और कितने कुरुक्षेत्र
आज ऑफिस में बड़ी गहमा-गहमी थी। पूरे दो घंटे की माथापच्ची के बाद आकाश ने कम्पनी के बारे में एक प्रस्तुति तैयार की थी। उसे एक बढ़िया मौका मिलेगा अपनी प्रतिभा दिखाने का। दरअसल, ये कम्पनी नई ही बनी थी। चार साल पहले कनाडा से स्वदेश लौटे श्री मनोज बख्शी ने शुरु की थी। ई-कॉमर्स की कम्पनी। पूरे आठ महीनों के संघर्ष के बाद कम्पनी को ऑफिस की जगह मिली थी सरकारी आई टी पार्क में। कभी ये इंस्पेक्टर, कभी वो इंस्पेक्टर आ जाते थे। पूरे सात लोग आए थे, उस दिन जब सरकार की सहमति मिली थी। आकाश ने पूरी लिस्ट तैयार की थी। देने दिलाने की बात भी कभी-कभी दबे छुपे स्वर में होती ही थी। दिवाली पर जब उनको छोटे डिब्बे मिले तो उन्होंने कितना बुरा मुँह बनाया था। आकाश, बख्शी का चहेता था। भारत की कोई लड़ाई कभी खत्म नहीं होती, क्योंकि हम अपने आप से ही लड़ते हैं–बख्शी कहा करते थे। खैर फिर कम्प्यूटर भी लग गए। वहाँ भी वही जद्दोजहद | एक और कुरुक्षेत्र सामने था। क्या, कितना, कहाँ माल बाहर से ला सकते हैं इस पर बड़ी माथापच्ची हुई । कानून के पन्ने उलटे गए और फिर एक रहमदिल अफसर की कृपा से कम्पनी में कम्प्यूटर और अन्य सामान लग गए। और धीरे-धीरे चालीस कर्मचारी काम करने लगे। इनमें से दो तो भत्तीजे थे किसी बड़े अधिकारी के। इनको भी सिखा देंगे, कोई बात नहीं, बख्शी मुस्कुराते हुए शायद अपने आप को ही समझा रहे थे। पिछले तीन सालों में कम्पनी ने थोड़ा मुनाफा कर लिया था।
जॉन, बख्शी का बिजनेस पार्टनर था और कनाडा से आया था। जॉन के स्वागत की जोरदार तैयारियाँ चल रही थी। जॉन की भागीदारी थी पैसों से भी और इस प्रोडक्ट को विदेशों में बेचने पर भी। न जाने कितने सवाल पूछ रहा था जॉन। आकाश के पास इतनी जानकारियाँ भी नहीं थी। सभी कर्मचारी, जो कि अब करीब साठ के ऊपर थे, उनमें से कई की कार्यक्षमता पर भी सवाल उठे। जॉन ने कहा कि कल फिर वो सबसे अकेले में मिलेगा।
बख्शी शाम को थोड़ा परेशान दिखे। उनको भी पता था कि पत्तों से बहुत दिनों तक आवरण नहीं रखा जा सकता। साठ में करीब छह तो सिफारिशों पर आए थे और जॉन के सामने तो उनकी पोल खुल जाएगी और एक नहीं चलेगी। चुटकियों में पकड़ लेगा। ये विदेशी केवल लाभ-हानि देखते हैं। बख्शी को भी नहीं बक्शेंगे-सोचकर आकाश मुस्कुरा उठा था। लेकिन अगले ही क्षण वो रणनीति तैयार करने लगा-इस अनचाही मुसीबत से गुजरने की। इस कुरुक्षेत्र में तो योद्धा बनकर आना है जॉन के तीरों का सामना करने के लिए।
जॉन ने बख्शी की भी एक ना सुनी। छोटी कम्पनी में दया, दान, धर्म का कोई महत्त्व नहीं है। छह में एक को तो क्षमा याचना मिल गई शायद महिला होने के नाते। लेकिन बाकी पाँच हो गए ‘फायर’। उन्हें कोई अवसर भी नहीं दिया जॉन ने। बुरा तो लगा आकाश को, लेकिन कोई चारा नहीं था।
बख्शी ने जॉन के जाने के तीन महीने बाद उसे अपने कमरे में बुलाया। तीन अलग-अलग फैक्स उसके सामने रख दिए। एक बड़ा प्रोजेक्ट हाथ से निकल रहा था। एक नोटिस था जो कुछ आयात-निर्यात कानून उल्लंघन करने के विषय में था। और तीसरा नोटिस इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से था। उन पाँचों का संबंध, जो कम्पनी से निकाले गए थे, इस नोटिस से कहीं न कहीं तो था ही। भई चहेतों को जो हटा दिया था बख्शी ने। ये अब एक नया कुरुक्षेत्र था। दुश्मन कब और कहाँ से आगे आ जाए, ये पता ही नहीं था। गलती क्या थी बख्शी की? उसने तो दया ही दिखाई थी। कठपुतली के खेल में जॉन के हाथ में ज्यादा ताकत थी। वो ऐसे ही नाराज था कि कम्पनी ऐसे लोगों पर खर्च कर रही थी जो कि उसके हकदार थे ही नहीं। बख्शी ने तो वही किया था, जो शायद उस समय की माँग थी। वह अपने छोटे बिजनेस को सँम्हालना चाहता है। एक कुरुक्षेत्र हो तो आदमी हताश हो जाता है, यहाँ तो हर मोर्चे पर लड़ाई थी।
आकाश ने बख्शी जी को फैक्स पढ़कर लौटा दिए थे। देवों और दानवों की लड़ाई में दानवों को ही जीतते देखा है। लेकिन न्याय के लिए युद्ध जरूरी है। बख्शी ने कहा-नोट टू वरी।
चलो भई, मैं एक और कुरुक्षेत्र के लिए तैयार हूँ। आकाश ने भी सिर हिला दिया। आगे की लम्बी लड़ाई लड़ने के लिए।
-डॉ. अमिता प्रसाद