कविता का साधक हो जाना

कविता का साधक हो जाना

“जीवन का सुख-दुःख, यश-अपयश,
सहज धीर होकर अपनाना,
सबसे दुष्कर है जीवन में,
कविता का साधक हो जाना..!!

कौन भला झेले जीवन में,
चिंताओं की अनहद ढ़ेरी,
कौन भला चाहे आँखों में,
सपनों के शव, पीर घनेरी,
लेन देन के वणिक जगत में,
कौन भला स्वीकार करेगा,
जनमानस की तनिक तृप्ति हित,
सब खो देना कुछ ना पाना..!!
सबसे दुष्कर है………….!!१!!

मन को तोष दिया करता है,
अपने हृद में आह दबाकर,
दे देता आनंद रसिक को,
अपनी सारी चाह दबाकर,
ठहरो जरा, कभी सोचा है
यह कितना कटु निर्णय होगा?
खुशियाँ दे देना औरों को,
पीड़ा का विष खुद पी जाना..!!
सबसे दुष्कर है………….!!२!!

पीड़ा के काटें खुद चुनकर,
खुशियों के कुछ फूल उगाना,
स्वयं विफलता पाना लेकिन,
कितने ही सम्बन्ध बचाना..!
रात रात भर जगना, रोना,
खुद को अलग थलग कर लेना,
और सहज जग के सुख-दुःख को,
अपनाकर कुछ गीत बनाना..!!
सबसे दुष्कर है………….!!३!!”

मन में अश्रु समेटे मिलना,
होठों पर मुस्कान सजाना,
अपने अंधेरे में रहकर,
दुनिया भर को रंग दिखाना,
आह उदासी आँसू पीड़ा
तड़पन घुटन तबाही करवट,
इन सब से करना पड़ता है
कवि होने का मूल्य चुकाना..!!
सबसे दुष्कर है………….!!४!!

कुमार आशू
खड्डा कुशीनगर ,गोरखपुर

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