मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद

महान साहित्यकार युग दृष्टा, कालजई कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर हार्दिक नमन। मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियां आज भी प्रसांगिक है। प्रेमचंद जी सर्वांगीण संपूर्णता के कुशल कथाकार कहे जाते हैं। प्रेमचंद जी कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे उन्होंने पहले उर्दू में लिखा फिर हिंदी में लिखने लगे उन्होंने बहुत सारी कहानियां नाटक और उपन्यास लिखे, जिनमें से पंच परमेश्वर परमेश्वर बूढ़ी काकी बड़े घर की बेटी नमक का दरोगा कई ऐसी कहानियां है जो काफी सराही गई कहानियो के उपन्यास की बात कही जाए तो गवन गोदान रंगभूमि निर्मला आदि भी कई उपन्यास इनकी बहुत ही अच्छी हैं। आज भी उनकी कहानियों लोग बहुत ही चाव से पढ़ते हैं। प्रेमचंद अपनी कहानियों केशश माध्यम से समाज को आईना दिखाया है। इनकी कहानियों के पात्र आज भी समाज और परिवार में दिख जाते हैं,जैसे’ लिर्मला’ कहानी की नायिका का बेमेल शादी जो आज भी कई घरों में विभन्न कारणों से होता है।”बड़े घर की बेटी” कितने घरों में बहू बेटियाँ व्याह कर जाती है और अपने अच्छे संस्कार से घर को टूटने से बचाती हैं। ईदगाह की बात करे तो हम पायेगें कि ये किसी खास वर्ग के लिये नही लिखा गया है बल्कि दादी पोता के प्यार को दर्शाया गया है ,बाल मन की भावना को उजागर किया है, प्यार किसी काल से बंधा नही होता। इसतरह से कई ऐसी कहानियां हैजो प्रासांगिक है।प्रेमचंद जी हमारे सिहित्य के इतिहास को बहूमूल्य खजाना दे गये है। इनकी दूरदर्शिता को परखने की शक्ति इनके अंदर बखूबी विद्यमान थी,सभी तो उनके कहानी के पात्र हमारें आस-पास देखने को मिलते है इन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज के हर वर्ग और हर पहलुओं पर प्रकाश डाला है प्रेमचंद जी युग दृष्टा थे प्रेमचंद जी खुश मिजाज व्यक्ति थे जब कि ये करीब -.करीब पूरी जिन्दगी आर्थिक संकट से जूझते रहे थे। उन्होंने जीवन को गहराई से देखकर उनका सटीक और स्भाविक वर्णन अपने कहानियों नाटकों और उपन्यास में किया है ।उन्होंने अपने कहानियों के माध्यम से समाज के कुरीतियों को उजागर कर उसके समाधान को भी दर्शाया है ।शुद्ध सरल और आसान भाषा में उनके द्वारा लिखी गई कहानियां लोगों को आम जिंदगी से जोड़ती है। मैंने मुंशी प्रेमचंद की कई कहानियां पढ़ी है, जिसमें उनकी कहानी “नैराश्य” मेरे मन को छू गई
कहानी में लड़कियों को जन्म देने वाली मां को पूर्ण रूप से दोषी बताया गया है,जबकि सभी जानते हैं, इसमें पति-पत्नी दोनों की समान रुप से सहभागी होते है। कहानी की नायिका को पुत्र इच्छा पूर्ति के लिए बार – बार मां बनने के लिए मजबूर किया जाता हैं पर उसे चौथी बार भी उसे पुत्री होती है तो उसके जीवन में अनेक परेशानियां आ जाती है। लोगों के ताने बाने और पति सास ससुर द्वारा उपेक्षित होती है। अंत अभी भी नहीं होता, पुत्र की ललक उसे मां बनने को फिर मजबूर करती है परंतु उसे फिर निराशा ही हाथ लगती है जिससे भविष्य में होने वाली यातना और शारीरिक कष्ट की कल्पना कर इतनी आहत हो जाती है कि उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
इस कहानी में निरुपमा कहानी की नायिका पहले तो चार लड़की की मां है। जिसकी वजह से उसे मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती है । जबभी वो पेट स होती थी पूजा पाठ कराया जाता ,ढ़गी पंडितों द्वारा लड़के होने की बात कही जाती थी उस समय उसकी अच्छी देखभाल की जाती थी पर जैसे ही लड़की होने की खबर मिलती लोगो का व्वहार विपरित हो जाता है। उस की कमजोर स्थिति देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उस वक्त और कितनी दबी सहमी अन्याय सहती रहती थी पर आत औरतों की सोच में बदलाव आया है औरते पहले के मुखाबले सशक्त हुई है।औरत इतनी कमजोर कैसे हो सकती है। उसके स्थान का महत्व पुरुष से कम तो नहीं है, फिर क्यों उसके अधिकार का हनन होता है ऐसा नहीं होना चाहिए।उसे अपने अधिकार के प्रति सजग होना चाहिए। चुपचाप अन्याय सहना भी अपराध है।

छाया प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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