शक्ति रुपा चिंगारियाँ स्त्री
धरणी पर सजे स्नेह मृदुता त्याग भक्ति
जीवन की कामना ले आयी नारी स्त्री
क्या-क्या लेकर आई धरापर नारी स्त्री
तुम कहते पूजते हो भगवती माँ देवी है स्त्री
देती नारी स्नेह समर्पण सर्वस्व है तुम्हें
उदर पाले माता औ बने प्रेयसी संगीनी स्त्री
हजार बलैंया निछावर होती वो नित हर पल
जीये राजा कन्हैया ठूमके नन्ही गुड़िया स्त्री
टूटे विश्वास मनोबल है पुरूष जो तुम्हारा
जोड़ती तुम्हें साहस बढा़ती साथ खड़ी होती स्त्री
नारी अस्तित्व को सदा हो तुम ललकारे
कभी सम्मान के लिए बलि वो बनती स्त्री
अथाह क्लेश तन मन का क्यों कर सहती
संवेदनायें बार-बार बिंधते रोये नारी स्त्री
कभी भ्रुण रुप मरती कभी दहेज अग्नि आहूति
एसिड मार ,प्रकृति रुपा सदा जुझती स्त्री
प्राणप्रिये बना ताड़ना औ कहते अबला नारी
ललचाते उसके कोमल भाव ठगाती स्त्री
कभी श्रापित ,दे अग्निपरीक्षा परित्यागा
चलनों के मोहरे में पाँसे सी फँसी नारी स्त्री
शर्मशार करते हो मानवता की परिभाषा
तन बिंधते लुटेरे दरिंदगी पाती नारी स्त्री
तुम्हारा रौंदना उसका हर बार जुझना सदा
यह युद्ध सदियों से लड़ रही है नारी स्त्री
साहस को सदा समेटती क्षमा और दया
पाशविकता दंभ पुरूष में क्यों सोचे स्त्री
तुम्हारे सुक्ष्म आँखें औ आत्मा क्यों है मरी
कुचलने की तुम्हारी युक्तियाँ
कई व्यथित स्त्री
जाग रही समझ रही वो तुम्हारे झूठे अहंकार
जगा रही अपनी भीतरी आग नारी स्त्री
समझ ना पाओगे तुम पनप रहे जो अमानुष
समाज पौरुष को लज्जित करे झूठे कायर जाने स्त्री
विनाश करेंगी तुम्हारा बन वो चिंगारियां
कुप्त चंडी रूप धारण कर रही नारी स्त्री
शिक्षा आत्मसम्मान स्वरक्षा जागृति नगाड़ा बजा
उत्तम लक्ष्य को बढा़ रही कदम
अब नारी स्त्री ।
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’
साहित्यकार
जमशेदपुर, भारत