मैं कतरा कतरा
मैं क़तरा क़तरा अन्तस् का
लो तुम्हें समर्पित करती हूँ।
बस याद में तेरी दीपक सी
प्रिय लौ बनकर मैं जलती हूँ।
मेरे जीवन के मरुथल में,
तुम ही पानी की धार बने।
पतझड़ के मौसम में प्रियतम,
तुम साँसों का आधार बने।
अब दरस की आस में अँखियों से,
मैं स्वयं नीर सी झरती हूँ।
मैं कतरा कतरा अतंस का—–
जब नेह तुम्हारा अन्तस् से,
पुलकित नैनों में झाँका था।
मेरे माथे पर इक तारा,
अधरों से तुमने टाँका था।
अब सिर्फ़ तुम्हारी यादों से,
हर रात सुहागिन करती हूँ।
मैं कतरा कतरा—
छूकर तेरी ये मधुर छुअन,
यौवन सारा ही महक उठा।
है रोम रोम में स्पंदन,
पावन अन्तस् भी दहक उठा।
अब तुलसी बन तेरे आँगन की,
मैं साथ तिहारे चलती हूँ।
मैं कतरा कतरा—
सोनिया अक्स