बाल मनोविज्ञान की सर्वश्रेष्ठ कहानी ईदगाह
प्रेमचन्द की कहानियां हमारे आसपास और दैनंदिन जीवन की हर छोटी-बड़ी घटनाओं से प्रेरित होती है,उनको पढ़ते समय यही प्रतीत होता है जैसे यह घटना हमारी आंखों के सामने घटित हो रही है अथवा हमारे परिवेश से ही जुड़ी हुई है, विशेष रूप से बाल मनोविज्ञान से जुड़ी कहानियां,अपनी संवेदना, मार्मिकता, और भावनात्मक चित्रण में अपूर्व होती है और मन को उद्वेलित कर जाती है, इन्हीं कालजयी कहानियों में ईदगाह कहानी मुझे बेहद पसंद हैं, जहां बच्चों की दुनिया, उनके सपने,उनकी कल्पनाएं सजीव हो साकार रुप ले लेती है,,ईद पर जुड़ने वाले मेले का मनोहारी वर्णन हो या नन्हें हामिद का अंतर्द्वंद्व,मन को छू जाता है,
बाल मनोविज्ञान पर आधारित ‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखी गई “ईदगाह” कहानी एक अप्रतिम कहानी है जो बाल मन को गहनता से दर्शाती है। इस कहानी को पढ़कर ज्ञात होता है कि परिस्थितियां उम्र नहीं देखती और एक छोटा सा बालक भी विषम परिस्थितियों में समय से पहले परिपक्व हो जाता है,,कहानी में हामिद, जो एक मात्र 8 वर्ष का बालक है, वह एक परिपक्व व्यक्ति की भांति किसी तरह समझदारी का परिचय देता है, और अपने दोस्तों के द्वारा तरह तरह के खिलौने खरीदे जाने पर या चटपटी चीजें खाने का लालच देने पर विचलित तो होता है, पर मन पर संयम रखता है, और अनेक बहाने बना कर मन को समझा लेता है, प्रेमचंद ने इसी बात को रोचकता से दर्शाया है,, कहानी का मुख्य पात्र हामिद और उसकी दादी अमीना है,हामिद के माता-पिता इस संसार में नही हैं। वो अपनी बूढ़ी दादी के साथ रहता है,, वे बहुत गरीब हैं, उसकी दादी छोटा-मोटा काम करके किसी तरह अपना और हामिद का भरण पोषण करती है,, वो हामिद की सारी इच्छाएं पूरी नहीं कर पाती,,ईद का त्यौहार आता है, सब लोग मेले में घूमने जा रहे हैं,हामिद भी मेले में जाने के लिए उत्साहित है,,हामिद की दादी किसी तरह थोड़े बहुत पैसे जोड़कर तीन आने हामिद को देती है, ताकि वो मेला घूम आये,, बूढ़ी दादी को लगता है कि बेचारे हामिद के दोस्त मेले में मज़े करेंगे तो वह तरसेगा,वह अपनी मेहनत के सारे पैसे हामिद को दे देती है, हामिद अन्य बच्चों के साथ मेला जाता है,,यहां सब बच्चे अपने मां-बाप द्वारा दिए पैसों से खिलौने, मिठाई आदि खरीदते है, लेकिन वह अपने मन पर नियंत्रण कर ये सब नही खरीदता। वह मेले में एक जरूरी चीज लेता है,, वह जरूरी चीज है रसोई घर में काम आने वाला चिमटा,!!हामिद देखता था कि कैसे उसकी दादी के हाथ रोटी बनाते समय जल जाते थे, क्योंकि उसके पास चिमटा नहीं था, हामिद को अपनी बूढ़ी दादी का यह कष्ट बराबर याद रहा, और उसने अपनी इच्छाओं को तिलांजलि देते हुए अपनी बूढ़ी दादी के लिए एक उपयोगी वस्तु खरीदी.,वह खिलौने के आगे हारा नहीं, गाने पीने की चीजें देखकर ललचाया नहीं,बस केवल एक चीज याद रही,वह था कि दादी की उंगलियां जल जाती है, उसकी पीड़ा और दर्द को उस छोटे से बच्चे ने महसूस किया, और चिमटा खरीद लिया, और उसे बंदूक की तरह कंधे पर उठाकर बड़ी शान के साथ चल रहा था, उसकी कल्पना में वह चिमटा कभी बंदूक बन जाता कभी सिपाही जी का डंडा,तो कभी संगीत का साथी,, फिर दादी के लिए चिमटा तो था ही,,बस फिर क्या था, पांसा ही पलट गया,अब सारे दोस्तों को अपने खिलौने हामिद के चिमटे के आगे फीके लगने लगे,सब उसे छू छूकर देखना चाहते थे,, कहानी का अंत बेहद मार्मिक और भावविभोर कर देता है,जब बूढ़ी अमीना पहले तो चिमटा देखकर नाराज होती है, फिर जार जार रोती हुई हामिद को गले लगा लेती है, यहां बूढी दादी हामिद बन गई थी और नन्हा हामिद अमीना,जो उसे चुप करा रहा था,यह है एक संवेदनशील कथाकार की जादूगरी,कलम के सिपाही की अभिव्यक्ति जो पाठक के मन के भीतर प्रवेश कर सकती हैं,,
यह कहानी हामिद की मात्र 8 वर्ष की आयु में परिपक्वता को दर्शाती है, उसके अंदर की संवेदनशीलता को दर्शाती है. इसका कारण यह था कि समय और निर्धनता ने हामिद को अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा समझदार बना दिया था, वो समय से पहले ही परिपक्व हो चुका था, संवेदनशील बन चुका था.
हामिद के रूप में एक बच्चे के मन को भली-भांति पढ़ने और बाल मनोविज्ञान की संवेदनशीलता को सार्थक रूप से प्रस्तुत करने में लेखक प्रेमचंद पूरी तरह सफल रहे हैं.
पद्मा मिश्रा
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड