जीना सिखाती ज़िन्दगी
आज पहली बार अज़ीब सी मनःस्थिति है। लोग न जाने कैसे बड़ी बड़ी बातें कर लेते हैं किसी के बारे में भी मेरे साथ कभी भी कोई बुरा व्यवहार करता है तो मुझे बुरा लगता है। कोशिश रहती है कि मेरी तऱफ से कभी कोई आहत न हो।पर जब अति हो जाती है तो हलचल मच जाती है ज़ेहन में।फ़िर एक फ़िक्र होने लगती है।
माँ कहती हैं कि फिक्र वाले हिस्सों को सोचना बंद करना चाहिए या उन विचारों को मन से हटा देना चाहिए।जिस सोच से आप परेशान हो उससे किनारा करना बेहतर।वे अक्सर कहती जब हम भाई बहन आपस मे लड़ते सुनो चुप्पी साध लिया करो।बुरा बोलने से बेहतर होता है यह।शब्द घाव कर देते हैं। और हम चुप हो जातें।कई दिनों तक। लड़ना झगड़ना बन्द शांत। उनका इरादा गलत नही था।पर मेरे दिमाग मे यह बात घर कर गई। मैं आज भी किसी बात से आहत होती हूँ या किसी की वजह से आहत होती हूँ तो मैं खामोशी ओढ़ लेती हूँ।मेरे व्यकितत्व का दूसरा पहलू है यह।
मैं हट जाती हूँ उस जगह से आखरी प्रयास तक कोशिश रहती है कि सब ठीक हो।पर जब लगता है कि संभव नही है तो एक निर्णय…!!अलविदा ही होता है।
अपनों के आसपास भी फिर वह व्यक्ति विशेष बर्दाश्त ही नही। जानती हूँ यह गलत है। पर वेदना जब चरम पर हो न तो आगाह करना ज़रूरी हो जाता है।नही जानती कितना सही कितना ग़लत।विचारणीय बात सिर्फ इतनी की बड़े बड़े हादसों को अंजाम देने वाले चैन की नींद सोते कैसे होंगे।
गुनाह नही फिर भी गुनाह का अहसास क्यों है।हमख़याल मन से फिऱ खुद के प्रश्न तुम बताओ मेरा विचलित होना सही है?क्या करूँ?मन की अवस्थाओं को अक्सर वह पातियों में कैद रखने की मेरी आदत आज भी बरक़रार हैं।
माँ की एक बात।
मानों तो दिल से
सहेजों तो दिल से..!!
वरना वहाँ से हट जाना बेहतर।
मन से किए काम कभी ज़ाया नही होते।ठीक उसी तरह मन से की गई कोई दुआ खाली नही जाती।इस तरह माँ के साथ ज़िन्दगी अब भी सिखाती आ रही हैं शिक्षक सब है ,जिनसे भी आप सिख लो,बुरे हादसे कठिन परीक्षा की तरह उतीर्ण भले न हो पर विजय प्राप्त कर लेंगे।अच्छे पल जिंदगी में मुस्कान छोड़ जाते हैं।भरपूर सीखिए ज़िन्दगी सिखाती रहती है।सिखाती रहेगी हर पल हर जगह हर इंसान से।
स्वरा