प्रकाशोत्सव

प्रकाशोत्सव

ताल ठोक रहा तम का दानव
लिए अँधेरा मन का
दूर खड़ा मानव
दिखावे के रोशनी सजती
सबके घर – द्वारे
मन का तम मिटा ना सका
तू मानव, प्यारे ………..

ताल ठोक रहा ……….

रात – रात पूरी चला
मंज़िल ना पाया
लौट बुद्धू घर को आया
चला जिस डगर
वह भी निकला नकली
ऊपर से अँधेरी की चादर काली

ताल ठोक रहा ……….

उधर अकेले खड़ा
नन्हा दीपक एक
जुटाकर साहस अनेक….

देखना, फिर अकेले वो
तम से भीड़ जायेगा
तू क्या मानव, दूर खड़ा
बस, ताली बजायेगा
सावधान ! सावधान !
हवा भी अपना जोड़ आज़मायेगा….

माना तू दीपक के मानिंद
जल नहीं सकता
पर, रूप जुगनू का तो धर सकता है…………

लड़ते-लड़ते दीपक जब
तम से, थक जायेगा
स्वरुप जुगनू का तेरा
अँधेरे से जो भीड़ जायेगा……….
विहँसेगा तब व्योम
हर्षित दिशा मुसकायेगा
देख तेरी अतुलित साहस
तम धरा का छट जायेगा
सच कहता है ‘अजय’
तब असली प्रकाशोत्सव आएगा….
तब असली प्रकाशोत्सव आएगा….

अजय ‘ मुस्कान ‘

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