जागरूकता ही बचाव है
एम्स के प्रोफेसर डॉ. अनुराग श्रीवास्तव जी वर्षों अपना जीवन अस्पतालों की चारदीवारी , बीमारी से जूझते हुए चेहरे और शरीर, क्या बच्चें, क्या बूढ़े और क्या जवान।
डॉ. अनुराग श्रीवास्तव जी हमेशा उन गरीब, असहाय, लाचार, सतर्कता एवं ज्ञान के अभाव में ब्रेस्ट कैंसर के आखिरी स्टेज़ पर असहनीय पीड़ा से गुजरती हैं और उनका कोई इलाज नही । वे तमाम मरीज जो धीरे धीरे अथाह पीडा के बाद मृत्यु को प्राप्त करते हैं ।उनके दर्द का निवारक नही बन पाने की स्थिति में वह स्वयं को दुखी और बेबस महसूस करते हैं। कितनी बार डॉक्टर होकर भी मरीज के जीवन को न बचा पाने की पीड़ा मन में कसक छोड़ जाती होगी।एक जाने माने डॉक्टर की कलम से उनके मन की व्यथा को जिसको उन्होंने सीता के रूप में देखा ,उसे मैं अपने शब्दों के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हूं।
सीता
क्या सीता अपने आप को बचा पाएगी ?
बचना किससे और बचाना किससे ?
बचना और बचाना होगा गरीबी रूपी रावण से,
रावण जो भूख है, कुंभकर्ण वो अज्ञान है
जो चाह कर भी ना बचा पाए उस सीता को।
सूर्पणखा जो बीमारी है ,अत्याचारी है
वही कैंसर रूप में नारी पर भारी है।
अब कौन बचायेगा अपनी सीता को।
कौन समझेगा सीता की पीडा को
कौन समझेगा सीता के दिल के दर्द को
उसकी परेशानी को।
महसूस करना होगा उस सीता के दिल के दर्द को।
कहीं ये दुःख-दर्द उसके अपने बनाए तो नहीं?
कहीं ये सीता , नबिया और जूली के दिल की आवाज़ कशिश और मजबूरियों की तो नहीं?
कहीं ये उनकी अपनी गलतियों का परिणाम तो नहीं।
उनकी अपनी कमजोरियों का फल तो नहीं।
नहीं अब और नहीं…
अब ना हो सकेगा और अत्याचार
उठो सीता उठो!
सीता ने भी अपनी आवाज़ उठाई थी अपने खातिर।
ना देख सकी थी, ना सुन सकी थी ,अपने प्रति न्याय की वो पुकार।
मार दो उस मूर्खता के रावण को
कुचल दो उस कमजोरी रूपी कुंभकर्ण को।
यदि सीता को बचाना है तो ।
अपनी बनाई मंथरा और कैकई को भी हटाना होगा।।
सीता को स्वयं ही जागरूक होना होगा।
अपने जीवन के खातिर ।
स्वयं को सजग करना होगा।
कब तक तू औरों के खातिर
अपने को नकारेगी,
कुछ पल अपनी ज़िन्दगी को भी सवार ले।
ना खेल आंख मिचौली अपने जीवन से।
रहे हमेशा सशक्त ,रखें अपने को दृढ़ संकल्प।
विनी भटनागर
नई दिल्ली