नई शिक्षा नीति और प्राथमिक शिक्षा

 

नई शिक्षा नीति और प्राथमिक शिक्षा

भारतीय शिक्षा का इतिहास अगर देखा जाए तो यह तब से है जब से भारतीय सभ्यता का इतिहास है । सभ्यता के साथ साथ निरंतर भारत में शिक्षा की अविरल धारा प्रवाहित होती ही रही है । आज से पूर्व भारतीय समाज में शिक्षा की रूपरेखा जो थी वह भिन्न थी । प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति से हमें औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षण प्राप्त था। औपचारिक शिक्षा मंदिर आश्रम और गुरुकुल के माध्यम से दी जाती थी और यही उच्च शिक्षा के केंद्र भी थे। जबकि परिवार, पुरोहित, पंडित ,सन्यासी और त्योहार आदि के माध्यम से अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त होती थी। माता बच्चे की सर्वश्रेष्ठ गुरु होती थी ।लेकिन जैसे-जैसे सामाजिक विकास हुआ वैसे वैसे शैक्षणिक संस्थाएं स्थापित होने लगी ।वैदिक काल में परिषद, शाखा और चरण जैसे संघों की स्थापना हुई। गुरुकुल की स्थापना प्रायः गाँवों के निकट स्थित एकांत वन उपवन में की जाती थी। जहां के पवित्र वातावरण में गुरुजी शिक्षा दिया । नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में सबसे पुराना विश्वविद्यालय था ।
प्राचीन समय में बौद्ध कालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक और सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण किया गया, बौद्ध काल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल किया गया। प्राचीन काल में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था, वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत और उत्कृष्ट थी। लेकिन कालांतर में भारतीय शिक्षा व्यवस्था का ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहां की शिक्षा व्यवस्था को उसके अनुपात में विकसित नहीं किया। जिस अनुपात में इसे होना चाहिए था और अपने अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा ।यह चुनौतियां और समस्याएं आज भी समय के साथ बदल कर हमारे समक्ष हैं , जिन से सामना करने के लिए ही निरंतर समय के साथ-साथ शिक्षा नीति में बदलाव होते रहे हैं ।
1850 तक भारत में गुरुकुल की और मकतब मदरसों की प्रथा चल रही थी।। मध्यकाल में मुस्लिम राज्य की स्थापना होते ही इस्लामी शिक्षा का प्रसार होने लगा।फारसी जानने वालों को सरकारी कार्य के योग समझा समझा जाने लगा। हिंदू भी अरबी और फारसी पढ़ने लगे। इस्लाम के संरक्षण और प्रचार के लिए मस्जिदें बनी तब मकतब और मदरसों की स्थापना होने लगी। मकतब प्रारंभिक शिक्षा के केंद्र होते थे और मदरसे उच्च शिक्षा के ।मूलतः यह गुरुकुल प्रणाली पर ही आधारित शिक्षा थी कि बहुत से बच्चे धार्मिक शिक्षण को ही प्राप्त करते थे, यह मौखिक शिक्षा हुआ करती थी। उच्च शिक्षा मेँ इतिहास ,साहित्य, व्याकरण ,तर्कशास्त्र ,गणित ,कानून इत्यादि की पढ़ाई होती थी। सरकार ही शिक्षक को नियुक्त करती थी। मुसलमानों के लिए अरबी विषय पढ़ना अनिवार्य विषय होता था । राजघरानों में यह शिक्षा महलों के भीतर हुआ करती थी ,जीविकोपार्जन के लिए भी शिक्षा दी जाती थी । दिल्ली ,आगरा ,बीदर, जौनपुर मालवा, मुस्लिम शिक्षा के केंद्र थे । मुसलमानों के संरक्षण में भी संस्कृत काव्य नाटक व्याकरण ग्रंथ और उनका पठन-पाठन होता रहा है।
आधुनिक काल की शुरुआत के साथ भारतीय शिक्षा के इतिहास में नई शुरुआत हुई । 1791 में ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना हुई ।1835 में शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन मैकाले के घोषणा पत्र से हुआ । 1848 में महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ाने के लिए पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला प्राथमिक विद्यालय खोला । इसके बाद कॉलेज और विश्वविद्यालयों की स्थापना होती रही और पढ़ाई का यह क्रम आगे कम आगे बढ़ता चला गया टेक्निकल इंस्टिट्यूट की भी स्थापना हुई । 1906 में बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ भारत के ऐसे प्रथम शासक हुए जिन्होंने अपने राज्य में निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा आरंभ की । फिर गोपाल कृष्ण गोखले ने 1911 में प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य करने का प्रयास किया।
प्राथमिक शिक्षा का आधार है जिस पर देश तथा प्रत्येक नागरिक का विकास निर्भर करता है।इसलिए हर काल में समय हाल में प्राथमिक शिक्षा पर ही ज़ोर दिया गया । हाल के वर्षों में भारत में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन छात्रों की संख्या बरकरार रखने उनकी नियमित उपस्थिति दर साक्षरता के प्रसार के संदर्भ में काफी प्रगति की है। जहां भारत में उन्नत शिक्षा पद्धति को भारत देश के आर्थिक विकास का तत्व माना जाता है ,वहीं भारत में आधारभूत शिक्षा की गुणवत्ता फिलहाल एक चिंता का विषय है ।भारत में 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना संवैधानिक प्रतिबद्धता है। लेकिन अभी भी आधारभूत शिक्षा को सार्वभौम नहीं बनाया जा सका है यानी कि बच्चों का स्कूल में 100 फ़ीसदी नामांकन नहीं हो पा रहा है इस कमी को पूरा करने के लिए वर्ष 2001 में सर्व शिक्षा अभियान योजना प्रारंभ की गई थी। लेकिन सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में सूचना और संचार से वंचित ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के बीच इस दूरी को पाटने का कार्य चल रहा था लेकिन यह अभी तक पूर्णरूपेण उपलब्ध नहीं हो पाया है। बाल अधिकार आज की सबसे बड़ी और उभरती हुई जरूरत है।

भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निदेशक तत्वों में कहा गया कि प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। 1948 में डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के साथ भारत में शिक्षा प्रणाली को व्यवस्थित करने का काम शुरू हुआ। 1952 में लक्ष्मणस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में गठित माध्यमिक शिक्षा आयोग तथा 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग की अनुशंसा के आधार पर 1968 में शिक्षा नीति पर एक प्रकाश प्रस्ताव प्रकाशित किया गया जिसमें राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध चरित्रवान तथा कार्य युवक-युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई अब तक चल रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में की गयी। पुनः 1993 में प्रो यशपाल समिति का गठन किया गया।
राममूर्ति समिति नई शिक्षा नीति पर कुछ सुझाव दिए थे। जिनमें परीक्षा सुधार, मातृभाषा को ,एवं स्त्रियों की शिक्षा जैसी व्यवस्था में सुधार प्रमुख रूप से मुदित है थी।
समय-समय पर उस समय की परिस्थितियों को देखकर शिक्षा में परिवर्तन होता रहा है ।सर्वप्रथम 1964 में जो कोठारी आयोग का गठन हुआ उस समय की शिक्षा के इतिहास को देखते में जो भी गहन समीक्षाएं प्रस्तुत की गई थी। उसे सर्वाधिक गहन अध्ययन माना जाता है और इस ने अपनी रिपोर्ट में सामाजिक बदलाव को ध्यान में रखते हुए भी कुछ ठोस उपाय दिए हैं। प्रारंभिक कक्षाओं में मातृभाषा में शिक्षा दी जाए, इसका प्रावधान उसमें भी था 1 से 3 वर्ष की पूर्व प्राथमिक शिक्षा हो, यही बात भी कही गई थी। विषय विभाजन कक्षा 9 के बदले कक्षा 10 में हो उच्च शिक्षा 3 या उससे अधिक वर्ष का पाठ्यक्रम हो । उसके बाद विभिन्न अवधि के पाठ्यक्रम माध्यमिक विद्यालयों को दो प्रकार में बांटा गया – उच्च विद्यालय और उच्चतर विद्यालय में। लेकिन जैसे-जैसे आगे विकास होता गया वैसे वैसे नीतियाँ बदलती गयी ,संशोधित होती गयी। इन्ही आधारों पर 24 जुलाई 1968 को भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई। यह प्रतिवेदन सामाजिक दक्षता ,राष्ट्रीय एकता और समाजवादी समाज की स्थापना करने के लक्ष्य को लेकर निर्धारित किया गया। शिक्षा प्रणाली का विकास और हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में विकसित करने का प्रावधान रखा गया। यहां भी शिक्षा में विज्ञान व तकनीकी के साथ- साथ नैतिक ,सामाजिक, मूल्यों के विकास पर जोर दिया गया।

