अयोध्या – ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत
मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ जीवन पद्धति में भी अनेक परिवर्तन आते रहे। पाषाण युग से वर्तमान आधुनिक कही जाने वाली इक्कीसवीं सदी तक मनुष्य ने अपने खान पान, आचार विचार, रहन सहन, वेशभूषा में भी बहुत बदलाव किए हैं।
जिस नदी के जल से उसकी तृषा शांत होती। जिस वृक्ष के फल से उसकी क्षुधा पूर्ण होती । उसको संरक्षित रखने का भाव जाग्रत होने लगा। मानव जीवन इसीलिए नदियों के किनारे विकसित होने लगा। वनस्पति और पेड़ पौधों के साथ कृषि का महत्व समझ आने लगा।
इसलिए ‘सरयू’ मात्र नदी नहीं है । एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति है। जिसके किनारे हजारों वर्ष पूर्व जीवन बसने लगा । कालांतर में ये क्षेत्र तत्कालीन सभ्यता का सुदृढ एवं आदर्श प्रतीक बना।
अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ । प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई. पू. 2200 के आसपास माना है। राजा दशरथ इस वंश के 63 वें शासक थे। अयोध्या का महत्व इस बात में निहित है कि जब भी प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होता है तब उसमें सर्वप्रथम अयोध्या का ही नाम आता है। अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार)’ काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका ये प्रमुख धार्मिक स्थान माने जाते थे।
यहाँ एक बात और स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि जैन परम्परा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे। इनके प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेव जी के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान अयोध्या ही है।बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्ष तक निवास किया था।
अयोध्या हिन्दू धर्म के अतिरिक्त जैन और बौद्धों का भी पवित्र धार्मिक स्थान था।
मध्यकालीन भारत के प्रसिद्ध संत रामानंद जी का जन्म प्रयाग क्षेत्र में होने के बावजूद रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र भी अयोध्या ही था।अयोध्या का इतिहास बहुत प्राचीन रहा है सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसे ‘पिकोसिया’ संबोधित किया है।
श्री रामजन्म भूमि विवाद को सुलझाने के लिए 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशानुसार भारतीय पुरातत्व विभाग के दल ने बुद्धरश्मि मणि और हरि मांझी के नेतृत्व में इस स्थान का उत्खनन किया। अपनी रिपोर्ट में बुद्धरश्मि मणि ने कहा कि खुदाई के दौरान पता चला कि जन्मभूमि के नीचे मौर्य, कुषाण, शुंग समेत 9 काल दबे हुए हैं। खनन से मिली सामग्री की कार्बन डेटिंग से पता चला कि इस स्थल पर ईसा पूर्व 1600 सालों तक के इतिहास की पर्तें दबी हुई है। वहां एक बड़ी संरचना भी मिली थी। साथ ही ये भी जानकारी मिली थी कि 10 वीं सदी में भी इस स्थान पर मौजूद मंदिर को तोड़ा गया था। संभव है कि अभी निर्माणाधीन मंदिर की नींव खुदाई के दौरान प्राचीन मंदिर और संस्कृति के बारे में और विस्तृत जानकारी सामने आएगी।
इन ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि सृष्टि के प्रारम्भ से त्रेतायुगीन भगवान रामचन्द्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं। इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों ‘महाभारत’ के युद्ध में मारा गया था।फिर लव ने श्रावस्ती बसाई जिसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है, फिर ये नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा।
अंत में यहाँ महमूद गज़नी के भांजे सैयद सालार जंग ने तुर्क शासन की स्थापना की। 1033 ई. में उसके मारे जाने के बाद तैमूर और उनके बाद जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या 1440 ई. में शर्कियों के अधीन हो गया।
1526 ई. में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति मीर बाकी ने 1528 में यहां आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया। 1528 से लेकर 1731 तक यहां दोनों समुदायों के बीच 64 बार संघर्ष हुए। अंतिम वज़ीर नवाब वाजिद अली शाह के दौर में 1855 में पहली बार हनुमानगढ़ी में हिंसा हुई थी और वाजिद अली शाह ने हिन्दुओं के पक्ष में निर्णय दिया था।
इसके बावजूद ये विवाद चलता रहा लंबे इंतजार और धार्मिक भावनाओं के आहत होने से एक बार फिर ये मुद्दा जोर पकड़ने लगा और 6 दिसम्बर 1992 को इस विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। 492 साल के लंबे विवाद और अदालती कार्रवाई के बाद 9 नवम्बर 2019 का दिन आया जब सुप्रीमकोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया और अयोध्या विवाद को समाप्त किया।
आखिरकार 5 अगस्त 2020 का दिन भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण दिन के रूप में याद किया जाएगा जिस दिन राम मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन कार्यक्रम हुआ तत्पश्चात राम मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ हो गया।
ये अति प्रसन्नता, हर्ष एवम सुखद संतोष का अवसर था जब लगभग पांच शताब्दियों से प्रतीक्षारत सनातन हिन्दू धर्म को मनाने वाले लोगों की आस्था का प्रतीक भगवान राम के जन्मभूमि का विवाद समाप्त हो गया। अयोध्या फिर से अपने उसी वैभव एवम धार्मिक नगरी के रूप में पुनर्निर्मित की जाएगी और यहाँ का समुचित विकास हो पाएगा।
अरुण धर्मावत
साहित्यकार
जयपुर, राजस्थान