मुंशी प्रेमचंद
मुझे नहीं लगता जिनकी रुचि साहित्य में होगी वो इस नाम से वाकिफ नहीं होंगे !! मुंशी प्रेमचंद मेरे प्रिय कथाकारों में से एक हैं सच कहूं तो उनकी कहानी “पूस की रात”और “ईदगाह”जब विद्यालय जीवन में पढ़ा था तभी से उनकी मुरीद हो गई!!
कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर लिखने- पढ़ने में मेरी रुचि अगर अनुवांशिकी और ईश्वरीय कृपा है तो भेाैतिक जगत में प्रेमचंद जी , फणीश्वरनाथ रेणु जी जैसे आंचलिक कथाकारों की उत्कृष्ट कथाओं ने भी मेरी लेखन को निखारने में मदद की है!! पूस की रात, ईदगाह को तो कक्षा में पढ़ने के बाद भी घर में भी कई कई बार पढ़ती रहती!!
काफी सरल, जमीनी भाषा में गहरी से गहरी बात भी दिल के अंदर घर कर जाती थी!!एक एक काल्पनिक पात्रों का विश्लेषण या वर्णन प्रेमचंद जी ऐसे करते हैं जैसे हमारे पड़ोसी हों, जान पहचान के हों!
प्रेमचंद जी की कहानियों को पढ़कर स्पष्ट होता है कि वे हर साधारण से साधारण पात्रों को भी अपनी यथार्थवादी एवम् सरल भाषा – शैली से भी विशेषता प्रदान कर देते थे!
यूं तो प्रेमचंद जी की हर कथा स्मरणीय, रोचक और आदर्शवादी होते हैं मगर अगर मेरी पसंदीदा कथा की बात की जाए तो मेरे जेहन में सहसा “ईदगाह” की कहानी उभर कर आती है और उसका मासूम मगर समझदार पात्र “हामिद” कल्पनाओं में उतर जाता है!
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है “ईदगाह” कथा मुसलमानों के पाक पर्व ईद पर केन्द्रित है! इस कहानी में बाल मनोविज्ञान और मानवीय संवेदनाओं का सरल और भावात्मक चित्रण किया गया है!
कहानी की शुरुआत ईद के दिन की चहल -पहल से को गई है , बच्चों में उमंग उत्साह देखने को मिल रहा है! मेले घूमने जाने की लालसा उनमें ऐसा जोश भरे दे रहा है जिनमे यूं बच्चों को कोई फिक्र चिंता नहीं की उनके वालिद अम्मा ईद की तैयारियां कैसे करेंगे उनको क्या उनको तो मेले में झूले,खिलौने और मिठाइयां दिख रही है!!
हामिद भी आज बहुत खुश है जो चार पांच साल का दुबला पतला अनाथ लड़का है,उसकी दादी अमीना ही उसकी एकमात्र सहारा है मगर हामिद को उसकी दादी ने यही आस बंधाए रखने को कहा है कि उसकी अम्मा अल्लाह मियां के घर से अच्छी अच्छी चीजें लाने गई है और उसके अब्बू खूब सारे पैसे कमाने गए हैं!!
आखिरकार मेले किए सारे बच्चे निकल पड़े,कभी सबके सब आगे दौड़कर निकल जाते और कभी किसी पेड़ के नीचे सबके आने का इंतजार करते ये सोचते कि ये लोग इतने धीरे क्यूं चल रहे हैं! कभी रास्ते में अमीरों के आम के बगीचे पर कंकड़ फेंकते और माली के गाली देने पर भाग कर दूर हो जाते !ऐसे ही खेलते कूदते ईदगाह में नमाज़ पढ़ते कतारों को देखते को बिजली की लाखों बत्तियों के समान प्रदिप्त और बुझती दिखती थीं!