नई शिक्षा नीति 2020 भारत की वह शिक्षा नीति है जिसे भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया। सन् 1986 के बाद हुई नई शिक्षा नीति के बाद यह भारत की नई शिक्षा नीति है जिसमें शिक्षा का प्रारूप बहुत हद तक बदलने की कोशिश की गई है। नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्टूबर 2015 को सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में 5 सदस्यों की कमेटी बनाई जिस ने 27 मई 2016 को अपनी रिपोर्ट दी फिर 24 जून 2017 को इसरो के प्रमुख रहे वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति ड्राफ्ट करने की जिम्मेदारी दी 31 मई 2019 को एक ड्राफ्ट एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया ।ड्राफ्ट पर एचआरडी मंत्रालय ने लोगों से सुझाव मांगे लगभग दो लाख से अधिक सुझाव आए और उसके बाद 29 जुलाई को कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी ।नई शिक्षा नीति में बहुत सारे बदलाव हुए इन बदलावों की आवश्यकता इसलिए थी कि वर्तमान संदर्भ में जो शिक्षा नीति है वह वर्तमान जरूरतों को पूरा करने में अक्षम है। जैसे-जैसे बौद्धिक क्षमता का विकास हो रहा है देश आगे की ओर जा रहा है तो शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पावर बनाने के लिए इस शिक्षा नीति की आवश्यकता थी समय-समय पर बदलाव होना भी आवश्यक ह
यह शिक्षा नीति आने वाले कुछ वर्षों में पूर्णरूपेण लागू होगी।इस नीति के तहत 2030 तक 100% नामांकन शत-प्रतिशत नामांकन का लक्ष्य रखा गया है और जीडीपी का 6% हिस्सा शिक्षा पर व्यय करने का प्रावधान है। अब मानव संसाधन प्रबंध मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया जा रहा है। सबसे प्रमुख बात यह है कि पांचवी कक्षा तक शिक्षा में मातृभाषा अन्य क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है।
इस नीति में 10 + 2 + 3 के प्रारूप की जगह अब 5 + 3 + 3 + 4 के प्रारूप को शामिल किया गया है । पहले 5 साल में प्री प्राइमरी स्कूल के 3 साल और कक्षा एक और कक्षा दो सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे जहां सरकारी स्कूलों में शिक्षा कक्षा 1 से शुरू होती थी ।वहीं अब 3 साल के प्री प्राइमरी के बाद कक्षा 1 शुरू होगी। इसके बाद कक्षा 3 से 5 के 3 साल शामिल है और फिर 3 साल का मिडिल स्टेज यानी कक्षा 6 से 8 और क्रमशः आगे- आगे होगा ।वर्तमान शिक्षा नीति में रट्टामार प्रणाली को समाप्त करने की कोशिश की गई है। अभी जो शिक्षा चल रही है उसमें यह सबसे बड़ी कमी देखी गई है कि बच्चों की प्रवृति रट्टामार है,परीक्षा को ग्रेडिंग सिस्टम में रखने के बावजूद बच्चों एवं अविभावकों का ज़ोर नंबर तथा ग्रेड पर ही होता है। बच्चों में जिज्ञासु प्रवृति समाप्त हो रही है। बच्चे स्वयं से कुछ खोजना ,कुछ करने की बात सोचते ही नहीं है। इसलिए इस नीति के तहत शिक्षकों को भी विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता पर बल दिया गया है ।नई शिक्षा नीति के तहत 3 से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अंतर्गत रखा गया है और सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है ।इस लक्ष्य को पाने के लिए 2025 तक पूर्व प्राथमिक शिक्षा 3 से 6 वर्ष की आयु सीमा को सार्वभौम बनाना है। शिक्षा नीति के तहत जो सिस्टम लाया गया है वह ऐसा माना जा रहा है कि स्कूल के पहले 5 साल जिसमें पूर्व प्राथमिक शिक्षा और प्रथम तथा द्वितीय कक्षा सम्मिलित है यह मूलभूत अवस्था है जो कि शिक्षा की नींव तैयार करने का काम करेगी इसमें पाठ्यक्रम को लचीला ,खेलकूद एवं अन्य गतिविधियों को शामिल किया जाएगा।
5 वर्ष अर्ली स्कूलिंग के होंगे । पहले भी 5 वर्ष से पूर्व केबच्चों की देखभाल हेतु आंगनवाड़ी केंद्र हुआ करते थे । पर अब नई शिक्षा नीति में इसे बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (early childhood care and education ECCE) केई तहतडाला गया है जिससे एक मजबूत बुनियाद बन सके और आगे चलकर बच्चों का विकास बेहतर हो सके।
यानि नई शिक्षा नीति में 8 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षणिक पाठ्यक्रम प्रारम्भिक बाल देखरेख ढांचा (NCPF ECCE) विकसित किया जाएगा ।जिसकी जिम्मेदारी शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण की राष्ट्रीय परिषद की होगी ।प्रारंभिक बाल देख-रेख की सहायता से देश की स्थानीय परम्पराएँ , कला ,कहानियां, कविता, खेल और गीत को उपयुक्त रूप से शामिल किया जाएगा।
बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए आंगनवाड़ी शिक्षक और वर्कर को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसी के तहत बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के आधार को मजबूत करने के लिए आंगनवाड़ी ,प्राथमिक स्कूलों में स्थित आंगनवाडी- सह- प्राथमिक स्कूलों का विस्तार किया जाएगा। जिसका उद्देश्य भौतिक ,संज्ञानात्मक, सामाजिक- भावनात्मक विकास सांस्कृतिक व कलात्मक विकास के सुदृढ़ परिणामोंकों प्राप्त करना होगा ।
5 वर्ष की उम्र तक शिक्षा से जुड़े विषयों का दायित्व महिला और बाल विकास मंत्रालय के पास रहेगा और उसके बाद यह स्कूल शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से शिक्षा विभाग देखेगा। इस शिक्षा नीति में राइट टू एजुकेशन का विस्तार होगा। पहले 6 से 14 साल के बच्चों के लिए आरटीई लागू किया गया था ,अब यह 3 से 18 साल के बच्चों के लिए है।
इस नीति में आंगनवाड़ी के माध्यम से पोषण के साथ शिक्षा को जोड़ने का भी प्रावधान है ।पहले दिये जा रहे मध्याहन्न भोजन के साथ साथ बचोन कोनाश्ता दिये जाने की भी योजना है।
स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने हेतु और कक्षा छठी से ही वोकेशनल कोर्स शुरू किया जाना है ।
सभी बच्चों को पाँचवी कक्षा तक मातृभाषा ,स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा देने की बात है। यह फार्मूला प्राइवेट और सरकारी तीनों स्कूलों दोनों स्कूलों के लिए लागू होगा ।तीन लैंग्वेज का फार्मूला इसमें दिया गया है। जिसमें मातृभाषा और स्थानीय भाषा पर जोर दिया गया है और कहा गया कि जहां संभव होगा वर्ग तक इसी प्रक्रिया को अपनाया जाएगा ।संस्कृत भाषा के साथ तमिल, तेलुगु ,कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं पर भी जोर दिया गया है।

