पेट की आग
रमिया का विवाह दीनू से लगभग सात वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में हुआ था। दीनू गन्ने के खेतों में श्रमिक के रूप में काम करता था। घर का गुज़ारा किसी तरह चल ही जाता था। धीरे-धीरे उसके चार बच्चे भी हो गए थे। रमिया, दीनू को समझाती थी कि बच्चे एक या दो ही ठीक हैं पर वह यही कहकर रमिया को चुप करा देता था कि ज़रा सा बड़े होते ही बच्चे भी मज़दूरी में हाथ बंटाने लगेंगे तो हमारे अच्छे दिन आ जाएंगे । रमिया जब कहती कि पहले बच्चों को पालना भी पड़ता है वह कैसे पलेंगे तो दीनू यही तर्क देता कि जिस भगवान ने संसार में भेजा है उसने खाने का भी इंतजाम करा ही होगा।काश ऐसा होता। धीरे-धीरे घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया तो रमिया ने भी दीनू के साथ खेत पर जाकर मज़दूरी करना शुरू कर दिया था ,पर दीनू के असामयिक निधन से रमिया पर तो विपत्ति का पहाड़ ही टूट पड़ा था। जीवन साथी तो खोया ही था साथ ही अब अकेले बच्चों को पालना दूभर दिखाई दे रहा था। उसके पास तो दीनू के अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे। जब वह अपने खेत के मालिक से उधार मांग कर लाई तब जाकर दीनू का अंतिम संस्कार हो पाया ।कोई अमीर महिला होती तो अपने पति के मरने का कई महीने तक शोक मनाती पर रमिया तो पेट की खातिर अगले दिन से ही मज़दूरी पर चली गई,पर दस बारह दिन बाद मासिक धर्म होने की वजह से वो मज़दूरी पर नहीं जा पाई।एकाध दिन तो खाने का काम चल गया पर अब हाथ में पैसे नहीं थे और बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। बच्चों को भूख से बिलबिलाता देखकर उसकी आत्मा कलप उठी। वह पास की राशन की दुकान से बड़ी मिन्नत के बाद कुछ सामान उधार लेकर आई तब जाकर बच्चों को खाना नसीब हुआ। वह सोचने लगी ऐसे कब तक कोई उसे उधार देगा और उसको वो चुकता भी कैसे करेगी। मासिक धर्म तो हर महीने का काम है।अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि पड़ोस में से बूढ़ी काकी आ गई तो उसका ध्यान भंग हुआ।काकी उससे बोली बहुत परेशान दिख रही है क्या बात है।उसने काकी को अपनी समस्या बता दी।रमिया की बात सुनकर काकी बोली समस्या की जड़ को ही मिटा दे।ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। रमिया को उनकी बात समझ नहीं आयी तो वो बोली काकी आप कहना क्या चाहती हो उसे ज़रा सीधे तरीके से बताओ।काकी बोलीं मुसीबत की जड़ गर्भाशय है उसे निकलवा दे।रमिया को काकी का ये सुझाव बहुत बढ़िया लगा और वो काकी के जाने के बाद पास में ही स्थित सरकारी अस्पताल की ओर चल दी ।वो इस बात से अनभिज्ञ थी कि गर्भाशय निकलवाकर उसे अन्य दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। वो तो यही सोचते हुए जा रही थी कि गर्भाशय निकलने पर उसे मासिक धर्म से छुटकारा मिल जाएगा और हर महीने चार-पांच दिन की मज़दूरी गंवानी नहीं पड़ेगी जिससे बच्चों को कम से कम भरपेट सूखी रोटी तो मिल सकेगी। यह सोचकर वह बहुत आश्वस्त थी। सच में पेट की आग मनुष्य से बहुत कुछ करवा लेती है।
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर