राष्ट्रीय शिक्षा नीति
आज भारत बहुत ही मजबूत ज़मीन पर खड़ा है क्यों कि अगले दशक में भारत विश्व के गिने चुने राष्ट्रों में शामिल हो जायेगा जिसकी जनसंख्या में युवाओं का प्रतिशत अधिक होगा। ऐसे राष्ट्र के विकास के लिए एक सुदृढ़ शिक्षा नीति का होना आवश्यक है।अभी से ही अगले दशक की योजना बनानी होगी। युवा शक्ति को शिक्षा के समुचित अवसर देने ही होंगे तभी यह देश विश्व के सर्वाधिक विकसित देशों में गिना जायेगा। तेज़ी से बदलते इस संसार में ज्ञान भी बढ़ता जा रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ,डाटा साइंस , मशीन लर्निंग , कोडिंग के इस दौर में बहुत से रोज़गार के अवसर मशीनों के द्वारा हथिया लिए जायेंगे।
इस बदलते वैश्विक परिवेश में, बदलते दौर में शिक्षा नीति में बदलाव लाना अति आवश्यक था। यह बेहद जरुरी हो गया है जानना और समझना कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं बल्कि यह भी कि कैसे पढ़ रहे हैं। अब केवल विषय वस्तु ही जानना जरुरी नहीं बल्कि उस विषय को विश्लेषणात्मक तरीके से समझना भी जरुरी है। सृजनात्मकता ,तार्किक विवेचना, से समस्या के तह तक जाकर समाधान ढूंढने की शिक्षा भी देना जरुरी है .कुछ बातें रटंत विद्या से बेहतर सिखायी जाती हैं लेकिन शिक्षा पद्धति को समग्र , अनुभव परक , खोज परक अधिगम केंद्रित ,लचीला , और मज़ेदार होना चाहिए। पाठ्यक्रम में कला,मानविकी,खेल कूद,भाषा, साहित्य, संस्कृति , विज्ञान, गणित, सब को शामिल करना चाहिए ताकि बच्चे का सर्वांगीण विकास हो सके.. शिक्षा ऐसी हो जिस से चरित्र निर्माण हो सके,नैतिक गुणों के साथ साथ शिक्षार्थी को सहिष्णु, दयालु और दूसरों का दर्द समझने वाला बना सके।आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि देखे बिना प्रत्येक वर्ग को शिक्षा मिलनी चाहिए। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अभी से सार्थक प्रयास शुरू कर देना चाहिए।
इक्कीसवीं शताब्दी की यह पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति राष्ट्र विकास को ध्यान में रख कर बनायी गयी है।भारतीय परंपरा और सामाजिक मूल्यों की रक्षा करते हुए यह शैक्षिक नीति तैयार की गयी है। विकसित राष्ट्र की यही कल्पना की गयी है कि राष्ट्र की उन्नति की सबसे महत्वपूर्ण नींव शिक्षा ही होती है।प्रत्येक बच्चे को स्कूल की दहलीज़ तक पहुंचाना और राष्ट्र निर्माण के लिए चरित्र निर्माण करना आवश्यक है। चाणक्य कहते हैं कि राष्ट्रीय चरित्र निर्माण शिक्षकों के चरित्र निर्माण से शुरू होना चाहिए।
१९८६ की शिक्षा नीति की १०+२+३ को हटा कर ५+३+३+४ संरचना में कौशल विकास,तार्किक और वैज्ञानिक सोच को विकसित करने का प्रयास किया जायेगा। एक विशेष बात और है कि विषयों के बीच अंतर को पाटने की कोशिश की गयी है। कला विज्ञान ,पाठ्य अधिगम या व्यावसायिक, तथा शैक्षणिक को अलग अलग न कर के एक दूसरे से जोड़ कर रखने का सुझाव दिया गया है।
यह निश्चित किया गया है कि जब बच्चा स्कूल से निकले तब तक कम से कम एक कौशल वह सीख चुका हो। इस ५+३+३+४ पद्धति में परीक्षाओं का बोझ कम करने की कोशिश की गयी है। राष्ट्रीय स्तर पर बोर्ड परीक्षा सिर्फ एक बार बारहवीं कक्षा में होगी। ज्ञान और उसके उपयोग पर आधारित शिक्षण को विशेष महत्व दिया गया है। बच्चों के शिक्षण अधिगम का सतत मूल्यांकन किया जायेगा।
