जागृति

जागृति

हरसिंगार के छोटे छोटे फूल
पेड़ों के नीचे गलीचा से बिछ गए हैं
उनके फूलों की भीनी खुशबू से
हवा मदमस्त !
और मदमस्त हवा अपने झोंके में
गूंजते मंत्रोच्चारण को जैसे झूला झूला रही,
दुर्गा मां का आगमन जो हो गया है,
ढाक की आवाज
आरती मेें बजती घंटियां,
पावन कर रही हैं वातावरण …
धूप भी कभी सुनहरे,कभी रूपहले
दुर्गा मां जो आ गई हैं …
मौसम भी अंगराई लेकर
करवट बदल रहा है,
हल्की गुलाबी ठंढक सी
कम्बल जैसे ओढ रहा है।
प्रकृति अपनी पूरी तैयारी से
मां का स्वागत कर रही है।

पर क्या हम ऐसी कोई तैयारी किएं हैं
कि मां खुशी खुशी आऐ?
यह समझ से बिल्कुल परे है
कि एक तरफ तो नारी शक्ति की
नौ दिनों की पूजा -अराधना,
और दूसरी तरफ,
शायद ही कोई कसर बचा हो
नारी सर्वस्व को रौंदने में,
उसकी सारी शक्ति कुचलने मेें।
एक तरफ कुमारी पूजा,
और दूसरी तरफ…..
हाथरस और निर्भया
कलम इंकार कर रहा है
यथार्थ को शब्द देने में,
हाथ कांप रहे हैं
मन विचलित…
ऐसा दोगलापन क्यों?
एक ऐसी सच्चाई जो
निगलते न निगलती,
पर पच गई ?
उफ्फ भर निकला,
और जैसे बात आई गई हो गई?

अनगिनत सवालों का भूचाल है
व्यग्र, व्यथित मन में
सजे धजे भीड़ का हिस्सा बन,
पंडाल से पंडाल घूमें हैं बहुत
अब तो वक्त की है पुकार
कि हम आत्मनिरीक्षण करें
अपने अपने अंतर मन में झांकें
अपने अंदर टटोले…
…कहा जाता है कि
नवरात्र के नौ रातों में
मां दुर्गा
एक एक कर,
नौ राक्षसी अवगुणों
का नाश कीं ..
..काम,क्रोध, मोह
लोभ,मद,मत्सर,
स्वार्थ, अन्याय, अहंकार…
तो क्या, अब भी वह वक्त नहीं आया
कि आप और हम,
जो सशक्त नारी हैं,
अपनी पढ़ाई के बूते,
अपने धन के बूते,
अपनी प्रतिष्ठा के बूते,
अपने अंदर की दुर्गा को जागृत करें
ताकि होते हुए अनहोनी
का जवाब दे सकें?
और उन सब की मदद करें
जो हमसे कम सशक्त हैं?
उन्हें उनकी ही ताकत को पहचानने
में मदद करें,
उन्हें उनके अंदर की दुर्गा
से परिचित करायें।
अपने लिए तो बहुत मांगे,
और ज्यादा ही मिला,
इस बार आईए ,मिल कर
उनके लिए मांगे
जिन्हें हम से ज्यादा जरूरत है।
तभी जाकर
एक एक कुमारी
एक एक नारी
की दुर्गा जागृत होगी।
यही प्रार्थना है मेरी।

कविता झा
कोलकत्ता

0