गांधी समझ नहीं आएंगे नोट मे..
अगर समझना चाहते हैं,
गांधी को तो,
झांकिए अपने अंतरात्मा के ओट मे…
गांधी समझ नहीं आएंगे नोट मे…
सत्य को अब और कब तक?
पढ़ते -पढ़ाते रहेंगे पुस्तकों में…
एक बार,
सत्य को आने तो दीजिए,
अपने आचरण व्यवहार मे..
मुस्कुराते दिखेंगे गांधी,
अंतरात्मा की ओट मे ….
गांधी समझ नहीं आएंगे नोट मे…
कब तक बजाते रहेंगे?
अहं युद्ध के नगाड़े,
अहिंसा के अखाड़े मे..
एक बार शांत चित्त होकर शांति का, आह्वान तो कीजिए जन मानस मे…
गांधी अभिभूत दिखेंगे
आत्मा की ओट मे……
गांधी समझ नहीं आएंगे नोट मे…
आप चिल्लाते रहिए,
सड़क से संसद तक कि,
गांधी ने देश बांटा है!
कौन सा देश?
वही देश ना?
जहाँ जनसंख्या से ज्यादा जातियां थी,
भावों पे भारी भाषाएं थी।
बस एक बार,
अंतरावलोकन तो कीजीए स्वयं का,
गांधी की प्रासंगिकता सुन पाएँगे प्रजातंत्र के नगाड़े के प्रत्येक चोट मे…
गांधी समझ नहीं आएंगे नोट मे….
कुमुद “अनुन्जया”