फिर खिलौनों की दुकानें, मिठाइयों की दुकानें बच्चों की टोलियों को आकर्षित करते हैं,सभी बच्चों ने कुछ न कुछ खिलौने लिए , मिठाइयां भी उड़ाई मगर हामिद ललचाई नजर से देखकर अपने मन को दबा लेता है क्यूंकि उसके पास केवल तीन पैसे हैं जो बड़ी मुश्किल से उसकी दादी अमीना ने दिए थे मेले घूमने के लिए! खिलौने, मिठाइयां भी हामिद को आकर्षित नहीं करते क्योंकि आर्थिक तंगी और मजबूरियों ने उसे बड़ा और समझदार बना दिया था वो उचित -अनुचित जरूरी गैरजरूरी खर्चे का मतलब समझने लग गया था! मगर हामिद जब लोहे की दुकान से गुजरता है तो वहां चिमटों को देखकर सहसा रुक जाता है ,उसे ख्याल आता है कि उसकी दादी रोटियां बनाए वक़्त बिना चिमटे के कई बार हाथ जला देती हैं !यदि वह चिमटा लेकर अपनी दादी को दे दें तो कितनी खुश हो जाएगी फिर उसके हाथ कभी न जलेंगे!खिलौने से क्या फ़ायदा वो तो कभी न कभी टूट जाएंगे और पैसे भी बर्बाद ही जाएंगे!चिमटे का दाम छ: पैसे मगर अभागे हामिद के पास केवल तीन पैसे मगर मोल जोलकर उसने आखिरकार तीन पैसे में वो चिमटा ले ही लिया और अपने कंधे पर रखकर ऐसे शान से अकड़कर निकला जैसे कोई बंदूक रखा हो!!
वापस आते ही अमीना ने उत्साह से हामिद से पूछा मेले में क्या- क्या खाया क्या- क्या खरीदा,हामिद ने चिमटा आगे कर दिया!अमीना ने अपना सिर पीट लिए ,कैसा नासमझ लड़का है सुबह से दोपहर हो गई कुछ खाया ना पिया और लिया भी तो क्या एक लोहे का चिमटा!!
हामिद ने सहमते हुए दादी से कहा,” तुम्हारी उंगलियां तवे से जल जाती थी इसलिए मैंने इसे लिया!” बुढ़िया ने हामिद को गले से चिपका लिया और दामन फैलाकर रोते हुए हामिद को दुआएं देने लगी !
अंततः इस कथा को पढ़ने के बाद यही कहा जा सकता है कि प्रेमचंद जी ने बालक हामिद में बालसुलभता के साथ साथ जीवन के उतर चढ़ाव के कारण आई समझदारी और परिपक्वता को दिखलाने की कोशिश की है! उन्होंने ईदगाह के माध्यम से और बच्चे हामिद में आर्थिक विषमता को समझते हुए सही -गलत उचित- अनुचित की समझ को बखूबी सरल और सहज भाषा में दर्शाया है! प्रेमचंद जी की विशेषता भी यही रही है कि उनकी रचनाओं में चारों शैलियों (वर्णनातमकता, व्यंगात्मकता, भावात्मकता, विवेचनात्मकता) का अद्भुत पुट हुआ करता है!मुझे उनकी कहानियों में चित्रात्मकता अत्यधिक प्रभावित करती है जो ईदगाह में भी परिलक्षित होती है!उनकी भाषा ईदगाह में पात्रों के अनुसार प्रवाहपूर्ण और परिवर्तित होती रहती है!
ईदगाह की भाषा – शैली अत्यंत सरल, साधारण मगर असरदार थी जो कि हर तबके के लोगों के दिमाग पर असर करती है!उनकी रचनाओं में ज्यादातर शोषित, पिछड़े वर्गों की समस्याओं,संवेदनाओं को विशेष तौर पर दर्शाया जाता है! उनकी कथाओं में अधिकांश गांव व आम जनों को विशेष तौर पर दिखाया गया है और बहुत सुंदर भावपूर्ण चित्रण किया गया है !! प्रेमचंद जी का जीवन जितना सादा,व्यक्तित्व जितनी साधारण थी मगर सोच उच्च कोटि की थी वही बातें उनके साहित्य में दिखती थी उनकी कथाओं में अत्यंत सरल ,साधारण और आंचलिक भाषाओं के द्वारा गूढ़ से गूढ़ घटनाक्रम, गहरी से गहरी परिस्थितियों को दिखाया जाता था! गहरी बाते साधारण, जमीनी शब्दों में कहना प्रेमचन्द जी की अद्भुत एवं विशिष्ट कला- कौशल का प्रमाण था!!
सादर नमन है कलम के जादूगर को !!
अर्चना रॉय
प्राचार्या एवं साहित्यकार
मांडू, झारखंड