ऐ वतन

ऐ वतन

ऐ वतन!
मेरे भारत!
तेरी माटी से बनी हूँ मैं
तेरी आबो हवा में ही
मैं जिंदा हूँ
मेरी साँसों में बसी है
तेरी खुशबू
रूह में इश्क हकीकी
ख़ुदाया तेरा है
नहीं दरकार मुझे
मौसमों की तरहा
प्यार के इज़हार की
मेरा हर दिन मुबारक है
तेरी आगोश में
हर पल महफूज़ है मेरा
बदौलत उन मतवालों के
जो अपनी जान की कीमत पर भी
तुझे सलामत रखते
सुबह के सूरज की लाली
उन वीरों द्वारा ही
तुम्हारे भाल पर समर्पित
रक्त चंदन है
मान है तूं
अभिमान है मेरा
मेरे देश
तेरे चरणों में
शत शत वंदन है

सुनीता सामंत
साहित्यकार
गोरखपुर,
उत्तर प्रदेश

 

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