार की मृत्यु हो गई | अभी भी प्रकोप पूरी तरह से जारी है और जब तक आप इसे पढ़ेंगे यह आंकड़े और भी बढ़ जायेंगे | यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है जिसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता | कैसी विडम्बना है कि यदि किसी दिन या किसी सप्ताह कुछ हज़ार कम लोग मरते हैं तो लगता है कि महामारी पर विजय प्राप्त कर ली और फिर विनाश की एक और लहर आती है और फिर से निराशा के बादल मंडराने लगते हैं |
हम में से हर कोई व्यक्तिगत स्तर पर इस सर्वव्यापी महामारी से प्रभावित हुआ है | मैं ने आईएएस में अपनी बैचमेट को खो दिया | एक और ऑफिसर, जिन्होंने मेरे साथ कई विभागों में बहुत कुशलता पूर्वक काम किया था , उनकी भी इस खतरनाक बीमारी से हाल में ही मृत्यु हो गई | इस रोग का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि एक बार संक्रमण हुआ तो फिर रोगी को सब से पूर्णतयाः अलग कर दिया जाता है| यह महामारी है ही इतनी संक्रामक |यदि अस्पताल में भर्ती कर दिया गया तो कोई भी मरीज़ के आस पास भी नहीं आ सकता है | बस प्लास्टिक से ढके अंतरिक्ष के यात्री जैसे डॉक्टर और नर्सें|

कैसा लगता होगा आई सी यू (ICU ) में पड़े कोविड के मरीज़ों को ? अकेले ही इस भयंकर संक्रमण से जूझना | कोई छूना भी नहीं चाहता और मृत्यु शैय्या पर लेटे कई बार अंतिम सांस लेने की नाकाम कोशिश| मृत्यु जीवन का शाश्वत सत्य है | जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है | पर यह कैसी दर्दनाक मृत्यु है | कई बार तो अन्त्येष्टि क्रिया भी महानगर पालिका के कर्मचारी ही करते हैं और स्वजनों को शव तक नहीं मिलता | सोचने मात्र से ही दिल दहल उठता है |

एक समय था कि आदमी ने प्रकृति के लिये प्लास्टिक से गंभीर खतरा पैदा कर दिया था | ऐसा लगता था कि हमारे द्वारा बनाये गए और फेंके गए प्लास्टिक से धरती का दम ही घुट जायेगा | पर अब हम देखते हैं कि मनुष्य स्वयं प्लास्टिक में लिपटा हुआ अपने स्वजन के एक छोटे से स्नेहमय स्पर्श मात्र का मोहताज़ हो जाता है | यह प्रकृति का बदला नहीं तो और क्या है |

मानव की वेदना से बेखबर, लॉकडाउन के समय प्रकृति मुस्कुरा उठी। प्रदूषित हवा स्वच्छ होने लगी।कल कारख़ाने सब बंद थे। नदियाँ साँस लेने लगी। यातायात पर पूरी रोक लगी तो वाहनों के शोर के बजाये चिड़ियों की चहचहाट से वातावरण गूँज उठा। दिल्ली के राजपथ पर, जहाँ असीमित वाहनों की कतारें लगी रहती थीं, मोर उतर आए और नृत्य करने लगे। अजीब सा समां था |हवा साफ़ और निर्मल पर आदमी के मुँह पर मास्क |उसे खुली हवा में सांस लेने की अनुमति नहीं थी |

परिवार के लोग साथ में समय बिताने लगे। घर के बनाये खाने में नया स्वाद आने लगा।पहली बार धन से पहले स्वास्थ्य की आकांक्षा और प्रार्थना होने लगी। पर जो जीवन का सुरक्षा चक्र माना जा रहा था वही आर्थिक व्यवस्था के लिये फाँसी का फंदा बन गया।लोग बेरोज़गार हो गये। दो समय खाने के लाले पड़ गये।

प्रधानमंत्री ने फिर घोषणा की, “जान भी चाहिये और जहान भी चाहिये”। लॉकडाउन धीरे धीरे खुलने लगा। मास्क लगाना, हाथों को साफ़ रखना नये व्यवहार के नये सामान्य बन गये। पर कोविड का कहर लहर के ऊपर लहर की भांति पूरे विश्व में अपना प्रकोप दर्शाता रहा और दर्शाता रहेगा | मेरी आप सभी से यही प्रार्थना है कि यदि रोज़ी रोटी के लिए घर से निकलने की आवश्यकता नहीं है तो न निकले | यदि निकलना बेहद ज़रूरी हो तो मास्क पहने, हाथ स्वच्छ रखें और सामाजिक दूरी बनाये रखें | आपका यह सहयोग आपको तो सुरक्षित रखेगा ही अपितु देश के हित में आपका बड़ा योगदान होगा | कोविड कहीं नहीं गया है अपितु भयंकर रूप से फैला हुआ है |

