जीवनसाथी
(करवाचौथ पर जीवनसाथी को समर्पित)
रिक्त स्थान के मध्यांतर का
भराव हो तुम
कभी सुनी है धड़कनों के बीच की एक गहराई
सुनो वह मेरी गहरी आवाज़ हो तुम..!!
अक्सर दिमाग में उठते है कई सवाल
और उन सवालों के जवाब कभी नही मिलते
सुनो एक गुमशुदा प्रतिउत्तर हो तुम …!!
शांत बहते पानी के साथ चलता है एक बहाव
जो कलकल आवाजें आती है ना
सुनो उस कलकल ध्वनि का एक राग हो तुम…!!
वह सड़क जो उम्र सी चलती रहती है अंतहीन
कई मोड़ो पर देती है मंजिल का पता
सुनो मेरी एक अंजान मंजिल की
एक लम्बी राह हो तुम…!!
जानते हो मन में कई सोच रहती है
हर सोच का जवाब नही होता मेरे पास
पर हाँ मेरे अंतर्द्वन्द की एक
मुस्कुराती आवाज़ हो तुम…!!
रतजगे और स्वप्न में उलझती एक
रागिनी सी में सुनो
उस स्वप्न को हक़ीक़त से रूबरू
कराते वह सुनहरी रात हो तुम…!!
सुनो मेरे हर सवाल का एक सरल सा
एकमात्र जवाब हो तुम…!!
स्वरा
लखनऊ, उत्तर प्रदेश