दीपावली का महत्त्व

दीपावली का महत्त्व

नवंबर माह में कार्तिक और मार्ग शिर्ष मास का समावेशन है , इस माह में अनेक अधिष्ठापित व्रत- त्योहार होतेे हैं । दशहरा के बाद दिवाली से पूर्व ‘धन्वंतरि ‘धनतेरस या धन त्रयोदशी मनाया जाता है ।

इस दिन अरोग्य के देवता ‘धन्वंतरि’ मृत्यु के देवता अधिपति ‘यम’ वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठापत्री देवी लक्ष्मी जी की तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है ।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि जी अमृत मंथन के समय हाथ में अमृत कलश लिए हुए प्रकट हुए थे । इसलिए इसे धनतेरस के नाम से जाना जाता है । इसीलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है ।अतः कोई भी नया बर्तन अवश्य खरीदें एेसा करने से शुभ फल प्राप्त होता है । गृहस्थी के प्रयोग में आने वाले बर्तनों के अलावा सोने चाँदी का जेवर चाँदी और सोने के सिक्के खरीदने का भी रिवाज है ।

दीपावली के दिन श्रीगणेश जी के साथ माता लक्ष्मी पूजन का विधान है और इसका विशेष महत्व भी है ‌। कार्तिकेय के वरदान स्वरुप श्रीगणेश माँ लक्ष्मी के दत्तक पुत्र होना स्वीकार किया था और माँ पार्वती ने स्वयं आकर आशीर्वाद दिया था । यह तो पहला कारण है दूसरा कारण यह है कि श्रीगणेश के साथ लक्ष्मी पूजन से मानव अपने कर्म क्षेत्र में कभी नहीं हारता है । उसकी सदा विजय होती है ऐसा आशीर्वाद स्वयं विष्णु भगवान ने माँ लक्ष्मी को दिया था । तुलसी दास जी ने मानस में लिखा भी है ‘समरथ के नहीं दोष गोसाईं’ वो इसी आशीर्वाद और ‌वरदान के कारण लिखा गया था ।

यह सनातन सत्य भी है कि ‌धन संपदा से संपन्न व्यक्ति कुछ भी करके जीत जाता है । दीपावली के श्रीगणेश लक्ष्मी के साथ पूजन की महिमा और परंपरा युगों-युगों से चली आ रही है । इसी दिन रात्रि में काली माँ के पूजन का भी विधान है । काली माँ की पूजा रात में बारह बजे की जाती है । यह सिद्धीदात्री के रुप में पूजी जाती हैं क्योंकि सिद्धिविनायक गणपति श्रीगणेश माँ लक्ष्मी के साथ वर्ष में एक बार ही ऐसा अवसर प्रदान करते हैं । अतः इस काली पूजा का विशेष महत्व होता है।

अब चलते हैं दिवाली के दूसरे दिन होने वाली गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की । इस दिन गऊ माता (गाय) सांड की पूजा की जाती है और उन दोनों को मिलाया जाता है उसको तिरहुत में गायडाढ़ा बोलते हैं । उन्हें नया रंगीन पगहा ( रस्सी ) दिया जाता है । गलें में सुंदर नया रस्सी और पूरे बदन पर रंग से चित्रकारी कर सजाया जाता है । उस सारी प्रक्रिया में जब वो गोबर करती है तो उसी गोबर से गोवर्धन पूजा किया जाता है ‌। उसके बाद अन्न की पूजा कर अन्नपूर्णा देवी की अन्नकूट पूजा होती है ।

रावण विजय के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौटे थे तो वो दीपावली का दिन था इसलिए हम भारतीय इस दिन दिवाली मनाते हैं । माता लक्ष्मी यानी माँ सीता बनवास के बाद अपने ससुरकुल में ‌स्थापित होती हैं । हम उस महान दिन के उपलक्ष्य में आयोजित दीपावली को ह्रदय से स्वीकार करते हैं । जय सियाराम ।

प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
जमशेदपुर, झारखंड

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