न्याय

न्याय

शहर के पॉश इलाके में पौश, बड़ी सी कोठी, गेट पर खड़े चौकीदार, घर में नौकर- चाकर शान- शौकत, फूलो से सजा हुआ बगीचा,रईसी में किसी चीज की कमी नहीं, हो भी क्यों ना। यहां के ‘डीएम’ का जो घर है। कहने की जरूरत नहीं दरवाजे पर बड़ा सा नेम प्लेट लगा था। सुनहरे तख्ते में काले अक्षरों में लिखा था, अनामिका चौधरी। जब भी मैं इस नेम प्लेट को देखती हूं, तो गर्व से मेरी छाती चौड़ी हो जाती है। अनु एक दिन इस मुकाम पर पहुंच जाएगी सपने में भी नहीं सोची थी। कैसी अग्निपरीक्षा से गुजरकर भगीरथ परिश्रम से अपनी दूहिता को इस शिखर तक पहुंचाया, यह मैं ही जानती हूं। फिर क्या वही पुरानी स्मृतियों में खो गई। अपनी इस स्मृति पटल के धूमिल पड़ते हुए तिल- तिल पलटने की जैसे आदत हो गई थी । अचानक माँ, माँ की ध्वनि से मेरी तंद्रा भंग हो गई।
आज मेरी हाथ की बनी चाय पियो मां….अनु की आवाज थी ।आज रविवार की छुट्टी थी इसलिए वह घर पर ही थी अभी चाय पी ही रही थी कि मालती ने मुझे अखबार ला कर दिया। अखबार उठाकर देखी तो देखते ही रह गई, बड़े काले अक्षरों में लिखा था बेटी ने अपने पिता पर भ्रूण हत्या का मुकदमा दायर किया हृदय की गति तेज हो गई, आगे पढ़ने का साहस नहीं जुटा पाई। अनु को देखा तो वह मेरी ओर ही देख कर मुस्कुरा रही थी और मुझे सशंकित आंखों से घूर रही थी उसने नजर नहीं चुराई बल्कि दृढ़ता से मेरे चेहरे पर रेखांकित भावनाओं को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।मैं समझ गई यह सब कुछ अन्नू ने ही किया होगा मैंने कहा क्या तुमने………….।
मैंने ही किया मैंने कुछ गलत नहीं किया है एक गलत काम करने वाले व्यक्ति को सजा दिलाने की कोशिश की है।
पर तूने अच्छा नहीं किया, अनु। अब गड़े मुर्दे उखाड़ने की क्या जरूरत है जो हो गया,सो हो गया 4 दिनों की जिंदगी है। तू भी चैन से रह और मुझे भी रहने दे
तुम, किस चैन की बात कर रही हो मां, क्या तुम अपना अतीत भूल पाई हो। आज 27 वर्ष बीत गए क्या एक भी दिन ऐसा गुजरा होगा जब तुमने पापा और मेरी तीन बहनों को याद ना किया होगा । ना तुमने उन लोगों को देखा ना मैंने ही क्या तुमने कभी सोचा कि मेरी उन बहनों का क्या हुआ होगा।उनका क्या कसूर था। क्या यही कि वे लड़कियां थी, अगर पापा ने ऐसा ना किया होता तो आज हम सब एक साथ होते। पापा ने हम सबों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया है और तुम चाहती हो कि मैं सब भूल जाऊं। तुम अस्पताल से भागी नहीं होती तो आज मैं भी यहां नहीं होती। शायद भगवान ने तुम्हें प्रेरणा दी होगी कि तुम वहां से भाग जाओ और अब यह भगवान की भी इच्छा है कि मैं तुम्हें और अपनी बहनों को इंसाफ दिलवाऊं ।
पापा को तो शायद पता भी नहीं होगा कि तुम इस दुनिया में वह भी या नहीं।
आज हम भले ही ऐसो आराम से जिंदगी बिता रहे हैं पर इसके लिए आज के दिन के लिये कितने मूल्य चुकाए हैं,मा तुम से ज्यादा कौन जानता है। मने कितनी यातनाएं सहनी पड़ी है। मैं तुम्हारे आंखों से निरंतर आंसू बहते देखा है। हमने तुम चैन की बातें करती हो, कैसे भूल जाऊं? कैसे भूल जाऊं, सब कुछ।
सोचो, अगर तुम्हारे दूर के रिश्तेदार तुम्हारा साथ नहीं देते तो क्या आज मैं इस काबिल बन पाती तुमने किस कष्ट से मुझे पाला,पढ़ाया लिखाया कितनी परेशानियों से मुझे पाला दिखाया से मुझे पाला, यह मैं जानती हूं ।
यह तो हर मां और बेटी के लिए कितने गर्व की बात है न मेरी प्यारी माँ । मैं जानती हूं एक बेटी को अपने पिता को कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं परंतु एक दोषी को सजा दिलाकर मां और बहनों को इंसाफ दिलाया भी तो गलत नही। जिसे मैं नही देखी,मुझे जन्म देने वाले कौन है फिर भी अनदेखे व्यक्ति तुम्हारे पति और मेरे पिता है पर फिर भी एक दोषी को नही बचा कर मैं अपने तीन बहनों और निर्दोष माँ के साथ न्याय करुगी। मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी।
तुम सोचती होगी ना कि तुमने मुझे सब कुछ बता कर बहुत बड़ी गलती की हो,पर ऐसा नही है माँ। क्या तुम मुझसे यह सब छिपा सकती थी कभी ना कभी तो मैं तुमसे पापा के बारे में पूछती ही,तुम्हें बताना ही पड़ता।माँ अब मैं बड़ी हो गई हूं। मेरे अंदर भी एक औरत है जिसके दिल में असंख्य भावनाएं और अनुभूतियां हैं मैं भी महसूस कर सकती हूं अगर आज मैं चुप रही तो कई ऐसे पिता उत्पन्न हो जाएंगे जो बेटे की चाहत में भ्रूण हत्या करवाते रहेंगे। मेरी यह लड़ाई उन हजारों पिता के खिलाफ हैं जो इस मानसिकता से पीड़ित है मां तुम्हें इस लड़ाई में मेरा साथ देना होगा। तुम्हारा पूरा सहयोग कि मुझे विजयी बनाऐगा।
अभी किसी के आने की खबर पाकर अनु चली गई मैं सोचने लगी। कितनी व्यथा कितना आक्रोश है अनु के अंदर मेरे अंदर भी उतनी ही आग धधक रही थी।मुझे भी अपने पति से उतनी ही घृणा हो रही थी। मुझे वह दिन याद आने लगे जब उन्हें पता लगा कि लड़की होने वाली है उन्होंने मुझे कितना कोसा था। कहा था मुझे और लड़की नहीं चाहिए। तुम्हें यह बच्चा गिराना होगा जबरन मुझे अस्पताल ले गए मैं रोती चिल्लाती रही रात होने की वजह से मुझे अस्पताल में ही रहना पड़ा मेरा जमीर इस बच्चे की हत्या करने को कतई तैयार नहीं था। छोटे से अस्पताल में सिक्योरिटी का कोई पुख्ता इंतजाम नही था, इसी बात का फायदा उठाकर मैं वहां से निकल गई कहां जाऊंगी क्या करूंगी कुछ पता नहीं था उस रात मैंने अपने सभी पिछले संबंधों को तिलांजलि दे दी,उसके बाद जो कुछ हुआ सब अनु जानती है वह भला चुप कैसे बैठ सकती है।मैं क्या करूं ना करूं कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। कहीं ना कहीं अनु के लिए उठाए हुए कदम सही लग रहे थे,तो दूसरे ही क्षण गलत प्रतीत हो रहा था।
मैंने बहुत सोचा जिसे मैं 27 साल पीछे छोड़ आई उसका मिलना या ना मिलना कोई मायने नहीं रखता।टूटे हुए रिश्ते नहीं जुड़ पाते इसलिए अनु के साथ ही खड़ा होना बेहतर होगा। इंसान अपने पापों का फल इसी जन्म में भोगता है अब जो भी होगा हिम्मत के साथ सामना करूंगी।
केस खुला और कुछ समय तक गवाहों बयानों का,वाद प्रतिवाद,प्रश्न उत्तर का सिलसिला चला ,अनु के ऊंचे पद के दबदबे और नाम की वजह से केस की प्रक्रिया जल्दी खत्म हुई और फैसला अनु के पक्ष में हुआ ।मेरे पति आलोक चौधरी को आईपीसी धारा 312 के तहत भ्रूण हत्या कराने के लिये दबाव डालने के जूर्म में गिरफ्तार किया गया, और जेल में डाल दिया गया।
जेल जाते हुए वो बहद हताश दिख रहे थे। मेरी चारों बेटियाँ मेरे साथ खड़ी थी। नम आंखों से अपने पति और अपने बच्चों को देखा। हमारी चुप्पी ही बहुत कुछ बयां कर रही थी बस और कुछ कहने की जरूरत ही क्या थी। मेरे वर्षों की तपस्या और विश्वास को न्याय मिल गया।

छाया प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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