मैं और वो
दो इंसान
दो वजूद
दो व्यक्तित्व
अलग परिवेश
शहर अलग
अजनबी अनजाने
बंध गए बंधन में
हुए जीवनसाथी
बना रिश्ता पवित्र
प्यार का इज़हार
इकरार
एतबार
नौनिहाल
परिवार
जीवनरूपी नैया
में हुए सवार
हौले हौले गतिशील
बहार ही बहार
कभी दौड़ी , हवा के रूख के विपरीत
कभी बसंती बयार
कभी झेलती थपेड़े तूफ़ान की
ख़ुशी के पल
तो कभी क्षण दुख के
मैं और वो के धागे गए उलझ
प्रणय के धागे
मोह के धागे
प्यार के धागे
छेड़ते धागे
रूठते धागे
मनुहार के धागे
लड़ते झगड़ते धागे
उलझ उलझ गए धागे
फ़ुरसत के पल में
मैं और वो चले सुलझाने धागे
मचल मचल गए धागे
हँसते हँसते और उलझ गए धागे
उलझ उलझ अब बन गए गाँठ
बन गए मज़बूत गाँठ
कहाँ गए मैं के धागे
कहाँ गए वो के धागे
अब है हम के गाँठ
अपने है गाँठ
अनिता सिन्हा
बडोदरा, गुजरात