हिंदी भाषा काः हिन्दुस्तानियों से संवाद ।

हिंदी भाषा काः हिन्दुस्तानियों से संवाद ।

अभी तो मेरे अच्छे दिन हैं ।
काश ये सपना टूटे ना,
हिन्दी पखवाड़ा बीते ना।
अभी ही तो होंगे,
काव्य गोष्ठी और पुस्तक विमोचन,
और ना जाने कितने कितने?
कार्यक्रमों के आयोजन ।
नेता हो या अभिनेता,
सब अभी ही तो हिन्दी बोलेंगे,
कानों में मिसरी घोलेंगे।
आहा ! कितना सुख मिलता है, कानों को, अपनी ही तारीफें सुनकर,
अभी तो मेरे अच्छे दिन हैं,
काश ये सपना टूटे ना,
हिन्दी पखवाड़ा बीते ना,

सपनों के बाहर यथार्थ का दर्द,
हम दोनों ही,
अच्छी तरह समझते हैं,
भारी भरकम बजट बनेंगे,
अंग्रेजी में सेटल भी होंगे,
उड़ाओ खूब बजट तुम,
तुम्हें किसने है रोका?
पर मुझे ना बांधो सीमाओं में,
पर मुझे भी तो देखना है,
सागर का वो सुरमयी तट,
महेन्द्र और नीलगिर पर्वत,
मेरे दक्षिण भारत का संसार,
उसी बजट में मुझ को भी,
थोड़ा सा तो सैर करा दो,
राजनीति व भाषण बाजी से,
अगर मिल गई हो फुर्सत तो,
पूर्वोत्तर के साथ सखी से मेरी भी भेंट करा दो,
मैं भी सलाम करना चाहती हूँ ।
अरूणाचल के उठते सूरज को,
महसूस करना चाहती हूँ,
ब्रह्मपुत्र की पावन लहरों को,

अभी तो मेरे अच्छे दिन हैं!
काश ये सपना टूटे ना,
हिन्दी पखवाड़ा बीते ना।
जैसे ही सपना टूटेगा,
पर्सनाल्टी का डंडा छूटेगा,
कैसे बनाओगे तुम हमें,
*राष्ट्र भाषा *?
जबकि रहने दिया,मुझे तुमने,
अपने घर तक की भी भाषा,
धक्के मार निकाला घर से,
सोशल स्टेटस और पर्सनाल्टी के चाहत में,

अभी तो मेरे अच्छे दिन हैं,
कश्मीर ये सपना टूटे ना,
हिन्दी पखवाड़ा बीते ना,

क्यों करते हो?
छद्म छलावे हिन्दी पखवाड़े का आडंबर,
हिन्दी भाषा के दिखावे का ये प्रचार प्रसार,
अगर तुम में है हिम्मत तो,
हिन्दी स्नातक तक का, अनिवार्य विषय बनाओ।
अब बस।।।
बहुत हो गया,
राज काज की भाषा और मातृभाषा के,
लुका छिपी का यह खेल,
अब समय आ गया है,
कथनी करनी एक बनाओ
हिन्दी को राष्ट्र भाषा का ,
संवैधानिक अधिकार दिलाओ,
अभी तो मेरे अच्छे दिन हैं,
काश ये सपना टूटे ना ,
हिन्दी पखवाड़ा बीते ना!

कुमुद “अनुन्जया “

0