कक्षा ५ तक की शिक्षा यदि मातृभाषा में दी जाये तब बच्चे आसानी से ग्रहण कर सकेंगे। अंग्रेजी को हटाया नहीं जायेगा लेकिन जब नींव मातृभाषा में रख दी जाएगी तब दूसरी भाषा सुग्राह्य होगी। आंचलिक भाषा , घरेलु भाषा ,मातृभाषा द्वारा व्यक्तित्व के समग्र विकास में सुविधा होगी।प्रत्येक बच्चा बहुभाषीय हो सकेगा।
कक्षा ६ में व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत की जाएगी। साथ ही भारतीय परंपरा और संस्कृति , पारम्परिक कला ,लोक विद्या,शास्त्रीय भाषा और साहित्य आदि की शिक्षा भी स्कूलों में दी जाएगी।
तकनीकी शिक्षण भी स्कूल से ही शुरू कर दिया जायेगा। स्कूलों को डिजिटल बनाया जायेगा और अधिकांश शिक्षण, अधिगम ,मूल्यांकन प्रशासन, प्रबंधन, कार्य तकनीकि के प्रयोग से ही निपटाए जा सकेंगे।
दिव्यांग शिक्षा को ध्यान में रख कर शिक्षा सॉफ्टवेयर विकसित किये जायेंगे।
एक विशेष बात इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह है कि सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों पर ही यह शिक्षा नीति मान्य होगी। इस से प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच की खाई को कम किया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का ड्राफ्ट २९ जुलाई को देश के शिखाविदों के समक्ष रखा गया और उनसे विभिन्न मुद्दों पर राय मांगी गयी। नैतिक शिक्षा , अनुभव जनित शिक्षा, सांस्कृतिक शिक्षा ,योग शिक्षा , व्यावसायिक शिक्षा आदि को समाहित करते हुए डिजिटल शिक्षा कैसे प्रदान की जाये इस पर बहुत विचार मंथन किया जा रहा है। डिजिटल भारत में डिजिटल शिक्षा देना बहुत आवश्यक है।
आज भी अनेक ऐसे डिग्री धारी तथा कथित शिक्षित लोग आपको अपने आस पास मिल जाएंगे जिन्हें ए टी एम से पैसे निकालने में दिक्कत होती है या, ऑनलाइन कनेक्ट नहीं हो पाते या अपना इ मेल नहीं देख पाते ,या डिजिटल मार्केटिंग नहीं जानते ,या स्मार्टफोन का प्रयोग नहीं कर पाते। शिक्षा हमें जीवन से जोड़ने वाली होनी चाहिए। हमें ज्ञान का प्रयोग करना सीखना होगा , सिद्धांत और व्यवहार में सम्बन्ध होना चाहिए। किताबी शिक्षा और जीवन से जुडी शिक्षा दोनों की आवश्यकता आने वाली पीढ़ी को लेनी होगी।
मेरे विचार से स्कूलों में बच्चों को व्यवसाय से जोड़ने के लिए उन्हें स्थानीय कारीगरों , हस्त शिल्पकारों दस्तकारों के हुनर और कौशल से भी जोड़ना चाहिए ताकि वे जब स्कूल से निकलें तब किसी एक कौशल में दक्षता हासिल कर के निकलें।
इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति की पूर्ण सफलता शिक्षकों के ऊपर ही निर्भर करती है। अच्छी से अच्छी नीति का क्रियान्वयन सही तरह से नहीं हो पाता और सरकार कुछ नहीं कर सकती। मिड डे मील का उद्देश्य बच्चों को शिक्षा के साथ पोषित भी करना था लेकिन शिक्षकों ने खिचड़ी बांटना और अपना घर अनाज की बोरियों से भरना शुरू किया। पठन पाठन की जगह बच्चों से भी खिचड़ी बनवाने लगे। झारखण्ड में लड़कियों की शिक्षा के लिए उन्हें सायकिल देने की योजना शुरू की गयी और उनके बाप और भाइयों ने सायकिल घर में रख कर उन्हें स्कूल जाने से मना कर दिया। अनेक ऐसे उदाहरण विभिन्न राज्यों के मिलते हैं जहां सरकार के सारे प्रयास भ्रष्ट और बेईमान शिक्षकों के कारण विफल हो गए .
इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तकनीक शिक्षा पर बहुत अधिक बल दिया गया है. इंटरनेट और वाई फाई पर आधारित इस नीति की पूर्ण सफलता के लिए घर घर तक मुफ्त इंटरनेट की सुविधाएं मुहैया करनी होगी। फिलहाल अधिकांश स्कूलों के स्मार्ट क्लासेज का प्रयोग नहीं किया जा रहा क्यूंकि शिक्षक उसका प्रयोग करना ही नहीं जानते। आज भी इस देश में घर घर तक बिजली नहीं पहुंची जहां मोबाइल चार्ज किया जा सके, जहां बल्ब की तेज़ रौशनी में बच्चे पढ़ सकें, जहाँ टी वी पर सरकार द्वारा प्रायोजित शैक्षणिक कार्यक्रम देखे जा सकें , जहां प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चल सकें ।
शिक्षा नीति “२० में शिक्षकों का दायित्व बढ़ गया है. उनको इस नीति के क्रियान्वयन के लिए पूर्ण रूप से प्रशिक्षित होना होगा। अब वैसे लोग शिक्षक नहीं बन सकते जो सभी जगह से धक्के खाने के बाद स्कूल में पढ़ाने चले आते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि बच्चों को पढ़ाना सबसे आसान काम है। वे यह भूल जाते हैं कि देश का भविष्य हमारे बच्चों की शिक्षा पर ही निर्भर करता है। नौनिहाल ही देश का नाम रोशन करेंगे।
अब बी एड कॉलेजों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाएगी। १२वी कक्षा के बाद चार वर्षीय बी एड कोर्स में वही विद्यार्थी दाखिला लें जिन्हें आदर्श शिक्षक बनना हो , जिन्हें शिक्षक बन कर देश सेवा करनी हो. शिक्षक के ऊपर पूरी पीढ़ी को संवारने का महत्वपूर्ण दायित्व होता है। आज किसी विद्यार्थी के जीवन का उद्देश्य शिक्षक बनना नहीं होता। हर व्यक्ति पैसा कमाना चाहता है इंजीनयर ,डॉक्टर अफसर बन कर आराम की ज़िन्दगी जीना चाहता है। शिक्षक बन कर बच्चों की ज़िन्दगी बनाने की कोई कल्पना भी नहीं करना चाहता। यदि शिक्षक की सैलरी बढ़ा दी जाय और उसे भी तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाएं जो सरकारी अफसर को मिलती हैं तब शिक्षा की स्थिति भी सुधरेगी और छात्र प्रेरित भी होंगे। सैलरी अच्छी होने पर अच्छे लोग भी शिक्षक बनना चाहेंगे। अब वक़्त आ गया है जब शिक्षक का समाज में मान सम्मान और खोयी हुयी प्रतिष्ठा वापस मिलनी ही चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि ए पी जे कलाम को एक अच्छा शिक्षक न मिला होता तो देश को एक महान वैज्ञानिक और एक योग्य राष्ट्रपति न मिला होता। राम कृष्ण परमहंस,विवेकानंद, वाल्मीकि और द्रोणाचार्य जैसे गुरु शिष्य परंपरा निभाने वाले इस राष्ट्र में एक श्रेष्ठ शिक्षा नीति के साथ एक सुदृढ़ कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक की भी बहुत आवश्यकता है।
डॉ जूही समर्पिता
प्रधानाचार्या
डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
जमशेदपुर, झारखंड