बहिष्कार
गंगा किनारे एक बुजुर्ग महिला को देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई तपस्विनी देवलोक से तपस्या हेतु अवतरित हुई हों ।
शिला पर बैठे देख उनसे बात करने के लोभ को संवरण न कर सकी और उनके समीप मैं भी आँखे मूंद बैठ गयी । स्नेहिल स्पर्श महसूस कर मैं आँखे खोल अपलक उनको देखने लगी ।
उन्होंने पूछा ‘ – आप कहाँ से आयी हैं ? क्या नाम है ? क्या करती हैं ? वगैरह वगैरह ।”
मैंने अपना संक्षिप्त परिचय दे दिया । ‘परिचय प्राप्त कर पुनः वे बोलीं कि ‘आप व्याकुल लग रही हैं, छटपटाहट का क्या कारण है? यदि उचित लगे तो कह कर मन को हल्का कर सकती हैं ।’
मैंने कहा कि – ‘अम्मा, नारी कब तक निर्बल हो अन्याय सहती रहेगी ? अभी हाथरस में हुई घटना से मैं अति बिकल और आहत हो गयी हूँ । उस बच्ची के दर्द को सुन अकुलाहट बढ़ गयी है ।’ कितनी प्रताड़ित हुई होगी ! आखिरी समय में भी अपनों से नहीं मिल सकी । उसके पार्थिव शरीर को भी परिजन नहीं देख सके। अपनों द्वारा अन्तिम संस्कार की भी अधिकारिणी नहीं हो सकी निरीह बालिका । उसके बाद भी कितनी तरह की बातें होती रही है । हाथरस के बाद भी कितनी वीभत्स घटनायें हुई है । क्या नारी यातना सहने के लिए ही धरा पर आयी है ? ‘ इस धरा पर हर दिन प्रति घंटे जितनी पीड़ा स्त्रियों को दी जाती है उन सबको जोड़ें तो शायद किसी देश की सम्पूर्ण जनसंख्या के बराबर होगा । आखिर यह कब थमेगा ?
उन्होंने कहा – ‘नारी की यह कहानी पुरातन काल से चली आ रही है । कभी पति के हाथों तो कभी ससुराल वालों के । सदा से बलि चढ़ती आयी हैं नारियाँ । माँ जानकी कम दुःख झेली थीं क्या ? हर युग में नारी ही प्रताड़ित हुई है । रावण ने भी रम्भा संग बलात्कार किया था । ‘सीता’ पर कुदृष्टि डाली थी । रावण हर युग में होता आया है । तब भी रावण था ,आज भी है , ईश्वर न करें कल हो ।
महिलायें पढ़ीलिखी होती थी, सशक्त होती थीं, यहाँ तक कि जब वे युद्ध – निपुण भी होती थी तब भी रावण होता था , बलात्कारी होता था । इन्द्र ने भी तो छल से अहिल्या का बलात्कार किया था , वो तो राम थे जिन्होंने अहिल्या को समाज में पुनः सम्मान दिलवाया।
निर्भया – कांड के बाद ऐसा प्रतीत हुआ था कि ये अत्याचार थम जायेगा लेकिन नहीं , निर्भया कांड के बाद इसमें वृद्धि ही होती जा रही है। जिसकी चर्चा हो गई वह पीड़ित हुई जिसकी न हुई वह गुमनामी में जी रही है । कुछ बेटियाँ तो नारकीय जीवन जी रही है। कुछ ने तो अपनी जीवन लीला स्वयं ही समाप्त कर डाली । कितनी काल के गर्त में समा गयी। कोई लेखा जोखा नहीं है।
मुझे देखो, कितनी बार दुष्कर्म की शिकार हो चुकी हूँ। सर्वप्रथम मेरे जेठ ने मुझे भ्रष्ट किया। ननदोई ,तथाकथित रिश्तेदारों ने । ११ वर्ष में विवाह हुआ था। जब तक समझ आता तब तक कितनों के हाथों फेरी गयी। ऊपर से नासमझ सास का कहर। मेरे सज्जन श्वसुर के कारण मैं जीवित ही नहीं रही , सम्मान की जिन्दगी भी जी रही हूँ । सास तथा पति के द्वारा पीड़ित होते देख वे मुझे पढ़ाने लगे। उन्होंने प्राइवेट से परीक्षा दिलवाया । घर में विरोध के बावजूद भी वे मेरे अध्ययन में व्यवधान नहीं होने दिये। कहते हैं न ‘भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती ‘ मेरे जेठ के संग भी वही हुआ । एक्सीडेंट में जेठानी की मृत्यु हो गयी । सिर में चोट लगने के कारण जेठ मानसिक संतुलन खो बैठे, और आज पागलखाने में हैं।
