गांधी जी एक समाज सुधारक के रूप में
कोई इंसान महान पैदा नहीं होता,उसके विचार उसे महान बनाते हैं!विचार और कार्य की शुद्धता और सरलता ही महान लोगों को साधारण लोगों से अलग करती है, वे वही काम करते हैं जो दूसरे करते हैं मगर उनका लक्ष्य समाज में बदलाव लाना होता है!
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इन्हीं विचारधारा के व्यक्ति थे!उनका कहना था कि”व्यक्ति अपने विचारों के सिवाय कुछ नहीं है, वह जो सोचता है वैसा बन जाता है”! गांधीजी कोरे दार्शनिक अथवा सैद्धांतिक विचारक नहीं बल्कि एक कर्मयोगी एवं व्यवहारिक राजनीतिज्ञ थे!उनके चिंतन में अर्थशास्त्र,व्यक्तिवाद ,समाजवाद की झलक देखी जा सकती है! गांधीजी के सामाजिक विचारों के पुष्पित पल्लवित होने में रस्किन और टॉल्स्टाय जैसे समकालीन विचारों का काफी प्रभाव पड़ा! टॉल्स्टाय द्वारा प्रतिपादित यह विचार कि “प्रत्येक मनुष्य को अपना दैनिक भोजन के लिए शारीरिक श्रम करना चाहिए”ने गांधी जी को अत्यंत प्रभावित किया! रस्कीन का विचार कि “श्रम मधु का उत्पादन करता है न कि मकड़े का जाल बुनता है” ने गांधी जी पर अमिट छाप छोडा!
वर्ण – व्यवस्था – गांधी जी प्राचीन भारतीय जीवन पद्धति में वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श स्थिति मानते थे!उनका कहना था अश्पृश्यता निवारण का आशय ऊंच- नीच का भेद न हो ,वैवाहिक या सामाजिक संबंधों पर प्रतिबंध न हो ,जाती प्रथा समाप्त हो और तब हमारा समाज प्राचीन वर्ण- व्यवस्था का स्थान ग्रहण करेगा!
गांधी जी का कहना था कि वास्तविक रूप में वर्णों का आज अस्तित्व नहीं रह गया है! वर्नका उत्तम रूप केवल हिन्दुओं के लिए नहीं बल्कि मानवता के लिए है! हालांकि वर्ण का निर्धारण जन्म से होता है परन्तु उसकी रक्षा कर्तव्य पालन से होती है!ब्राह्मण माता पिता का पुत्र ब्राह्मण कहलाएगा किन्तु यदि वयस्क हो जाने पर उसके जीवन में ब्राह्मण के गुणों की अभिव्यक्ति नहीं होगी तो उसे ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता !दूसरी तरफ वह व्यक्ति जो ब्राह्मण कुल में जन्म मन्ही लिए मगर अपने व्यवहार में ब्राह्मणों के गुणों की अभिव्यक्ति करता है ब्राह्मण माना जाएगा, यद्धपि वह स्वयं ब्राह्मण होना अस्वीकार करेगा!गांधीजी कहते थे कि इस नियम का पालन स्वाभाविक रीति से होना चाहिए उसमें शर्म या सम्मान का भाव नहीं आना चाहिए!
जाति और धर्म – गांधीजी किसी एक जाति या धर्म में नहीं बल्कि सारे धर्म समभाव में विश्वास रखते थे!गांधीजी ने जहां एक तरफ हिन्दू धर्म ग्रंथों,वेदों उपनिषदों पुराणों एवं गीता इत्यादि का अध्ययन किया वहीं दूसरी तरफ कुरान एवं पैगम्बर साहब की जीवनी का भी अध्ययन किया! इन सबके अध्ययन से उभरे सार ने उनको आभास कराया की सभी धर्मों का सार एक ही है”बुनियादी एकता” उनका विचार था कि “मानवता का संरक्षण सभी धर्मों और मजहबों का बुनियादी सिद्धांत है!
साम्प्रदायिकता -15 अगस्त 1947को जब सारा देश उमंग उल्लास से अपना प्रथम स्वतंत्रता दिवस मना रहा था,गांधीजी उदासी में डूबे गांधीजी तब बंगाल में पैदल घूम घूमकर सांप्रदायिक दंगों के समय लोगों को सांत्वना दे रहे थे!उन्होंने देश के विभाजन को आधत्यमिक दुर्घटना की संज्ञा देते हुए आजादी के समारोह में भाग लेने से इंकार कर दिया!
महिला सशक्तिकरण- गांधीजी के समय में स्त्रियों को वह आजादी नहीं थी जिस आजादी कि वो हकदार थीं!गांधीजी कहते थे , ‘ एक बेटी को पढ़ाना पूरे कुल को पढ़ाने जैसा है’! पढ़ी लिखी मां अपनी संतान की शिक्षा का भी ध्यान रखेगी तभी समाज में सुधार आएगा! वह पुत्र और पुत्री दोनों को समान मानते थे! वे बालक – बालिकाओं की सह – शिक्षा के समर्थक थे, वह कहते थे ,’ मैं लड़कियों को सात तालों में बंद रखने का बिल्कुल समर्थन नहीं करता,लड़के लड़कियों को साथ पड़ने, लिखने,मिलने जुलने का मौका मिलना चाहिए!
