हिन्दी : कल, आज और कल

हिन्दी : कल, आज और कल

हिन्दी हमारी मातृभाषा और हमारी राष्ट्रभाषा है। हमारे राष्ट्र के माथे की बिन्दी है। भाषा संप्रेषण का सशक्त साधन होता है। जीवंतता, स्वायत्तता तथा लचीलापन भाषा के प्रमुख लक्षण हैं। इसलिये देश में हिन्दी बोली जाने के आधार पर 14 सितंबर 1949 को संविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राजभाषा पद पर स्वीकृत किया और 1963 में राजभाषा अधिनियम जारी हुआ। यही कारण है कि हम 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रुप में मनाते हैं।

साहित्यकारों ने हिन्दी के लिये बहुत कुछ किया।हिन्दी को अपनी लेखनी और साहित्य से समृद्ध किया है। आधुनिक हिन्दी के जनक कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद ने कहा था अपनी भाषा की उन्नति में ही अपनी उन्नति है। आगे महावीर प्रसाद द्विवेदी,माखनलाल चतुर्वेदी,हज़ारी प्रसाद द्विवेदी,प्रेमचंद,निराला,पन्त,महादेवी वर्मा, बच्चन आदि ने हिन्दी को खूब समृद्ध किया है। आज भी हिन्दी में बहुत कुछ लिखा जा रहा है,,,पर हिन्दी भाषा के साथ एक बड़ी बिडंबना है। विश्व में ७० करोड़ लोग हिंदी भाषी हैं और यह तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन हिंदी प्रचार प्रसार के लिए सरकार द्वारा जो समुचित कदम उठाये जाने चाहिये थे वो उन्होंने नहीं किया। भले ही विश्व के विश्व विद्यालयों में हिंदी अध्यापन हो रहा है परंतु विडंबना यह है कि हिंदी भाषा अपने ही घर में उपेक्षित ज़िन्दगी जी रही है। यहाँ गुड मॉर्निंग से सूर्योदय और गुडनाइट से सूर्यास्त होता है। हैप्पी बर्थ डे से जन्म और आर आई पी से मरण संदेश भेजे जाते हैं। सच पूछा जाये तो अंग्रेजी बोलने वाले को बुद्धिमान और हिंदी बोलने वालों को समाज में हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता है। जब भी हिंदी दिवस आता है हम हिंदी पखवाड़ा मना कर “हिंदी मेरी शान हिंदी मेरी जान “बोल कर अपने कर्तव्य को पूरा कर लेते है। माता-पिता भी कम दोषी नहीं, जब वे अपने बच्चों को बोलना सिखाते हैं तब अपने बच्चे के आगे अंग्रेज़ी परोसने लगते हैं। हिंदी की दशा हमारी दोहरी नीति की शिकार हो गई है।

हिंदी को कभी सर्वश्रेष्ठ भाषा का दर्जा प्राप्त था। आज उसकी ऐसी दुर्दशा जिसे लोग बोलने में ,संदेश भेजने में शर्म का अनुभव करते हैं। अंग्रेज़ी में संवाद लिख या बोल कर अपने को संभ्रांत महसूस करते हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी मिश्रित भाषा का प्रचलन (हिंगलिश) शहरों में तो आम बात है, अब तो गाँव में भी देखने, सुनने को मिलने लगा है।
हिंदी की दुर्दशा का आकलन तो इसी बात से लगाया जा सकता कि इंग्लिश मिडियम स्कूलों में हिंदी का आस्तित्व बचाने के लिए अनिवार्य विषय के रुप में पढ़ाने के लिए सरकार को प्रयास करने पड़ रहे हैं। विदेशी भाषा के ज़ंजीर से जकड़ी हिंदी को दोयम का दर्जा प्राप्त है। अंग्रेज चले गये पर अपनी अंग्रेजी छोड़ गये और भारतीयों पर इस कदर हावी है कि इसके आगे अपनी भाषा हिन्दी के प्रति रुझान नहीं,,,गर्व नहीं। मुझे तो आशंका है,,,जब स्वतन्त्रता के बाद भरत में अंग्रेजी ने इतनी जल्दी लोगों पर कब्जा जमा लिया है तब अगले 50 वर्षों में हिन्दी की स्थिति क्या होगी!!??

अनिता निधि
जमशेदपुर, झारखंड

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