चलो एक दीप जलाएँ हम
कितनी नीरसता
कितनी व्यग्रता से
बीते पिछले कुछ महीने
धरा पर जो छायी रही
अमावस की रात
सारी खुशियाँ,
सारी तमन्नाएं अनबुझी सी
खो चुकी थी अमावस
की तिमिर रात में
शायद अबकी अमावस
की रात, आशा भरी
खुशियों की जगमग
जोत लेकर आयी है
चलो इस दिपावली को
अपने लक्ष्य की दीप जला
ज्योर्तिमय बनाएँ
निराशा के तिमिर को
आशा की दीप जला
अवलोकित करें
हर घर ,हर चौखट पर
खुशियाँ और उमंग से
सजी चलो लगाएँ
दीपों की कतार,,
और फिर एक दिया
फक्र से जलाएँ
शहादत के नाम
देश के लिए जिसने किया
अपनी जान कुर्बान,
सम्मान से दीप बना,
सहिष्णुता से भरा तेल डाल,
प्रेम की बाती लगा,
सद्भाव से प्रज्वलित कर,
अपने सपने की मुड़ेर पर
श्रद्धांजलि से सुसज्जित कर,
हृदय की भावभीनी
पुष्पांजलि अर्पित कर
दीपोत्सव मनाएँ हम
खुशियों को मुखरित कर,
उम्मीदों के आगोश में खो जाएँ हम
सुधा अग्रवाल
जमशेदपुर, झारखंड