उनके अनुसार हमारे कुछ ग्रंथ महिलाओं को पुरुष के मुकाबले हैं मानते हैं ऐसी सोच गलत है! स्त्री के लिए आजादी और स्वाधीनता जरूरी है!उनका कहना था स्त्रियों में पुरुषों के मुकाबले बौद्धिक क्षमता कम नहीं होती! गांधीजी दहेज प्रथा के कट्टर विरोधी थे उनके अनुसार अपनी बेटी पढ़ने का अवसर दो यही सबसे बड़ा दहेज है!उन्हे इस बात का दुख था कि दहेज ने योग्य पुरुषों को बिकाऊ बना दिया है! वाह विवाह ने तड़क भड़क के भी विरोधी थे!
विधवाओं के पुनर्विवाह का वो समर्थन करते थे! वे कुछ विशेष परिस्थितियों में तलाक के भी पक्षधर थे,उन्होंने एक समय जेल से एक हिंदी स्त्री को अपना आशीष भेजा जो अपने पहले पति का त्याग कर दूसरा विवाह करने जा रही थी!
गांधीजी कट्टर सनातनी थे मगर जाति से बाहर विवाह का भी समर्थन करते थे,पंडित नेहरू जी की सुपुत्री इंदिरा पारसी युवक फिरोज से विवाह करना चाहती थी पर नेहरू जो को स्वीकार नहीं था,गांधीजी ने फिरोज को अपना गांधी सरनेम दे दिया आज भी इस परिवार के साथ गांधी सरनेम चल रहा है!
स्वास्थ्य – गांधीजी स्वस्थ शरीर पर बल देते थे उनके अनुसार स्वस्थ शरीर के लिए हृदय और मस्तिष्क से गंदे अशुद्ध और निकम्मे विचार निकाल देने चाहिए!यदि मैं स्वस्थ होगा शरीर भी स्वस्थ होगा ! शरीर और मन में ताल मेल जरूरी है!
उनका कहना था भोजन इसलिए करना चाहिए ताकि शरीर में ताकत रहे और मानव जीवन का हित और एवं उनकी सेवा कर सके!वाह शाकाहारी भोजन के पक्षधर थे!एक वक्त उनकी पत्नी और बेटा बीमार थे , डाॅक्टर ने उन्हें मांस का शोरबा देने की सलाह दी उन्होंने डॉक्टर की सलाह बिल्कुल नहीं मानी!
स्वच्छता – गांधीजी बचपन से ही तर्कशील थे और स्वच्छता के पक्षधर थे!डरबन में गांधीजी का घर गौर लोगों के घरों की तरह था,गुसलखाने में पानी निकास के लिए कोई नाली नहीं था, कमोड और पेशाब के लिए बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता था गांधीजी कभी कभी स्वयं उं बर्तनों को साफ करने लग जाते!
हरिजन व्यवस्था के विरोधी – अपनी मृत्यु से करीब कुछ वर्ष पूर्व वह दिल्ली की हरिजन बस्तियों ठहर उनके साथ भोजन करना चाहते थे लेकिन उनकी उम्र इस प्रयोग के काबिल न थी! किसी हरिजनको सिर पर मेला धोते देखकर उनकी आत्मा रो देती थी!एक बार एक विदेशी ने उनसे पूछा ” यदि एक दिन के लिए आपको वायसराय बना दिया जाए आप क्या करेंगे उन्होंने कहा , ‘ राजभवन के आस पास की हरिजन बस्तियों को साफ कर दूंगा! अब भारत्मे सिर पर मैला ढोने की प्रथा लगभग खत्म हो चुकी है!सस्ते सुलभ शौचालयों का चलन बढ़ रहा है यह गांधीजी प्रयत्नों का परिणाम ही है!मोदी जी उनके इसी स्वप्न को साकार करने के लिए स्वच्छता को अभियान का रूप दिया है!
गांधी जी को किसी एक आवरण ,एक रूप ,एक क्षेत्र में बांटना कतई संभव और सही नहीं है क्यूंकि उनके व्यक्तिव में, विचारों में सुंदर विविधता एवं आयाम रहा है !
” गांधीजी के पसंदीदा भजनों में से एक था “वैष्णव जन तो तेने कहिए जे प्रीत पराई जाने रे ” कहीं ना कहीं इस भजन से उनका व्यक्तिव ,उनके विचारों का सरोकार था उनका भी जीवन का सूत्र यही था कि सच्चा वैष्णव या मानव वही है जो दूसरों की पीड़ा को समझता हो,जो सबको समान दृष्टि से सबको देखे,जो हर क्षण नमन में राम नाम का जाप के वही तन तीर्थ समान है!!
गांधीजी की यही सोच रही है कि , ” कोई कायर प्यार नहीं के सकता है यह तो बहादुरों की निशानी है” वो अमर रहेंगे अपनी अहिंसा ,प्रेम, और सत्य और निष्ठा के लिए उनका ही कथन था ” कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो,कुछ ऐसे सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीनेवाले हो” !!
अर्चना रॉय
प्राचार्या सह साहित्यकार रामगढ़ झारखंड