नई शिक्षा नीति में विभिन्न भाषाओं को सन्निहित कर हिंदी का मान बढ़ाया गया है कौशल का विकास किया गया है। कला के द्वारा ही भारतीय संस्कृति बची है हिंदी कला के केंद्र में है ।यद्यपि इससे पूर्व भी दो शिक्षा नीति आई उनमें भी शिक्षा,शिक्षकों के बेहतर क्षमतावर्धन के लिए उचित प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया गया ,1992 में भी इसे संसोधित किया गया। प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य कोप्राप्त करने के लिए पाँच प्रमुख क्षेत्र की पहचान की गयी ताकि समुदाय के अनुरूप शिक्षा को बनाया जा सके।आर्थिक उदारीकरण की नई चुनौतियों का सामना किया जा सके। लेकिन आज भी भारत की गिनती शिक्षा केमामले में पिछड़े देशों में ही होती है। इस नीति मे कई लक्ष्यों को रखा तो गया है ,लेकिन असली चुनौती इसे लागू करने की है। इस दिशा में आनेवाली वित्तीय और प्रशासनिक अड़चनों को दूर करने की है। इस नीति में जीडीपी के 6% को व्यय करने की बात कही गयी है ,जबकि इधर शिक्षा के बजट मे लगातार कटौती हो रही है। जहां हमारे देश में शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया है शिक्षा केंद्र और राज्य दोनों का विषय है वहाँ आपसी मतभेद और नीतिभेद इसके लागू होने पर संशय उत्पन्न करता है। लेकिन आनेवाले समय कोड़ेखते हुए और विश्व के मानचित्र पर अपना स्थान बनाए रखने और बढ़ाए रखने हेतु दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है नई शिक्षा नीति के पूर्णरूपेण लागू करने की इसके उद्देश्यों को पूरा करने की।

डॉ अनीता शर्मा शिक्षाविद और साहित्यकार
शिक्षिका उत्क्रमित उच्च विध्यालय ,लक्ष्मीनगर,जमशेदपुर, झारखंड

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