पिता को बाल्यकाल में ही खोने के कारण , पिता सुख से वंचित मैं पितृतुल्य ससुर के स्नेह से अभिभूत थी। सभी दु:खों को भूल मैं पूर्ण मनोयोग से अध्ययन में लीन रहा करती थी। पति भी आयु बढ़ने से समझदार हो गये थे। सास भी लाड़ करने लगी थीं।
मैं अपने देवतुल्य श्वसुर के कारण आगे बढ़ती गयी , अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परिश्रम करती रही और एक दिन जज के पद को प्राप्त कर ही ली ।
असंख्य अपराधियों को दंडित कर चुकी हूँ। असंख्य बलात्कारियों को सजा दे चुकी हूँ। ‘ कुछ जुबेनाइल’ और कुछ रसूख वाले कानून के कमज़ोर होने से बच गये ।
धीरे धीरे मेरा मन सांसारिक बातों से विरत होने लगा। अवकाश प्राप्त करने के बाद मैं ‘कनखल’ आ गई और यहाँ मैं रम गयी हूँ , योग ध्यान आदि में समय का सदुपयोग कर रही हूँ।
यह समाज न बदला है न बदलेगा।कुछ नारियों के साहसिक कदम से स्थिति परिवर्तित अवश्य हुई है। थोड़ा ही हुआ है ,अभी बहुत की आवश्यकता है।सरकार अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए “बेटी बेटी करती रहती है । भाषण के बल पर अपनी रोटी सेकती रहती है। पर सरकार में शामिल लोगों में भी रावणों की कमी नहीं है ।
स्वयं हमें जागरूक होना होगा। अपने को दुर्गा काली बना दुष्कर्मियों को समूल नष्ट करना होगा। हमारे भीतर लक्ष्मी बाई को जगाना होगा,क्योंकि अब राम तो आयेंगे नहीं जो रावण का वध करेंगे , अब एक रावण नहीं अनेकों रावण इस पृथ्वी पर पैदा हो चुका है अतः इन रावणो का नाश करने हेतु स्वयं महिलाओं को ऐसा बनना पड़ेगा जो किसी भी मायने में कमज़ोर न रहे ।
आश्चर्य तो तब होता है जब लोग कहते हैं कि महिला और पुरुष एक सामान हैं , कंधे से कन्धा मिलकर चलते हैं …. सब भाषण के लिए …। अजीब नहीं है – जब महिला का बलात्कार होता है , शोषण होता है तब भी यह समाज उसे ही दूषित मानती है ? मात्र पुरुष ही नहीं महिलाएँ भी उनको दूषित मानती हैं और दूषित ही नहीं अपराधिनी भी वही मानी जाती है , यह कैसी विडंबना है ? जो पुरुष बलात्कार करता है उसे समाज में कोई बहिष्कृत नहीं करता , उसे कलंकित नहीं मानता, घृणित काम जो करता है, अपराध जो करता है वह पाक साफ रहता है ? यह सामाजिक सोच ही इस जघन्य अपराध को समाप्त करने में बाधक है । किसी को इस अपराध के लिए फाँसी की सजा दे दो वह मर तो जायेगा पर अपराध रुकेगा नहीं, किसी को १० या २० साल का कारावास दे दो पर यह रुकता नहीं क्योंकि जब वह बाहर आता है तब उसे समाज अपना लेती है और जिसके साथ उसने दुष्कर्म किया था वह जीते जी मर जाती है तथा समाज भी उसी को घृणा से देखती है ।
समाज को बदलने की आवश्यकता है, दुष्कर्मियों को बहिष्कृत करना होगा, समाज से , घर से , नागरिक अधिकार से ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश से बहिष्कृत कर उसे एकाकीपन में जीने को छोड़ देना चाहिए , आत्मग्लानि से वह तड़पे , जिसे देख कोई भी अनाचार करने से डरे , रूह कांपे । संभव है उसे देख शायद कुछ बात बने ।’
फिर वह मौन हो गयीं, उनको मौन देख, मैं श्रद्धा से अभिभूत हो उनके हाथों को चूम ली।
डॉ रजनी दुर्गेश
हरिद्वार