कोविड का हमारे ऊपर क्या असर पड़ा है, इसके लिए तो एक पूरी किताब लिखनी पड़ेगी पर यहाँ इतना ज़रूर कहूँगी कि इस संक्रमण के कारण पूरे विश्व में कई मूलभूत बदलाव आ गये हैं और आने वाले कई दशकों तक आते रहेंगे | घर से काम करना एक सामान्य बन जायेगा और इसका प्रभाव नगरों और महानगरों की संरचना और प्रबंधन पर पड़ेगा | लोग ज्यादा से ज्यादा डिजिटल टेक्नोलॉजी का प्रयोग करेंगे | इस डिजिटल क्रांति से और भी तकनीकी, सामाजिक और आर्थिक बदलाव आएँगे |

व्यक्तिगत स्तर पर यदि कहूँ तो मेरे ऊपर प्रभु का अनुग्रह लॉकडाउन की स्थिति में और भी बरसा | इंटरनेट के माध्यम से सत्संग की गंगा अविरल रूप से घर में आने लगी | रमण महर्षि जी का उपदेशसारम और अष्टवक्र गीता घर बैठे ही सीखी | मेरी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की उपासना भी और गहरा गई | जहाँ कुछ लोगों के लिए घर एक जेल की तरह हो गया जिससे निकलने के लिए वह इतने बेक़रार हो गए, वहीँ मैं ने अपने आप को व्यस्त भी रखा और कुछ नया भी सीखा | यह लेख भी इसी नए शौक़ का नतीजा है |

अब इस विश्व की करीब ७ बिलियन जनसंख्या को कोविड के टीके (वैक्सीन ) का इंतज़ार है और तकरीबन ६-७ अंतर्देशीय कंपनियां अपने अपने अनुसंधान के साथ बाजार में उतरने के लिए तैयार भी हैं | इस टीके की खरीदी, भंडारण एवं वितरण अपने आप में शासन के समक्ष एक चुनौती है | किस को टीका लगाने के लिए प्राथमिकता दी जाएगी, यह भी सरकार को बहुत गंभीरता से तय करना होगा | ज़ाहिर है की सबसे पहले हमारे स्वास्थ व्यवस्था से जुड़े लोगों को सुरक्षित करना होगा |

सारांश में बस यही कहना चाहूँगी कि कोविड का कहर प्रकृति की मानव जाति के लिए एक चेतावनी है | प्रकृति अत्यंत शक्तिशाली है| उसके प्रकोप के सामने इतने भारी भरकम डाइनोसॉर नहीं टिक पाये; जहाँ आज हिमालय जैसा पर्वत है वहां कभी समुद्र होता था | हमें याद रखना होगा कि प्रकृति से उत्पन्न एक छोटे से वायरस ने, जिसे हम देख भी नहीं सकते, मनुष्य को अपनी औकात दिखा दी |

प्रकृति की यह चेतावनी हमारी समझ में जितनी जल्दी आ जाये उतना ही अच्छा है | कोविड का टीका भी कुछ नहीं कर पायेगा यदि हमने प्रकृति को सम्मान देना नहीं सीखा | अगर कोविड पर काबू पा भी लिया तो कोई और महामारी आ जाएगी | आदमी को अपनी सोच में मूलभूत बदलाव लाने होंगे | प्रकृति को फिर से पूज्यनीय स्थान दे कर उसके संरक्षण में रहना सीखना होगा |

नीरजा राजकुमार
“देहम नाहम (मैं शरीर नहीं हूँ )
कोहम सोऽहं” (तो मैं कौन हूँ ? मैं स्व – अहं ब्रह्मास्मि – हूँ)
भगवान रमण महर्षि के उपरांकित शब्द ही मेरा परिचय हैं |
जन्म का नाम – नीरजा अग्रवाल |
विवाह के बाद राजकुमार जुड़ गया |
साइकोलॉजी में एम ए और सार्वजनिक प्रशासन में एम फ़िल किया| आईएएस में ३८ साल तक देश की सेवा का अवसर मिला और कर्नाटक राज्य के मुख्य सचिव के पद से सेवा निवृत हुई | यदि जिज्ञासा और भी है, तो ‘मेरी कहानी’ पढ़ लीजियेगा |

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