सादा जीवन उच्च विचार
आज १४ सितंबर २०२० ,जब सम्पूर्ण देश हिंदी दिवस के रूप में माना रहा है।सभी के जहन में यह बात उठती है कि इसके पीछे कारण क्या था।आज बताते हुए हर्ष हो रहा है कि मेरे परिवार में मेरे पिताजी की तीसरे व सबसे छोटी बहन के ससुर जी की जन्म तिथि है, जिन्हें सौभाग्यवश हमने भी देखा और मिले भी है ।
जब हम अपने बाबा के साथ उनको इलाहाबाद के स्टेशन पर मिलने गए ,ट्रेन थोड़ी देर रुकती हुईं जबलपुर जाती थी। इलाहाबादी अमरूद ( एप्पल गुआवा) जो उनके परिवार को बेहद पसंद थे उसको लेकर हम सब “कक्का जी” से मिले।मात्र थोड़ी ही देर में उनके सादगी भरे अस्तित्व ने मुझ जैसी छोटी बच्ची के अतः पटेल पर जो छाप छोड़ी वह अविस्मरणीय है।
सीधे सादे ढीला सा पायजामा ,कुर्ता खादी का और मेरी निगाह उनकी टूटी हुई हवाई चप्पल पर अटक कर रह गई।ये वही साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिन्हा जी थें ।
कुछ तस्वीरें मेरे पास पुराने एल्बम में है जो मेरी बुआ की शादी की है, वो आपसे साझा करने में हर्ष हो रहा है।
जिनकी जन्मतिथि की चर्चा हिन्दी दिवस को समर्पित है।
कुछ और अधिक विस्तार से मेरे छोटे भाई, (बुआ के बेटे ) डॉक्टर ब्योहार अनुपम सिन्हा से उसकी किताब से मिली है ।जो विदेश से डॉक्टरी के बाद वहीं सपरिवार जबलपुर निवासी है और पैतृक स्थान से जुडे़ रहने में गर्व महसूस करते है।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने के लिए इसलिए चुना क्योंकि इसी दिन ख्यात साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिन्हा का भी जन्मदिन है। हिंदी के इस महान साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। उनके संघर्ष और मेहनत की वजह से हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकी। व्यौहार राजेन्द्र सिन्हा का जन्म 14 सितंबर, 1900 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। संविधान सभा ने उनके अथक प्रयास पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए 14 सितंबर, 1949 को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होगी। इस दिन व्यौहार राजेन्द्र सिंह का 50 वां जन्मदिन भी था। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास की भी अहम भूमिका रही है।
विनी भटनागर
दिल्ली