धनेसर की व्यथा
आज धनेसर बहुत परेशान है। उसने अपनी बेटी की शादी तय कर दी है पर आज बेटी के भावी ससुराल से शादी में 5000/- की मांग का सन्देशा आया है, वरना शादी नही होगी। वह बार-बार अपनी प्यारी बेटी का मुँह देखता और मन ही मन अकुला रहा है। उसके पास इतने पैसे ही कहाँ थे कि बेटी की दहेज जुटा पाता। व्यथित धनेसर इसी उधेड़बुन में खेत की ओर चल पड़ा। उसके दोस्त मोहना ने पूछा-“आज उदास काहे हो भाई?” धनेसर ने अपनी व्यथा सुनाई। कहा–“हम लोग खेत में इतनी मेहनत करते हैं,,,किसी तरह दो जून खाना मिल जाता है। बताओ बेटी के व्याह के लिये इत्ता पैसा कहाँ से लायें?” मोहना ने राय दी -“चौधरी जी से सहायता ले लो। आखिर उनके ही खेत में हम काम करते हैं,वो काहे ना हमरी सहायता करेंगे!”
शाम को धनेसर डरते-डरते चौधरी जी के कार्यालय की तरफ बढ़ चला। उसके गिड़गिड़ाने पर दरवान ने उसे अंदर जाने दिया। धनेसर ने हाथ जोड़ कर कातर स्वर में पैसों की गुहार लगाई। चौधरीजी एकदम से भड़क गये- “भगाओ इन भुक्खड़ों को यहाँ से। अरे,,,कोई है? और तुम सुनो जी, खेत में काम करते हो। काम का पैसा मिलता है ना। बस!”
तभी चौधरी जी के मुन्शीजी ने आते ही कहा-“साहब, आपको मन्दिर में गरीबों को कम्बल बांटने जाना है। सभी आ गये है, प्रेस-मीडिया वाले भी आ गये है।”
हाँ,हाँ, चलो,,,,,और चौधरीजी अपने ऑफ़िस से सरपट निकल गये।
धनेसर हाथ जोड़े कभी धरती को तो कभी आसमान को देख रहा था। धरती फट जाये जिसमें वो समा जाये या ये आसमान उसके सर पर गिर जाये जिसमें वह दब कर मर जाये ताकि वह अपनी गरीबी,बेबसी और सब समस्याओं से निजात पा ले। ये गोरखधंधा उसकी समझ से परे था।
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड