क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद

क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद

मैं गुलामी का कफन,
उजला स्वप्न स्वाधीनता का नाम से आजाद,
हर संकल्प से फौलाद हूं मैं।
– श्रीकृष्ण सरल

मात्र 14 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर ने कानून भंग आंदोलन में अपना योगदान दिया।1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। इस आंदोलन में भाग लेने पर जब अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तो जज ने उनसे उनका नाम और उनके पिता का नाम पूछा।

जिसका उन्होंने जवाब दिया –
मेरा नाम आजाद है मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा पता कारावास है।
उन्हें15 कोड़ों की सजा दी गई।
हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने ‘वंदेमातरम्’ व ‘भारत माता की जय’ का स्वर बुलंद किया। इस घटना के बाद वे आजाद के नाम से पहचाने जाने लगे। यह परिचय उस चिंगारी का है जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे अधिक आहूति दी।

आजाद जी निडर,बलशाली और गरम स्वभाव के थे।आजाद जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों की ऐसी फौज खड़ी कर दी थी जिससे अंग्रेजों की नींद उड़ गई थी।अंग्रेजों में चंद्रशेखर का ऐसा खौफ था कि उनकी
मौत के बाद भी कोई उनके करीब जाने से डरता था।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर
हुआ था।वहीं उन्होंने धनुषबाण चलाना सीखा।उनका प्रारंभिक जीवन वहीं बीता।उनके पिता का नाम पंडित
सीताराम तिवारी एवं माता का नाम जगरानी देवी था।ईमानदारी,स्वाभिमान,साहस,वचनपालन आदि गुण उन्हें अपने पिता से विरासत में मिले थे।

सांडर्स की हत्या और काकोरी ट्रेन में अंग्रेजों का खजाना लूटने में इनकी प्रमुख भूमिका थी।ये हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सुप्रीम कमांडर थे।इन्होंने भगत सिंह व अन्य साथियों को जेल से छुड़ाने का भरसक
प्रयत्न किया पर सफल न हो सके।

आजाद ने अल्फ्रेड पार्क,इलाहाबाद में 1931 में रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया।आजाद ने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे न कभी ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे पाएगी।इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27फरवरी 1931को किसी मुखबिर की सूचना पर पुलिस मुठभेड़ में अल्फ्रेड पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।वीरता, साहस व दृढ़निष्ठता की ऐसी मिसाल कम ही देखने को मिलती है।क्रांतिकारी देशभक्त चंद्रशेखर आजाद का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर रहेगा।

उनका नारा था-
दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे
आजाद ही रहें हैं,आजाद ही मरेंगे।

आनन्द बाला शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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